Thursday, 15 February 2024

व्हाइट पेपर बनाम ब्लैक पेपर

कांग्रेस और भाजपा के बीच ताजा बयानबाजी में अर्थव्यवस्था एक अहम मुद्दा बन गई है। साल 2004 से 2014 के बीच कांग्रेस के नेतृत्व वाली युनाइटेड प्रोग्रेसिव अलांयस (यूपीए) सरकार के दौरान आर्थिक क्षेत्र में प्रदर्शन पर भाजपा की नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) ने एक श्वेत पत्र (व्हाइट पेपर) जारी किया है। इसमें उसने 2004 से 2014 तक के वक्त को विनाशकाल कहा है। वहीं इसकी तुलना 2014 से लेकर 2023 के दौर से की है जिसे उसने अमृतकाल कहा है। वहीं एनडीए के इस फैसले के जवाब में कांग्रेस ने 10 साल अन्याय काल के नाम से एक ब्लैक पेपर जारी किया है जिसमें 2014 से लेकर 2024 के बीच की बात की गई है। दोनों ही दस्तावेज 50 से 60 पन्ने के हैं और इनमें आंकड़ें, चार्ट की मदद से आरोप और दावे किए गए हैं। कांग्रेस के अनुसार उसका दस्तावेज सत्ताधारी भाजपा के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक अन्यायों पर केंfिद्रत है जबकि सरकार का जारी श्वेत पत्र यूपीए सरकार की आर्थिक गलतियों पर रोशनी डालने तक सीमित है। अर्थव्यवस्था को लेकर कांग्रेस का कहना है कि पीएम मोदी का कार्यकाल भारी बेरोजगारी, नोटबंदी और आधे-अधूरे तरीके से गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) व्यवस्था लागू करने जैसे विनाशकारी आर्थिक फैसलों, अमीरों-गरीबों के बीच बढ़ती खाई और निजी निवेश के कम होने का गवाह रहा है। दूसरी तरफ भाजपा ने बेड बैंक लोन में उछाल, बजट घाटे से भागना, कोयला से लेकर 2जी स्पेक्ट्रम तक हर चीज के आवंटन में घोटालों की एक श्रृंखला और फैसला लेने में अक्षमता जैसे कई आरोप कांग्रेस पर लगाए हैं। भाजपा का कहना है कि इसकी वजह से देश में निवेश की गति धीमी हुई है। विभिन्न विश्लेषणों से शायद ये पता चले के दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे के बारे में जो दावे कर रही हैं, कुछ हद तक वो सही बातें भी हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि दोनों ओर के आरोपों में कुछ सच्चाई है। दोनों ने बुरे फैसले लिए, कांग्रेस ने टेलीकॉम और कोयला में और भाजपा ने नोटबंदी और जीएसटी में। लेकिन यूपीए बनाम एनडीए के 10 वर्षों के तुलनात्मक आर्थिक आंकड़ों पर एक नजर डालने से दोनों के प्रदर्शन की मिली-जुली तस्वीर सामने आती है। आर्थिक विकास ः लेकिन सच यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक आर्थिक संकट के मुकाबले कोविड महामारी के कहर का असर अधिक था। इसलिए ताज्जुब नहीं कि एनडीए सरकार के दौरान एक दशक का जीडीपी औसत कम रहा। कोविड ने अर्थव्यवस्था के सामने जो समस्याएं पैदा की वो बहुत बड़ी थी। इस महामारी ने इस दशक के दौरान कुछ सालें के लिए अर्थव्यवस्था की गति को धीमा कर दिया। इस सरकार ने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और अन्य चीजों के अलावा अंतिम पायदान तक प्रशासन में सुधार करके आने वाले सालों में तेजी से विकास की नींव रखी है। निर्यात में वृद्धि दर एनडीए के मुकाबले यूपीए के दौरान तेज थी ये दोनों ही कई कारणों की वजह से है, जैसे भूमि अधिग्रहण और फैक्ट्रियों के लिए पर्यावरण की मंजूरी मिलने में मुश्किलें। लंबे समय से देश को मैनुफ्कैचरिंग और निर्यात वृद्धि कम रही, हालांकि इसके कई कारण रहे। मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) पर प्रदर्शन के मामले में भी एनडीए का प्रदर्शन यूपीए के मुकाबले कम ही है। आर्थिक नीति निर्धारण भी एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जो अलग-अलग सरकारों के बीच चलती रहती है, जिसमें सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकार से विरासत में अच्छे-बुरे काम मिलते हैं। कभी-कभी एक सरकार द्वारा की गई पहल या कदम को आने वाली सरकार आगे बढ़ाती है और मजबूत करती है और कभी-कभी पूर्ववर्ती सरकार की नीति को बदल देती है।

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