Tuesday, 13 February 2024
लिव-इन और यूसीसी
इस सम्पादकीय और पूर्व के अन्य संपादकीय देखने के लिए अपने इंटरनेट/ब्राउजर की एड्रेस बार में टाइप करें पूूज्://हग्त्हाह्ंत्दु.ंत्दुेज्दू.म्दस् सहजीवन यानि बिना विवाह के युवा जोड़ों के साथ रहने पर लंबे समय से बहस होती रही है। समाज का एक बड़ा हिस्सा अनुसित मानता है। मगर निजता के संवैधानिक अधिकारों के चलते इस पर कानूनी अंवुश लगाना विवादों से घिरा हुआ है। अब उत्तराखंड सरकार ने सहजीवन को अवैध तो करार नहीं दिया है। मगर मर्यांदित करने का प्रायास जरूर किया है। समान नागरिक संहिता विधेयक में ुउसने एक प्रावधान सहजीवन को लेकर भी शामिल किया है। उत्तराखंड विधानसभा ने यूनिफार्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता या यूसीसी) को मंजूरी दे दी है। इस नए बिल के एक अहम प्रावधान के अनुसार धर्म, लिग और सेक्स को लेकर व्यक्ति की पसंद की परवाह किए बगैर राज्य के सभी निवासियों पर समान पर्सनल लॉ लागू होगा। हालांकि वुछ आदिवासी समुदायों को इस बिल के दायरे से बाहर रखा गया है। बिल के इस एक प्रावधान ने इस पूरे बिल से अधिक ध्यान खींचा है। भारत के अधिकतर हिस्सों में अब भी साथ में रह रहे अविवाहित जोड़ों को पसंद नहीं किया जाता। इस तरह के रिश्तों को आमतौर पर लिव-इनरिलेशनशिप कहा जाता है। इस नए बिल के तहत एक पुरुष और एक महिला जोड़े को पार्टनर्स कहा गया है। नए बिल के अनुसार इस तरह के जोड़े को अपने लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में रजिस्ट्रार को बयान देना होगा, जो इस मामले में तीस दिनों के भीतर जांच करेंगे। जांच के दौरान जरूरी होने पर पार्टनर्स को और अधिक जानकारी या सबूत पेश करने को कहा जा सकता है। लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में दिए बयान को रजिस्ट्रार स्थानीय पुलिस के साथ साझा करेंगे और अगर जोड़े में किसी एक पार्टनर की उम्र 21 साल से कम हुईं तो उनके अभिभावकों को भी सूचित किया जाएगा। अगर जांच के बाद अधिकारी संतुष्ट हैं तो वो एक रजिस्टर में पूरी जानकारी दर्ज करेंगे और जोड़े को सर्टिफिकेट जारी करेंगे। ऐसा न होने पर पार्टनर्स को सर्टिफिकेट न जारी करने के कारणों के बारे में बताया जाएगा। बिल के अनुसार अगर जोड़े में एक पार्टनर शादीशुदा है या नाबालिग है या फिर रिश्ते के लिए जोरजबरदस्ती या फिर धोखाधड़ी सहमति ली गईं है तो रजिस्ट्रार लिव-इन रिलेशनशिप की रजिस्ट्री करने से इंकार कर सकते हैं। जानकारी दिए बगैर अगर कोईं जोड़ा एक महीने से अधिक तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहता है तो इस मामले में उन्हें तीन महीने की जेल, 10 हजार रुपए का जुर्माना या दोनों ही हो सकते हैं। सहजीवन को मर्यांदित बनाने के पीछे सरकार की मंशा समझी जा सकती है। दरअसल, पिछले वुछ वर्षो में बिना विवाह के साथ रह रहे प्रोमी युगल के बीच अनबन और विच्छेद की अनेक अप््िराय घटनाएं हो चुकी हैं। कईं लड़कियों की बेरहमी से हत्या कर दी गईं। सहजीवन संबंधी प्रावधान में स्पष्ट उल्लेख है कि पंजीकरण के बाद साथ रहने वाले प्रोमी युगल के संबंधों को कानूनी रूप से वैध माना जाएगा और महिला को वे सभी अधिकार प्राप्त होंगे, जो विवाह के बाद प्राप्त होते हैं। मगर निजता के समर्थक वुछ लोगों को यह कानून नैतिक निगरानी रखने का प्रायास लग सकता है। निजता के अधिकार की रक्षा अवश्य होनी चाहिए, मगर इस अधिकार की आड़ में या इसका बेजा फायदा उठाते हुए अगर वुछ लोग समाज और व्यवस्था के सामने मुश्किल पैदा करते हैं तो उन्हें अनुशासित करने की जिम्मेदारी से भला कोईं राज्य वैसे बच सकता है।
—— अनिल नरेन्द्र
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