Thursday 1 February 2024

ज्ञानवापी में मस्जिद से पहले था मंदिर

पहले था मंदिर ज्ञानवापी परिसर की भारतीय पुरातत्व सव्रेक्षण (एएसआईं) की सव्रे रिपोर्ट के मुताबिक ज्ञानवापी बड़ा हिदू मंदिर था। सव्रे के दौरान 32 जगह मंदिर से संबंधित प्रामाण मिले हैं। पक्षकारों को जो सव्रे रिपोर्ट दी गईं है, वह 839 पेज की है। पािमी दीवार हिदू मंदिर का हिस्सा है। इसे आसानी से पहचाना जा सकता है जो स्तंभ मिले हैं, वो भी मंदिर के हैं।

उनका दोबारा इस्तेमाल किया गया है। मुकदमें के पक्षकारों ने सव्रे रिपोर्ट बृहस्पतिवार को सार्वजनिक कर दी। इसके मुताबिक, देवनगरी, ग्रांथों तेलगु व कन्नड़ भाषा में आलेख भी मिले हैं। जनार्दन, रुद्र और विश्वेश्वर के शिलालेख भी हैं। एक जगह महामुक्ति मंडप लिखा हुआ है, जिसे अहम साक्ष्य माना गया है। हिन्दु पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया, एएसआईं ने माना है कि मंदिर सत्रहवीं शताब्दी में तोड़ा गया था।

इसकी तिथि 2 सितम्बर 1669 हो सकती है। हिन्दू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन के अनुसार, एएसआईं रिपोर्ट में कहा गया है कि 13वीं सदी में औरंगजेब ने विश्वनाथ मंदिर की संरचना को नष्ट कर मस्जिद का निर्माण कराया था। मंदिर के वुछ हिस्से में बदलाव कर पुन: इस्तेमाल किया गया। रिपोर्ट के अनुसार मासिर-ए-आलमगिरी में उल्लेख है कि 2 सितम्बर 1669 को सम्राट के आदेश पर औरंगजेब के अधिकारियों ने विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त किया था। ज्ञानवापी में मस्जिद निर्माण औरंगजेब के शासन के 20वें वर्ष यानि 1676-77 में किया गया।

बरामदे व अन्य हिस्सों की मरम्मत 1792-93 में की गईं। ज्ञानवापी में तहखाना बनाते समय मंदिर के स्तंभों का ही उपयोग किया गया था।

देवी-देवताओं की मूर्तियों व नक्काशी अंदर वास्तुशिल्प ज्ञानवापी के एस-2 तहखाने में पेंकी गईं मिट्टी के नीचे दबे पाए गए। ज्ञानवापी में 34 शिलालेख मिले हैं। जो पहले मौजूद हिन्दू मंदिर के पत्थर के हैं। अंदर की तरफ ललाटबिब, पक्षियों और विवृत छवि वाला छोटा प्रावेश द्वार है। बाहर की तरफ सजावट के लिए उकेरे जानवरों से पता चलता है कि पािमी दीवार हिदु मंदिर का शेष हिस्सा है। कला व वास्तुकला के आधार पर इस पूर्व संरचना को हिन्दु मंदिर के रूप में पहचाना जा सकता है। हिन्दु महिला वादी ने कहा, हिन्दू पक्ष का दावा सच साबित हुआ है।

विश्वेश्वर मंदिर ध्वस्त कर उसे मस्जिद का रूप दिया गया। अधिवक्ता जैन का दावा है कि मौजूदा वास्तुशिल्प अवशेष, दीवारों पर सजाए गए सांचे, वेंद्रीय कक्ष में कर्ण रथ व प्राति रथ मिले हैं। पािमी कक्ष की पूवी दीवार पर बड़ा सजाया प्रावेश द्वार है। ज्ञानवापी परिसर की दीवारों और अवशेष पर हिन्दु धर्म से जुड़े कईं शब्द व चित्र पूर्व में यहां मंदिर होने का साक्ष्य दे रहे हैं। मार्बल व बलुआ पत्थर के कईं शिवलिग और नदी संकेत दे रहे हैं कि यहां पूर्व में विधि-विधान से पूजा-पाठ होता रहा होगा। इसमें एक मार्बल पर 2.5 सेमी का शिवलिग सही स्थिति में मिला है। इसी प्राकार 8.5 सेमी लंबे, 5.5 सेमी ऊंचे व 4 सेमी चौड़े पत्थर का नंदी भी ठीक स्थिति में है। एएसआईं ने सव्रे रिपोर्ट में बाकायदा इसका उल्लेख भी किया है। एएसआईं की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि पिलर और स्तंभों पर अंकित प्याला (हिन्दु पौराणिक प्राणी) की कईं आवृतियों को न केवल काटा गया है। बल्कि उस पर पूल-पत्ती की श्रंखला बनाकर भ्रमिक करने की कोशिश भी की गईं है। रिपोर्ट में स्वास्तिक को लेकर बताया गया है कि यह दुनिया के सबसे प्राचीन प्रातीकों में एक माना जाता है। भारत में इस प्रातीक को हिन्दू शुभ मानते हैं। साथ ही भगवान शिव का त्रिशूल है। यह दिव्य प्रातीक व प्रायोग हिन्दुओं की ओर से किया जाता है।

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