Tuesday 20 February 2024

गुप्त चंदा वोटर्स से विश्वासघात


लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक दूरगामी ऐतिहासिक फैसले में 2018 में लाए गए इलेक्टोरल बांड योजना को असंवैधानिक बताते हुए तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने आदेश दिया कि इलेक्टोरल बांड खरीदने वाले, इसे भुनाने वालों और इससे मिली राशि को 13 मार्च तक सार्वजनिक किया जाए। दरअसल, इस योजना के तहत सियासी दलों को 1 करोड़ रुपए या इससे गुणांक में चंदा देने वालों का नाम गोपनीय रखने की छूट थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गुप्त चंदा वोटर्स से विश्वासघात है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बांड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लघंन है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा]िक राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद से उसके बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है। उन्होंने कहा कि काले धन पर काबू पाने का एकमात्र तरीका इलेक्टोरल बांड नहीं हो सकता है। इसके और भी कई विकल्प हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को राजनीतिक पार्टियों को मिले इलेक्टोरल बांड की जानकारी देने का निर्देश दिया है। राजनीतिक दलों को मिले चंदे पर कोर्ट ने कहा है कि एसबीआई चुनाव आयोग को जानकारी मुहैया कराएगा और चुनाव आयोग इस जानकारी को 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा। फैसला सुनाने वाली बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी परदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र हैं। जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने फैसले की तारीफ की है। प्रशांत भूषण ने कहा कि इस फैसले से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती मिलेगी। इस फैसले का हमारे लोकतंत्र पर लंबा असर पड़ेगा। कोर्ट ने बांड स्कीम को खारिज कर दिया है। इस स्कीम में ये नहीं पता लगता था कि किसने कितने रूपए के बांड खरीदे और किसे दिए। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे सूचना के अधिकार का उल्लघंन माना है। इसे लेकर जो संशोधन किया गया था, जिसके तहत कोई कंपनी किसी भी राजनीतिक दल को कितना भी पैसा दे सकती है। कोर्ट ने वो भी रद्द कर दिया है। प्रशांत भूषण ने कहा, कोर्ट ने कहा कि ये चुनावी लोकतंत्र के खिलाफ है क्योंकि ये बड़ी कंपनियों को केवल प्लेइंग फील्ड खत्म करने का मौका देती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो भी पैसा इस स्कीम के तहत जमा किया गया है, वो भारतीय स्टेट बैंक चुनाव आयोग को दे और आयोग की तरफ से इसकी जानकारी आम लोगों को मुहैया कराई जाएगा। पारदर्शिता के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि फैसला सूचना के अधिकार की जीत है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इलेक्टोरल बांड के जरिए मिलने वाले अज्ञात असीमित कार्पोरेट फंडिंग पर रोक लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के अंतरिम आदेश के बाद से खरीदे गए इलेक्टोरल बांड का विवरण सार्वजनिक करने का निर्देश दिया है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालत ने सर्वसम्मति से फैसला दिया है। उन्होंने कहा कि इस पर एक राय उनकी थी और एक जस्टिस संजीव खन्ना की। लेकिन निष्कर्ष को लेकर सभी की सहमति थी। इलैक्टोरल बांड के खिलाफ जो याचिकाएं दायर की गई थी, उनमें कहा गया था कि यह सूचना के अधिकार का उल्लघंन है। इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि कार्पोरेट फंडिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ है। चुनाव में खर्चों और पारदर्शिता पर नजर रखने वाली संस्था एसोसिएशन फोर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानि एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 2022-23 में कार्पोरेट डोनेशन का 90 फीसदी बीजेपी को मिला। 2022-23 में राष्ट्रीय पार्टियों ने 850.438 करोड़ रुपए चंदा मिलने की घोषणा की थी। इसमें केवल बीजेपी को 719.85 करोड़ रुपए मिले थे और कांग्रेस को 79.92 करोड़ रुपए। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आठ साल से ज्यादा वक्त से लंबित था और इस पर सभी की निगाहें इसलिए भी टिकीं थी क्योंकि इस मामले का नतीजा साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर बड़ा असर डाल सकता है। इस मामले पर सुनवाई शुरू होने से पहले भारत के अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने इस स्कीम का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि ये स्कीम राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदों में साफ धन के इस्तेमाल को बढ़ावा देनी है। साथ ही अटार्नी जनरल ने शीर्ष अदालत के सामने तर्क दिया था कि नागरिकों को उचित प्रतिबंधों के अधीन हुए बिना कुछ भी और सब कुछ जानने का सामान्य अधिकार नहीं हो सकता है। इस बात का संदर्भ उस तर्क से जुड़ा हुआ है। जिसके तहत ये मांग की जा रही है कि राजनीतिक पार्टियों को ये जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए कि उन्हें कितना धन चंदे के रूप में किससे मिला है? निर्वाचन आयोग ने 2019 में चुनावी बांड योजना को सुविधाजनक बनाने के लिए राजनीतिक फंडिग से जुड़े कई कानूनों में बदलावों पर सुप्रीम कोर्ट में चिंता व्यक्त की थी। आयोग ने कहा था कि इससे पारदर्शिता पर गंभीर असर होगा। आयोग ने 27 मार्च 2019 को हलफनामा दायर कर बताया था कि इस मुद्दे पर उसने केंद्र सरकार को भी लिखा है। निर्वाचन आयोग ने यह भी कहा था कि विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) 2010 में बदलाव से राजनीतिक दलों को अनियमित विदेशी फंडिग की अनुमति मिलेगी, जिससे भारतीय नीतियां विदेशी कंपनियों से प्रभावित हो सकती हैं। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा है कि फैसला लोकतंत्र के लिए वरदान है। इससे लोगों का लोकतंत्र में विश्वास बढ़ेगा और विश्वास बहाल होगा। पिछले पांच-सात वर्षों में सुप्रीम कोर्ट का यह सबसे ऐतिहासिक निर्णय है। वहीं पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा का कहना था कि चुनाव आयोग ने हमेशा पारदर्शिता पर जोर दिया है। आयोग का यह लगातार रुख रहा है कि सिस्टम और अधिक पारदर्शी होना चाहिए। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्ण मूर्ति ने कहा फैसला स्वच्छ लोकतंत्र के हित में है। चुनावी बांड योजना राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता के लिए सही नहीं है। आप कैसे जानेंगे कि यह साफ पैसा है या गंदा पैसा? सरकार के काला धन रोकने के दावे को समानुपतिकता और दोहरी समानुपतिकता के न्यायिक सिद्धांतों के तराजू पर खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, चुनावों में मतदाता सही निर्णय ले इसके लिए राजनीतिक दलों को चंदे के बारे में जानकारी मिलना जरूरी है। इससे गवर्नेंस में खुलापन आएगा। यह आगामी चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकता है।

- अनिल नरेन्द्र

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