Sunday 25 August 2019

बिस्कुट कंपनी पारले पर जीएसटी की मार

भारतीय अर्थव्यवस्था की मंदी का असर देश की सबसे बड़ी बिस्कुट निर्माता कंपनी पारले पर देखने को मिल रहा है। इस वजह से आने वाले दिनों में पारले के 10 हजार कर्मचारियों की नौकरी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक पारले अपने प्रॉडक्ट्स के इस्तेमाल में सुस्ती की वजह से हजारों कर्मचारियों की छंटनी कर सकती है। बता दें कि पूरे देश में प्रसिद्ध पारले जी बिस्कुट का निर्माता है पारले। पारले जी आज घर-घर की पसंद बन चुका है और अगर इस पर प्रभाव पड़ा तो उसका बहुत बुरा असर पड़ेगा। कंपनी के कैटेगरी हैड मयंक शाह के मुताबिक यह सुस्ती गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) की वजह से आई है। मयंक शाह ने कहा कि हम लगातार सरकार से बिस्कुट पर जीएसटी घटाने की मांग कर रहे हैं। मगर सरकार ने हमारी बात नहीं मानी या कोई विकल्प नहीं बताया तो हमें मजबूरन आठ से 10 हजार लोगों की छंटनी करनी पड़ सकती है। मयंक शाह ने बताया कि हमने सरकार से 100 रुपए प्रति किलो या उससे कम कीमत वाले बिस्कुट पर जीएसटी घटाने की मांग की है। दरअसल जीएसटी लागू होने से पहले 100 रुपए प्रति किलो से कम कीमत होने वाले बिस्कुट पर 12 प्रतिशत टैक्स लगाया जाता था। लेकिन सरकार ने दो साल पहले जब जीएसटी लागू किया तो सभी बिस्कुटों को 18 प्रतिशत स्लैब में डाल दिया। इसका असर यह हुआ कि बिस्कुट कंपनियों को इनके दाम बढ़ाने पड़े और इस वजह से बिक्री में गिरावट आ गई है। मयंक शाह के मुताबिक पारले ने बिस्कुट पर पांच प्रतिशत दाम बढ़ाया है। इस वजह से बिक्री में बड़ी गिरावट आई है। शाह ने बिक्री में गिरावट की वजह बताते हुए कहा कि कीमतों को लेकर ग्राहक बहुत ज्यादा भावुक होते हैं। वे यह देखते हैं कि उन्हें कितने बिस्कुट मिल रहे हैं। इस अंतर को समझने के  बाद ग्राहक सतर्प हो जाते हैं। यहां बता दें कि 90 साल पुरानी बिस्कुट कंपनी पारले के 10 प्लांट अपने 125 कांट्रैक्ट वाले हैं। इनमें एक लाख कर्मचारी जुड़े हुए हैं। कंपनी का सालाना रवेन्यू करीब 9940 करोड़ रुपए का है। बीते दिनों पारले के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरेक्टर वरुण बेरी ने भी बिक्री में गिरावट का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि ग्राहक पांच रुपए के बिस्कुट पैकेट भी खरीदने से कतरा रहे हैं। बेरी ने कहा कि हमारी ग्रोथ सिर्प छह प्रतिशत हुई है। मार्केट ग्रोथ हमसे भी सुस्त है। इससे पहले मार्केट रिसर्च फर्म नीलसन ने कहा था कि इकोनॉमिक स्लो डाउन की वजह से कंज्यूमर गुड्स इंडस्ट्री ठंडी पड़ी है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में खपत घट गई है। उनकी रिपोर्ट के मुताबिक नमकीन, बिस्कुट, मसाले, साबुन में अधिक सुस्ती दिख रही है।

-अनिल नरेन्द्र

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