Friday, 24 February 2012

अर्श से फर्श तक का किंगफिशर का पांच साला सफर

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 24th February  2012
अनिल नरेन्द्र
सातवां आसमान छूने के अन्दाज में धमाकेदार शुरुआत करने वाली किंगफिशर एयरलाइंस महज पांच-छह साल में किस तरह कंगाली के कगार पर आ पहुंची, यह दास्तान विमानन उद्योग ही नहीं समूचे कारपोरेट जगत और देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। सन् 2005 में किंगफिशर की लांचिंग के समय उसके रंग-ढंग देखकर उम्मीद की जा रही थी कि आने वाले समय में यह कम्पनी घरेलू एयरलाइंस उद्योग की दिशा बदल कर रख देगी। अपनी अलग कार्यशैली और सेवाओं के दम पर किंगफिशर ने उस समय घरेलू विमानन उद्योग के आकाश पर छाई इंडियन एयरलाइंस और जेट एयरवेज को कड़ी टक्कर देकर बाजार में अपना अलग मुकाम हासिल किया। यात्रियों की प्रतिस्पर्धा किराये की पेशकश पर किंगफिशर ने काफी कम समय में बहुत से लोगों की मनपसंद एयरलाइंस बन गई। ऐसी दमदार शुरुआत करने के बावजूद आज किंगफिशर एयरलाइंस कंगाली की कगार पर आ खड़ी हुई है। इसके पीछे देश के वाहन निर्माण के सबसे बड़े उद्योगपति विजय माल्या का हाथ है, दोनों सफल कामयाबी में भी और कंगाली के कगार में भी। शान-शौकत शैली वाले विजय माल्या बहुधंधी हैं। एक जमाने में वह सक्रिय राजनीति में आकर इस क्षेत्र के भी किंग बना चाहते थे। यह राज्यसभा के सदस्य होने के अलावा उन्हें इस क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय सलता नहीं मिली। 18 दिसम्बर 1955 में पैदा हुए विजय माल्या की छवि एक ग्लैमर पसंद प्लेब्वॉय की बनी हुई है। वैसे कई खेलों के प्रमोशन में उनका खासा योगदान रहा है। 2007 में उन्होंने फार्मूला वन स्पाइकर टीम नीदरलैंड से 88 बिलियन यूरो में खरीदी थी। बाद में इसका नाम बदलकर फोर्स इंडिया फार्मूला वन रखा गया था। 2004 में माल्या ने टीपू सुल्तान की तलवार लंदन से एक लाख 75 हजार पाउंड में नीलामी से खरीद ली थी। उन्होंने घोषणा की थी कि देश के सम्मान के लिए वे टीपू सुल्तान की तलवार देश में लाए हैं। इसी तरह मार्च 2009 में माल्या ने न्यूयार्प में हुई एक नीलामी से महात्मा गांधी के निजी उपयोग के कुछ सामानों के लिए तीन बिलियन डालर की बोली लगा दी थी। महंगी घड़ियां और महंगी कारों के खास शौकीन माल्या ऐसे शख्स हैं जो कि उद्योग से इतर अपनी रंगीन मिजाज वाली जीवन शैली के लिए हमेशा चर्चा में रहते हैं। वे फैशन टीवी चैनल एनडीटीवी गुड टाइम्स के भी मालिक हैं। उनका सालाना कैलेंडर जिसमें देश-विदेश की खूबसूरत अर्द्धनग्न मॉडलों को दिखाया जाता है काफी चर्चा में रहता है। आज किंगफिशर की जो हालत हो गई है, उससे लगातार घाटे में डूब रहे भारतीय विमानन क्षेत्र के संकट का अन्दाजा लगाना मुश्किल नहीं है। इस निजी कम्पनी ने बीते चार-पांच दिनों में अपनी दर्जनों उड़ानें रद्द की हैं और कंगाली की ओर बढ़ रही यह कम्पनी अपने कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दे पा रही है। बीते कुछ महीनों के दौरान उसके आधे से ज्यादा पायलट नौकरी छोड़कर जा चुके हैं। किंगफिशर की जो हालत है उसके लिए वह खुद तो जिम्मेदार है ही मगर हमारी उड्डयन नीति भी कम जिम्मेदार नहीं है। नासूर कितना पुराना है यह तो इससे ही पता चल जाता है कि डीजीसीए आज भी 1937 के नियमों से विमानन कम्पनियों को हांक रही है। कहीं कुछ तो गड़बड़ जरूर है और फिर घाटे में सिर्प किंगफिशर ही नहीं है। सरकारी विमानन कम्पनी एयर इंडिया तो सफेद हाथी साबित हो रही है। अब यदि विमानन क्षेत्र को संकट से जल्दी नहीं उबारा गया तो इसमें और गिरावट तय है। इसका असर परोक्ष रूप से औद्योगिक और आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ेगा, जिसका अकसर हम दम भरते हैं।
Anil Narendra, Daily Pratap, Kingfisher, Vijay Mallaya, Vir Arjun

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