Tuesday 30 August 2016

प्रधानमंत्री की अगले तीन ओलंपिक के लिए कार्यबल गठन का स्वागत है

हम प्रधानमंत्री की इस घोषणा का स्वागत करते हैं कि 2020, 2024 और 2028 में होने वाले अगले तीन ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों का प्रभावी प्रदर्शन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से विस्तृत कार्ययोजना बनाने के लिए कार्यबल का गठन किया जाएगा। यह कार्यबल देश में खेल सुविधाओं, खिलाड़ियों के प्रशिक्षण, चयन प्रक्रिया और अन्य संबंधित मामलों में समूची रणनीति तैयार करेगा। कार्यबल में घरेलू विशेषज्ञों के अलावा बाहरी लोगों को भी शामिल किया जाएगा। इस कार्यबल का गठन अगले कुछ दिनों में ही किया जाएगा। अगर कोई कहे कि भारत रियो ओलंपिक में सबसे फिसड्डी देश रहा तो वह गलत नहीं होगा। भारत पदक जीतने वाले देशों की सूची में 67वें पायदान पर रहा। भारत ने एक रजत और एक कांस्य पदक जीता। लेकिन सवा अरब से अधिक आबादी वाला भारत प्रति व्यक्ति के लिहाज से दो पदकों के संग रियो में पदक जीतने में 87वें स्थान पर है। 24 ओलंपिक खेलों में भाग लेकर भारत महज 28 पदक ही जीत पाया है। इससे ज्यादा पदक तो अमेरिकी तैराक माइकल फेलप्स अकेले ही जीत चुका है। रियो ओलंपिक का सबसे बड़ा सितारा शायद उसेन बोल्ट है। बोल्ट ने अपने तीसरे ओलंपिक में भी सौ मीटर, दो सौ मीटर और 4द्ध100 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीतकर साबित कर दिया कि वह और जमैका दुनिया में गति के शहंशाह हैं। बोल्ट या अन्य श्रेष्ठ धावकों पर नजर डाली जाए तो यह सहज ही समझ में आता है कि एथलेटिक्स की दुनिया में अश्वेतों का बोलबाला है। अश्वेत लोग अगर दौड़-कूद के क्षेत्र में वर्चस्व बनाए हुए हैं तो वेट लिफ्टिंग, जेबेलिन थ्रो, हैमर थ्रो जैसे खेलों में यूरोपीय या यूरोशियाई नस्ल के श्वेत खिलाड़ियों का दबदबा है। इसी तरह एशियाई खिलाड़ियों का वर्चस्व बैडEिमटन या टेबल टेनिस में तो है, लेकिन टेनिस में ज्यादातर श्वेत खिल़ाड़ी छाए हुए हैं। बास्केटबॉल में अश्वेत खिलाड़ियों का जलवा है, लेकिन फुटबॉल में यूरोप तथा लातिन अमेरिका की टीमों का ही बोलबाला है। भारतीय पहलवान आमतौर पर निचले वजन वर्गों में काफी सफल हैं, लेकिन हेवीवेट या मिडिल वेट में सफल भारतीय पहलवानों का नाम याद आना मुश्किल है। मुक्केबाजी में भी कमोबेश यही हाल है। हॉकी में हम लोग फिलहाल पिछड़ रहे हैं, लेकिन यह मानना होगा कि भारतीय या पाकिस्तानी जैसी हॉकी खेलते हैं, उसका जवाब नहीं है। क्रिकेट एक ऐसा खेल है, जिसका आविष्कार गलती से इंग्लैंड में हो गया था। यह भी दिलचस्प है कि जिन लोगों का मूल स्थान पश्चिमी अफ्रीका है, वे लोग छोटी दूरी की फर्राटा दौड़ में तो माहिर हैं, लेकिन लंबी दूरी की फर्राटा दौड़ में वे कहीं नहीं हैं। इसके विपरीत केन्या या इथियोपिया जैसे उत्तरी या पूर्वी अफ्रीका के खिलाड़ियों का लंबी दूरी की दौड़ में वर्चस्व है, लेकिन छोटी दूरी की दौड़ में यह नदारद हैं। इन विभिन्नताओं की वजह काफी हद तक अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों की शारीरिक बनावट में है, जो हजारों सालों से किसी खास तरह के भूगोल, जलवायु और सामाजिक-सांस्कृतिक माहौल से बनती है और शरीर की कोशिकाओं में मौजूद जीन्स में दर्ज हो जाती है। इसलिए अफ्रीका से हजारों मील दूर जमैका में बसे पश्चिमी अफ्रीकी मूल के उसेन बोल्ट और उनके साथी अब भी छोटी दूरी की दौड़ में अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं। क्षमता को अभ्यास और प्रशिक्षण से तराशने की जरूरत है। हमें स्कूल स्तर से ही विशेष योग्यता रखने वाले बच्चों पर ध्यान देना चाहिए। उन खेलों में ज्यादा ध्यान केंद्रित करना होगा जिनमें बीते परफार्मेंस विश्वस्तरीय रहे हों। ट्रेनिंग के साथ-साथ खानपान, रहने आदि की सुविधा भी देनी होगी। एक सुझाव यह भी है कि भारत को अमेरिका, ब्रिटेन व चीन में ओलंपिक तैयारी की क्या कार्ययोजना है? पर यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ओर ध्यान दिया है। उम्मीद करते हैं कि अगर योजना पर गंभीरता से क्रियान्वयन होगा तो भविष्य में बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

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