सुषमा स्वराज राजनीति से क्या गईं, 18 दिन
बाद ही राजनीति के अरुण का अस्त हो गया। अरुण जेटली नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद उन्हें
9 अगस्त को एम्स में भर्ती कराया गया था। जेटली सॉफ्ट टिश्यू कैंसर से
पीड़ित थे। अजीब इत्तेफाक रहा कि सुषमा और जेटली दोनों का जन्म 1952 में हुआ था। दोनों की मृत्यु भी इसी साल अगस्त में हो गई। दोनों पहली बार वाजपेयी
सरकार में केंद्रीय मंत्री बने। सुषमा 1996 में और जेटली
1999 में। दोनों नेता प्रतिपक्ष रहे। सुषमा लोकसभा में और अरुण राज्यसभा
में विपक्ष के नेता चुने गए थे। दोनों ने ही सुप्रीम कोर्ट में वकालत भी की थी। दोनों
की किडनी ट्रांसप्लांट और दोनों की मौत भी एम्स में हुई। मैं अरुण जी से पिछले साल
सर्दियों में मिला था। उन्होंने मेरे पिता स्वर्गीय के. नरेन्द्र
जी से जुड़े कई किस्से बताए। छात्र राजनीति के समय जब अरुण कोई कार्यक्रम रखते थे तो
वह मेरे पिता स्वर्गीय के. नरेन्द्र को अध्यक्षता करने के लिए
बुलाते थे। एक बार पिताश्री ने अरुण जी से पूछा कि आप हर बार मुझे ही क्यों बुलाते
हैं? आपको कोई और अध्यक्षता करने के लिए नहीं मिलता? इस पर अरुण जी ने कहा कि आप ही आसानी से मिल जाते हो इसलिए हम आपको ही बुलाते
हैं। अरुण जेटली का जाना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के लिए
बहुत बड़ा नुकसान है। अरुण जेटली प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संकटमोचक भी थे और
मोदी के चाणक्य भी। जब भी भाजपा किसी समस्या में फंसती थी अरुण जेटली ही उसे बाहर निकालते
थे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण तहलका मामले में फंसे तो अटल जी को
सलाह दी कि पार्टी के टॉप नेता चन्दा न लें। अटल जी मान गए। कोषाध्यक्ष ही चन्दा लेगा,
ऐसी व्यवस्था का अरुण जेटली की ही सलाह पर अमल हुआ। 2002 के गुजरात दंगों के बाद मोदी की कानूनी दिक्कतें दूर करने की जिम्मेदारी जेटली
ने ही उठाई। लोग इसलिए उन्हें मोदी का चाणक्य भी मानते थे। जेटली ने भाजपा में जूनियर
और सीनियर नेताओं को प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी के नाम पर राजी किया।
2010 में सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में कोर्ट ने अमित शाह के गुजरात
में प्रवेश पर रोक लगाई थी। तब शाह मदद मांगने जेटली के घर पहुंचे। उन्होंने शाह के
वकीलों को गाइड किया और तब जाकर अमित शाह पर रोक हटी। अरुण जेटली एक नेक, दरियादिल इंसान थे। कुछ बातें अब पता लगती हैं। जहां अरुण जेटली के बच्चे पढ़े
उन्होंने अपने ड्राइवर और कुक के बच्चों को भी वहीं पढ़ाया। दान वही जो गुप्त दान हो
और मदद वही जो दूसरे हाथ को भी पता न चले। पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली भी कुछ ऐसा
ही किया करते थे। जेटली अपने निजी स्टाफ के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए कई महत्वपूर्ण
जिम्मेदारियां निभाते थे। उनके परिवार की देखरेख भी अपने परिवार की देखरेख की तरह करते
थे, क्योंकि वे उन्हें अपने परिवार का हिस्सा मानते थे। दूसरी
ओर कर्मचारी भी परिवार के सदस्य की तरह जेटली की देखभाल करते थे। उन्हें समय पर दवा
देनी हो या डाइट, सबका खूब ख्याल रखते थे। जेटली ने एक अघोषित
नीति बना रखी थी जिसके तहत उनके कर्मचारियों के बच्चे चाणक्यपुरी स्थित उसी कार्मल
कान्वेंट स्कूल में पढ़ते थे, जहां जेटली के बच्चे पढ़े हैं।
अगर कर्मचारी का कोई प्रतिभावान बच्चा विदेश में पढ़ने का इच्छुक होता था तो उसे विदेश
में वहीं पढ़ने भेजा जाता था, जहां जेटली के बच्चे पढ़े हैं।
ड्राइवर जगन और सहायक पदम सहित करीब 10 कर्मचारी जेटली के परिवार
के साथ पिछले दो-तीन दशकों से जुड़े हुए हैं। इनमें से तीन के
बच्चे अभी भी विदेश में पढ़ रहे हैं। सहयोगी का एक बेटा डॉक्टर, दूसरा बेटा इंजीनियर, जेटली परिवार के खानपान की पूरी
व्यवस्था देखने वाले जोगेन्द्र की दो बेटियों में से एक लंदन में पढ़ रही हैं। संसद
में साये की तरह जेटली के साथ रहने वाले सहयोगी गोपाल भंडारी का एक बेटा डॉक्टर और
दूसरा इंजीनियर बन चुका है। आज के युग में ऐसा कौन करता है? जेटली
की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। भाजपा ने तो अपना दिग्गज, विजनरी
नेता खोया है और देश ने एक नेक इंसान। हम उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देते हैं और उनके
परिवार को इस भारी क्षति का मुकाबला करने के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें
शक्ति दे, धैर्य दे। उन्हें इतना संतोष तो होगा कि अरुण जी के
जाने से सिर्प उन्होंने नहीं पूरे देश ने एक महान, नेक सपूत खो
दिया जिसकी कमी पूरी होना मुश्किल लगती है।
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