Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
Published on 25th February 2012
अनिल नरेन्द्र
मौत की सजा का सामना कर रहे दोषियों की दया याचिकाओं पर फैसला करने में केंद्र और राज्य सरकार की ओर से हो रही देर पर सुप्रीम कोर्ट सख्त हो गई है। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की एक पीठ ने कहा कि सभी राज्यों के गृह सचिव अपने-अपने प्रदेशों की सभी दया याचिकाओं के मामले केंद्र को तीन दिन के अन्दर भेजें, जिसके बाद केंद्र उसे इसके समक्ष पेश करेगा। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यदि राज्य सरकार की ओर से रिकार्ड नहीं भेजे जाते हैं तो जो कुछ भी होगा उसके जिम्मेदार वह खुद होंगे। पीठ ने यह भी कहा कि यह बात सामने आई है कि दया याचिकाएं 11 साल बाद निपटाई जाती हैं, जो बहुत लम्बा समय है। पीठ ने केंद्र सरकार की इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया कि दोषी कैदियों की ओर से बार-बार याचिकाएं दायर करने के चलते फैसले में देर हुई। हालांकि पीठ ने कहा कि दोबारा याचिका दायर करने पर कोई रोक नहीं है। न्यायालय पंजाब के आतंकवादी देवेन्द्र पाल सिंह भुल्लर की ओर से दायर एक याचिका की सुनवाई कर रहा था। तिहाड़ जेल की वैबसाइट पर 31 दिसम्बर 2011 तक के आंकड़ों के मुताबिक जेल में फिलहाल 24 सजायाफ्ता कैदी ऐसे हैं जिन्हें फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। इनमें 23 पुरुष और एक महिला है। इनमें प्रमुख हैं तंदूर कांड, लाजपत नगर बम ब्लास्ट, संसद पर हमला, रायसीना ब्लास्ट, लाल किले पर हमला। इस समय 28 मुजरिमों ने राष्ट्रपति के पास माफी की अपील कर रखी है। राष्ट्रपति के पास 19 मामलों में दया याचिकाएं पेन्डिंग हैं। इन्हें सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है, जिसके बाद राष्ट्रपति के पास संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत इन मुजरिमों ने दया याचिका दाखिल कर रखी है। इनमें सबसे ज्यादा यूपी के केस हैं। यूपी के छह मामले पेन्डिंग हैं जबकि कर्नाटक के चार मामलों में फैसला आना है। एक तो ऐसा मामला है जिसमें दया याचिका 1999 से पेन्डिंग है। हरियाणा से संबंधित इस मामले में धर्मपाल नामक मुजरिम पर पांच लोगों की हत्या का केस साबित हो चुका है। धर्मपाल जब रेप केस में जमानत पर था तब उसने पांच लोगों की हत्या की थी। तमिलनाडु की कोर्ट में बम ब्लास्ट कर एक शख्स की हत्या के मामले में फांसी का सजा पाए शेख मीरन, सेल्वम और राधा कृष्णन का केस 2000 से पेन्डिंग है। पेन्डिंग मामलों में बहुचर्चित सोनिया और संजीव का केस भी है। सोनिया ने अपने सौतेले भाई और उसकी पूरी फैमिली को मौत के घाट उतार दिया था। मृतकों में 45 दिन, ढाई साल और चार साल के बच्चे भी शामिल थे। इतना ही नहीं, सोनिया ने अपनी मां, पिता और बहन को भी मार दिया था। भारत के संविधान के अनुच्छेद-72 में किए गए प्रावधान के तहत देश के राष्ट्रपति को किसी भी दोषी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई मौत की सजा को माफ करने या उसमें बदलाव करने का विशेष अधिकार है। अनुच्छेद-161 के तहत ऐसा ही अधिकार किसी भी प्रदेश के राज्यपाल को भी मिला हुआ है। राजनीतिक कारणों से दया याचिकाओं के निपटारे की बात तो फिर भी समझ आती है पर साधारण मुजरिम (सोनिया इत्यादि) की याचिका के निपटारे पर इतना समय लगना, समझ से बाहर है।
Anil Narendra, Daily Pratap, Mercy Petitione, Supreme Court, Vir Arjun
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