Wednesday, 7 August 2019

क्या बिजली फ्री देने की घोषणा केजरीवाल का मास्टर स्ट्रोक है?

क्या राजधानीवासियों के लिए 200 यूनिट बिजली फ्री देने की घोषणा कर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने मास्टर स्ट्रोक खेला है? विधानसभा चुनाव के पूर्व केजरीवाल ने करीब 50 लाख वोटरों को सीधा फायदा पहुंचाने की कोशिश की है। वैसे यह इसी साल की तीसरी बड़ी राहत की घोषणा है। महिलाओं के लिए फ्री बस व मेट्रो, अनधिकृत कॉलोनियों में जल्द रजिस्ट्री और अब यह 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली। आम आदमी पार्टी के बिदके वोट बैंक को साधने की कोशिश में मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनके मंत्री तेजी से जुट गए हैं। जहां लगातार नई राहत की घोषणाएं की जा रही हैं, वहीं मोदी विरोधी छवि को बदलने की कोशिश में लगे हैं केजरीवाल। बिजली हॉफ, पानी माफ के नारे से सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया अरविन्द केजरीवाल दूसरी पारी भी उसी नाव की सवारी करके पार करने की कोशिश में दिख रहे हैं। जुलाई में उन्होंने जितनी फ्री योजनाओं की घोषणा की और वादों को पूरा करने में तेजी दिखाई है उसके सियासी फायदे साफ झलक रहे हैं। विरोधी दल भाजपा और कांग्रेस भी इन घोषणाओं को सियासी कहने के अलावा किसी तरह की बढ़त बनाती नहीं दिख रही है। मुफ्त बिजली का सीधा असर राजनीतिक परिदृश्य पर पड़ सकता है। अक्तूबर से फरवरी तक जब एसी का प्रयोग कम होता है तो ज्यादातर घरों में बिजली की खपत घटती है जिससे 200 यूनिट फ्री बिजली का लाभ काफी लोगों को मिल सकता है। केजरीवाल ने कहा कि बड़े अधिकारियों व नेताओं को फ्री बिजली मिल रही है, इसलिए आम लोगों को भी इसका लाभ मिलना चाहिए। अगर खास लोगों को मिल रही सुविधा को मैं आम आदमी तक पहुंचा रहा हूं तो यह गलत नहीं है। विपक्ष भी इस बात को अच्छी तरह से समझ रहा है कि बिजली का मुद्दा हर घर से जुड़ा है। ऐसे में बिजली बिलों में कमी का यह फैसला विपक्षी पार्टियों के लिए मुसीबत का सबब भी बन सकता है। दरअसल सरकार और विपक्ष दोनों को ही पता है कि बिजली बिल का मुद्दा चुनाव में काफी असर डाल सकता है। इतिहास भी इस बात का गवाह रहा है कि बिजली-पानी के मुद्दे पर जनता किसी भी सरकार के भाग्य का फैसला कर सकती है। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली भाजपा के दबाव में आकर फिक्स व लोड सरचार्ज घटाया है, यह कहना है दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी का। हमने इसके लिए एलजी से पहले ही मांग की थी। केजरीवाल ने बिजली कंपनियों की लूट स्वीकार कर ली है। ताजा कदम चुनावी हथकंडा है। चुनावी हथकंडा है या चुनाव जिताने वाला क्रांतिकारी कदम यह तो अगले विधानसभा में ही पता चलेगा?

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