Thursday 4 August 2016

बारिश न हो तो मुसीबत, हो तो तबाही

अजीब समस्या है, बारिश न हो तो मुसीबत, हो तो मुसीबत। लगातार सूखे से परेशान देश बारिश के लिए टकटकी लगाए था, लेकिन बारिश हुई भी तो शहरों से लेकर दूरदराज गांवों में हाहाकार मच गया। बिहार-असम जैसे राज्य बाढ़ से अमूमन पीड़ित होने वाले इलाके तो सांसत में हैं ही, जो हमारे योजनाकारों की प्राथमिकता में शायद ही कभी आ पाए हैं। तमाम तरह की योजनाओं के केंद्र में रहने वाले, विकास की दमक से चमकते महानगरों में भी त्राहि-त्राहि मच गई है। मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु बेहाल हैं तो गुड़गांव व दिल्ली भी सड़कों पर पानी जमा होने से पस्त हो जाती है। सबसे बुरा हाल तो मिलेनियम सिटी नाम से मशहूर नए विकासवादी शहर गुड़गांव का हुआ, जिसे हाल में हरियाणा सरकार ने गुरुग्राम का नाम दिया है। वहां दो घंटे जमकर बारिश क्या हुई कि 10 घंटे तक गाड़ियों का जाम लग गया। लोग दोपहर चार बजे दिल्ली के लिए रवाना हुए और पहुंचे अगले दिन सुबह। सारे काम-धंधे ठप हो गए। पर जो हुआ वह एकदम हैरानी का विषय नहीं है। जिस तरह से नगर नियोजन हो रहा है उसमें बुनियादी ढांचे से जुड़ी कई अहम बातों की उपेक्षा की जाती रही है। मसलन पानी की निकासी की। इसलिए मानसून के दिनों में सड़कों पर अकसर जलभराव हो जाता है और उसके चलते आवाजाही थम जाती है। गुड़गांव में भी जाम लगने की बुनियादी वजह यही थी। पर यह कोई सामान्य जाम नहीं था। यह ऐसा जाम था जो इसमें फंसे लोगों के लिए किसी दुःस्वप्न से कम नहीं था। कहते हैं कि आउटसोर्सिंग, ऑटो और मेडिकल उद्योग को करोड़ों की चपत लग गई। असल में मुंबई-चेन्नई की बाढ़ से लेकर बेंगलुरु और गुरुग्राम की इस तरह तबाही की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि ये हमारे भविष्य के विकास के मानक और स्मार्ट शहर बताए जा रहे हैं। इन्हीं की नकल कर देश में 100 स्मार्ट शहर बनाने की योजना है। जाहिर है, इनकी योजनाओं में मूलभूत सरंचना का शायद न्यूनतम ख्याल रखा गया है। न यह ढंग से सोचा गया कि पानी की निकासी की व्यवस्था कैसी हो, न यह देखा गया कि उनकी सड़कें कितने वाहन ढोने लायक हैं। वहां पानी की निकासी के जो प्राकृतिक और पुराने जल क्षेत्र थे उन्हें बिल्डरों के लालच ने हड़प लिया। महज फौरी राहत देने के कोई उपाय नहीं है। असम के दौरे पर गए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह बाढ़ पीड़ितों को मुआवजे का ऐलान तो कर आए पर क्या वे अपनी सरकार को किसी स्थायी हल की दिशा में सोचने को भी प्रेरित करेंगे। इस अपूर्व स्थिति को आई-गई बात मान लेने के बजाय यह गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि इस त्रासदी से क्या सबक लिया गया है?

-अनिल नरेन्द्र

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