Thursday 5 March 2015

मुफ्ती यह दर्शाने की कोशिश में हैं कि मैं दिल्ली का एजेंट नहीं

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और पीडीपी के अध्यक्ष मुफ्ती मोहम्मद सईद के पदभार संभालते ही विवादास्पद बयानों का क्या मतलब निकाला जाए? पाकिस्तान और हुर्रियत कांफ्रेंस को जम्मू-कश्मीर में निरापद निर्वाचन का श्रेय देना, अफजल गुरु के शव को उसके परिवार वालों को लौटाना इत्यादि बयान को हमें ज्यादा गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। मुफ्ती दरअसल यह जताना चाह रहे हैं कि बेशक उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन सरकार बनाई है पर वह आज भी उस स्टैंड पर कायम हैं जो उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान लिया था। यानि वह अपने वोटरों को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि वह दिल्ली के एजेंट नहीं हैं। यह सही है कि एक मुख्यमंत्री के रूप में ऐसे बयान देना उन्हें शोभा नहीं देता। यह अच्छा है कि प्रधानमंत्री ने यह साफ कर दिया है कि उन्होंने पीडीपी से कामन मिनिमम प्रोग्राम के तहत सरकार बनाई है। कोई व्यक्ति अपनी निजी हैसियत में क्या कहता है उसका जवाब वह नहीं दे सकते। जब तक सरकार कोई ऐसा कदम नहीं उठाती जो तय एजेंडे से अलग हो तब तक भाजपा उस पर रिएक्ट नहीं करेगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वही मुफ्ती मोहम्मद सईद हैं जिन्हें 1989 में भाजपा ने अलगाववादी तक कह दिया था। इतिहास गवाह है कि जब 1989 में मुफ्ती वीपी सिंह सरकार में गृहमंत्री थे तो इनकी बेटी रुबिया सईद का अपहरण हो गया था और अपनी बेटी को छुड़वाने के लिए आतंकियों की इस मांग को मान लिया गया था कि रुबिया की एवज में पांच आतंकियों को रिहा किया जाए। विशेषज्ञों का मानना है कि कश्मीर घाटी में यहीं से उग्रवाद शुरू हुआ था जो अब तक चल रहा है। केंद्रीय गृहमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुफ्ती से इतनी अपेक्षा नाजायज नहीं हो सकती कि वह बोलने से पहले तथ्यों का जरा मिलान करें। जिस पाकिस्तान को उन्होंने चुनाव लायक माहौल बनाने का श्रेय दिया है वह जितना खूनखराबा कर सकता था, किया। आतंकियों की घुसपैठ, संघर्ष विराम की धज्जियां उड़ाते हुए अग्रिम चौकियों पर हमले, दर्जनों सुरक्षाकर्मियों व सरपंचों की जान लेने को अगर दोस्ताना रवैया कहा जाए तो दुश्मनी क्या होगी? अगर जम्मू-कश्मीर में चुनाव सफल हुए हैं तो उसकी वजह वहां की अवाम है जिसने बुलैट की जगह  बैलट को प्राथमिकता दी है। पाकिस्तान, अलगाववादियों ने चुनाव में बाधा डालने का हर संभव प्रयास किया और इसे फेल किया हमारे सुरक्षाबलों ने। सवाल किया जा सकता है कि आखिर मुफ्ती ने बिना सोचे-समझे इस प्रकार के बेतुके बयान दिए हैं? कतई नहीं। वह जिस पीडीपी की रहनुमाई करते हैं उसके दिल में हुर्रियत और पाकिस्तान के प्रति नरम कोना शुरू से ही रहा है। यह उनकी पहली सरकार के दौरान विभिन्न मौकों पर उजागर होते रहे हैं। सारे प्रकरण में संतोष इस बात का है कि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय उन्होंने भारतीय संविधान की सुरक्षा करने, संविधान के तहत ही शपथ ली। इसका मतलब है कि वह कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जो भारतीय संविधान के खिलाफ हो। कटु सत्य तो यह भी है कि मुफ्ती की पार्टी का भाजपा से मिलकर सरकार बनाना न तो उनके मतदाताओं को पसंद आ रहा है, न हुर्रियत को और न ही पाकिस्तान को। हुर्रियत कभी भी इस सरकार का समर्थन नहीं कर सकती। सोमवार को हुर्रियत के प्रवक्ता एजाज अकबर ने मुफ्ती के विवादास्पद बयानों को बकवास और अवास्तविक करार दिया। अकबर ने कहा कि जहां तक हुर्रियत कांफ्रेंस की बात है तो उसके पूरे नेतृत्व को सैकड़ों कार्यकर्ता और सहयोगियों के साथ जेल में डाल दिया गया था या नजरबंद कर दिया था। ऐसे में मुफ्ती का टिप्पणी करना अवास्तविक और अनुचित है। यह महज एक राजनीतिक चाल है। फिलहाल मुफ्ती के बयान से नवजात पीडीपी-भाजपा सरकार की बुनियाद टेढ़ी और कमजोर हुई है। अत देर-सबेर उन्हें भूल सुधार का विवेक दिखाना होगा। वैसे इस गठबंधन सरकार को चलाना दोनों के लिए चुनौती होगी।

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