Friday 30 August 2019

प्रेस की आजादी वन-वे ट्रैफिक नहीं हो सकती

सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज पोर्टल द वायर की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर तीखी व कठोर टिप्पणी की है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता सर्वोच्च है। लेकिन यह वन-वे ट्रैफिक नहीं हो सकती, पीत पत्रकारिता को जगह नहीं मिलनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मंगलवार को यह तीखी टिप्पणी तब की जब वह द वायर की तरफ से अपनी याचिका वापस लेने के लिए लगाई अर्जी पर सुनवाई कर रही थी। गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह की तरफ से दाखिल मानहानि मामले में गुजरात हाई कोर्ट की तरफ से न्यूज पोर्टल पर मुकदमा चलाने के लिए दिए गए आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई थी। करीब डेढ़ वर्ष से लंबित याचिका वापस लेने की इजाजत न्यूज पोर्टल ने दी थी। जय ने अवमानना याचिका द वायर में लिखे पर दाखिल की थी। मानहानि के केस को निरस्त करने वाली याचिका को जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ ने वापस लेने की अनुमति तो दे दी, लेकिन तीखी नाराजगी जताने से नहीं चूकी। पीठ में जस्टिस बीआर शाह और जस्टिस गवई भी शामिल थे। जय शाह को स्पष्टीकरण के लिए केवल चार-पांच घंटे का समय देने और बिना स्पष्टीकरण के ही खबर जारी करने पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने पूछा कि यह किस तरह की पत्रकारिता है? न्यायपालिका के बारे में कुछ न्यूज पोर्टल पर जारी होने वाली खबरों का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे हम भी पीड़ित रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले में स्वत संज्ञान ले सकता है। लेकिन अंतत याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी। याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल और सॉलिसिटर जनरल के बीच तीखी बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की पत्रकारिता संस्थाओं का बहुत ज्यादा नुकसान कर चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि इस मामले में पहले ही काफी समय बीत चुका है इसलिए निचली कोर्ट को जल्द से जल्द मामले की सुनवाई पूरी करनी चाहिए। गौरतलब है कि वायर ने 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद हुए गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले जय शाह की एक कंपनी में कई गुना ज्यादा लेनदेन की खबर छापी थी। खबर को इस तरह से पेश किया गया था कि जय शाह की कंपनी को अनुचित लाभ मिला हो। जय शाह ने खबर छापने वाले न्यूज पोर्टल, उसके संस्थापक, संपादकों, प्रबंध संपादक, लोक संपादक, खबर लिखने वाले पत्रकार के खिलाफ कोर्ट में मानहानि का केस दर्ज किया था। शुरुआती सुनवाई में आरोपों को सही पाते हुए केस चलाने का फैसला लिया था। मगर इससे बचने के लिए सभी आरोपियों ने गुजरात हाई कोर्ट से केस रद्द करने की गुहार लगाई थी। हाई कोर्ट ने मानहानि के आरोपों को सही मानते हुए केस चलाने की इजाजत दी थी। हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सभी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।

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