दिल्ली सहित पांच राज्यों के
विधानसभा चुनाव एक तरह से सेमीफाइनल हैं जो 2014 के लोकसभा चुनाव की फाइनल दिशा और
दशा तय करेंगे। हालांकि दोनों प्रमुख पार्टियां कांग्रेस व भाजपा इन्हें सेमीफाइनल
होने से इंकार कर रही हैं। दोनों पार्टियों की साख दांव पर लगी है और साथ-साथ दांव
पर है नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी की प्रतिष्ठा। वैसे यह जरूरी नहीं कि जो संकेत
विधानसभा चुनावों में मिले वही परिणाम लोकसभा चुनाव में भी आएं। इसकी वजह यह है कि
पिछले दो लोकसभा चुनाव में इन राज्यों के चुनावी नतीजों की झलक लोकसभा चुनाव में
नजर नहीं आई लेकिन यह जरूर है कि विधानसभा चुनाव के नतीजों को कांग्रेस और भाजपा
दोनों ही अपने-अपने तरीकों से भुनाने की कोशिश करेंगी। 2008 के विधानसभा चुनावों
में चार प्रमुख विधानसभा चुनावों में मध्यप्रदेश की कुल 230 सीटों में भाजपा 143
और कांग्रेस 71 सीटें जीती थी। छत्तीसगढ़ की कुल 90 सीटों में भाजपा 49 और
कांग्रेस 38। राजस्थान की कुल 200 सीटों में कांग्रेस 96 और भाजपा 78 सीटों पर
विजयी रही और दिल्ली की कुल 70 सीटों में कांग्रेस 42 और भाजपा 23 सीटें जीती थी,
चलिए अब नजर डालते हैं इन चार राज्यों के संभावित परिणामों पर। इन चार राज्यों में
कांग्रेस और भाजपा की सीधी टक्कर है। दिल्ली में बेशक आप पार्टी की मौजूदगी है पर
मैं उसे ज्यादा गंभीर नहीं मानता। ज्यादा से ज्यादा वह वोट कटवा साबित हो सकती है
और इक्का-दुक्का सीट जीत सकती है। फिलहाल इन राज्यों में हिसाब बराबर है, दो
राज्यों में कांग्रेस सरकार है और दो राज्यों में भाजपा सरकार। अगर चारों राज्यों
में ही भाजपा की जीत होती है तो भाजपा का हौंसला बढ़ेगा और इससे न सिर्प लोकसभा
चुनाव में उसकी हालत मजबूत होगी बल्कि उसके पीएम पद के केंडिडेट नरेन्द्र मोदी की दावेदारी मजबूत
होगी। लेकिन इससे राहुल गांधी और कांग्रेस की स्थिति गड़बड़ा जाएगी जिसका सीधा असर
केंद्र की सरकार पर पड़ेगा। यह भी हो सकता है कि उस हालत में कुछ सहयोगी दल
कांग्रेस का 2014 लोकसभा चुनाव में साथ छोड़ दें। लेकिन अगर उल्टा होता है और
कांग्रेस चारों राज्यों में जीत जाती है तो भाजपा और नरेन्द्र मोदी दोनों के लिए
भारी मुसीबत होगी। कांग्रेस उस सूरत में मोदी पर सीधा हमला करेगी और कहेगी कि मोदी
सिर्प मीडिया की क्रिएशन है जिनमें कोई दम-खम नहीं। हाल ही में केंद्रीय मंत्री
जयराम रमेश ने कहा था कि अगर मोदी इन राज्यों में हारते हैं तो उनका बुलबुला फूट
जाएगा। अगर विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए खराब होते हैं तो कांग्रेस 2014
से पहले ही भाजपा के खात्मे की बात कहने लगेगी। वैसे भाजपा और कांग्रेस दोनों ही
हार की स्थिति में अपने बचाव के लिए भी तैयार हैं। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह कहते
हैं कि विधानसभा चुनावों के नतीजों का नरेन्द्र मोदी के ऊपर टिप्पणी के जैसे देखने
का सवाल ही नहीं उठता। वहीं कांग्रेस प्रवक्ता मीम अफजल विधानसभा चुनावों को
लोकसभा से पहले सेमीफाइनल मानने से इंकार करते हैं। अगर तीन राज्यों में भाजपा और
एक में कांग्रेस जीते तो उस हालत में भी यह जरूर मान लिया जाएगा कि भाजपा आगे है।
ऐसे में कांग्रेस की एक हार को वह भुनाने की कोशिश करेगी और चाहेगी कि यह माना जाए
कि लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ते देश का कांग्रेस के प्रति मोहभंग हो चुका है। दूसरी
ओर अगर कांग्रेस तीन राज्यों में जीतती है तो उसके लिए यह नतीजे संजीवनी बूटी की
तरह काम कर सकते हैं। उस सूरत में कांग्रेस यह भी कहेगी कि राहुल गांधी नरेन्द्र
मोदी पर भारी पड़े हैं। कांग्रेस यही बताने का प्रयास करेगी कि भ्रष्टाचार व
महंगाई कोई बड़ा मुद्दा नहीं और आज भी उसे जन समर्थन प्राप्त है। अगर ऐसा होता तो
भाजपा का फिर एनडीए बनाना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि बहुत कम पार्टियां खुलकर भाजपा
का साथ देंगी। अगर दो-दो पर परिणाम छूटता है तो यह स्थिति होगी कि न हारे हम और न
जीते तुम, लेकिन ऐसा होने की संभावना बहुत कम है। प्राप्त संकेतों से मध्यप्रदेश
और राजस्थान में भाजपा का पलड़ा भारी है। छत्तीसगढ़ में मतदान का ज्यादा होना
कांग्रेस के हक में जा सकता है। रही बात दिल्ली की तो कांटे की टक्कर है, कुछ
सीटें कांग्रेस की पक्की हैं तो कुछ भाजपा की। बाकी सीटों पर असल मुकाबला है।
देखना यह होगा कि आप पार्टी किसके वोट ज्यादा काटती है? कुल मिलाकर चार राज्यों के
विधानसभा चुनाव परिमाम तय करेंगे 2014 के
लोकसभा चुनाव के संभावित परिणाम।
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