सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे मंत्री, सांसद, विधायक और आला अधिकारी अब कार्रवाई की मंजूरी लम्बित होने की आड़ में ज्यादा दिन तक नहीं बच पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने दूरगामी असर वाला यह फैसला जनता पार्टी अध्यक्ष डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी की एक याचिका पर दिया जिसमें बताया गया था कि किस तरह से प्रधानमंत्री कार्यालय ने ए. राजा के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा महीनों लटकाए रखा और कोई जवाब नहीं दिया। लोक सेवकों पर मुकदमा दर्ज करने के लिए समयसीमा तय करने से संबंधित डॉ. स्वामी की इस याचिका को स्वीकार कर सुप्रीम कोर्ट ने जहां केंद्र सरकार को झटका दिया है वहीं उसके इस रुख का दूरगामी महत्व यह है कि इसमें आम आदमी को किसी भी जनसेवक के खिलाफ प्रधानमंत्री या अदालत के पास जाने का रास्ता खुल गया है। शीर्ष अदालत ने साफ-साफ कहा है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत किसी जनसेवक के खिलाफ शिकायत दर्ज करना आम आदमी का संवैधानिक अधिकार है। दरअसल प्रधानमंत्री कार्यालय ने सुप्रीम कोर्ट में दायर शपथ पत्र में कहा था कि स्वामी की चिट्ठी सही नहीं थी। चूंकि स्वामी को लम्बे समय बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से मिले जवाब पर एतराज था, इसलिए माननीय अदालत ने यह भी कहा है कि अगर चार महीने के भीतर आरोपित व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं मिलती तो मान लिया जाना चाहिए कि संबंधित प्राधिकरण ने अनुमति दे दी है। यह मामला नवम्बर 2008 का है जब 2जी स्पेक्ट्रम मामले में तत्कालीन दूरसंचार मंत्री की भूमिका को देखते हुए डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर ए. राजा के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के बारे में कहा था। उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से इसका जवाब करीब 16 महीने बाद मार्च 2010 को मिला था जिसमें कहा गया था कि उनकी अर्जी समय पूर्व है यानि तब सरकार मामले की तह में जाने की इच्छुक नहीं थी। सिर्प यही नहीं कि 2जी घोटाले से संबंधित अहम मुकदमों को स्वामी अदालत में ले गए हैं, यह भी स्वामी की पहल के बाद ए. राजा को मंत्री पद छोड़ना पड़ा और उनकी गिरफ्तारी हुई। सुप्रीम कोर्ट की इस फैसले से मंत्रियों व आला अफसरों की एक बड़ी सुरक्षा दीवार जरूर टूट गई है जिसकी आड़ में आमतौर पर भ्रष्ट जनसेवक भ्रष्टाचार का मामला होते हुए भी बच निकलते थे। अब तक होता यह था कि किसी सरकारी अधिकारी या जनसेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज करने से पहले सरकार से अनुमति लेनी पड़ती थी और अकसर ऐसी इजाजत की अर्जियों पर या तो कोई फैसला नहीं होता था या इजाजत नहीं दी जाती थी। अगर इजाजत न देने की कोई ठोस वजह न हो तो आसान तरीका यह था कि कोई फैसला न लेना हो। ताजा फैसले ने दो बड़े मानदंड स्थापित कर दिए हैं। पहला यह कि भ्रष्टाचार का मामला चलाने की अर्जी को सरकार अनिश्चितकाल तक अब नहीं टाल सकती और दूसरा हमारे लोकतंत्र में हर नागरिक को यह हक है कि वह सरकार पर भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई के लिए दबाव डाले। यह एक दूरगामी प्रभाव डालने वाला महत्वपूर्ण फैसला है।
Anil Narendra, Corruption, Daily Pratap, P. Chidambaram, Subramaniam Swamy, Supreme Court, Vir Arjun
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