रियो
ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के निराशाजनक प्रदर्शन के बीच नरसिंह पंचम यादव पर वैश्विक
डोपिंग निरोधक एजेंसी (वाडा)
की तरफ से चार साल के बैन लगाने से इस होनहार पहलवान के लिए तो भारी
धक्का है ही, लेकिन इस हश्र में हमारा सारा खेल प्रबंधन भी कोई
कम जिम्मेदार नहीं है। पुरुष फ्री स्टाइल कुश्ती के 74 किलो वर्ग
का प्रतिभागी नरसिंह ओलंपिक से पहले दो टेस्ट में विफल पाया गया। लेकिन इस पर गंभीरता
जताने की बजाय हमारे खेल तंत्र ने इसे जिस गैर पेशेवर ढंग से लिया वह केवल हैरान करने
वाला नहीं था बल्कि इससे भारतीय खेलों के माथे पर दाग भी लग गया। अगर नाडा ने तभी इस
पर कुछ कार्रवाई की होती तो ओलंपिक के दौरान देश की ऐसी किरकिरी नहीं होती। पर सबने
बगैर ठोस सबूत के नरसिंह के इस तर्प को स्वीकार कर लिया कि उसके खिलाफ साजिश हुई है।
अगर साजिश हुई ही थी तो क्या उसके सबूत नहीं जुटाने चाहिए थे और कसूरवारों के खिलाफ
कार्रवाई नहीं होनी चाहिए थी? सिर्प यही नहीं कि दो-दो डोप टेस्ट में फेल होने के बावजूद उसे क्लीन चिट देने में जल्दबाजी की गई,
क्लीन चिट क्यों दी गई, इस बारे में कुछ सार्वजनिक
नहीं किया गया, बल्कि हमारा खेल तंत्र शायद यह भी उम्मीद कर रहा
था कि वाडा हमारी इन सफाइयों को जस का तस स्वीकार कर लेगा। जबकि तथ्य यह है कि डोपिंग
मामलों में खुद को निर्दोष बताने का तर्प ज्यादातर बेअसर साबित होता है। वैसे तो दुनिया
के हर देश में इस तरह के कारनामे होते हैं, लेकिन उनमें खेल की
भावना इतनी प्रबल है और वहां अच्छे व सफल खिलाड़ियों की संख्या इतनी ज्यादा है कि यह
सब चीजें अपवाद मान कर किनारे कर दी जाती हैं। लेकिन भारतीय खेल जगत में जब नरसिंह
यादव जैसे चन्द ही विकल्प हों तो उनकी अच्छाई राष्ट्रीय उत्सव का विषय बनेगी तथा बुराई
अवसाद का। दुनिया में जहां भी मनुष्य हैं वहां ईर्ष्या की भावना रहेगी और वह अपने प्रतिद्वंद्वी
को पछाड़ने की कोशिश भी करेगा। किन्तु उसी के साथ एक स्वस्थ खेल भावना भी जुड़ी है
जो वहां के खिलाड़ियों द्वारा पदकों की बारिश कर देती है। वाडा ने नरसिंह को डोपिंग
का दोषी तो पाया ही है, यह भी कहा कि सोनीपत के साई कैंपस में
सीसीटीवी कैमरों की मौजूदगी में किसी भी खिलाड़ी के भोजन में मिलावट करना असंभव है।
हमारा खेल तंत्र यह तो कह रहा है कि खेल पंचाट यानि वाडा ने यह फैसला अचानक लिया है,
लेकिन वह यह नहीं बता रहा कि रियो में नरसिंह का बचाव करने के लिए उसने
न तो कोई वकील की व्यवस्था ही की, बल्कि वाडा की दलीलों व आरोपों
का संतोषजनक जवाब भी नहीं दिया। पूरा प्रकरण हमारी खेल व्यवस्था की पोल खोलता है और
नाडा की साख भी प्रभावित करता है।
-अनिल नरेन्द्र
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