Friday 20 September 2013

मुजफ्फरनगर दंगों की असलियत का आजतक ने पर्दाफाश किया

हमने जैसा इस कॉलम में लिखा था और सुदर्शन टीवी के एक कार्यक्रम में कहा भी था कि उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव की सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगों को भड़काया और जानबूझ कर समय रहते कार्रवाई नहीं की वह धीरे-धीरे साबित होने लगा है। इन दंगों को लेकर अखिलेश सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। एक तरफ अदालती डंडा, दूसरी तरफ आईबी की रिपोर्ट और रही-सही कसर आज तक के स्टिंग ऑपरेशन ने निकाल दी है। मंगलवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सपा सरकार के दौरान हुए सभी दंगों पर सरकार से जवाब-तलब किया। दंगा पीड़ितों की राहत को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले से ही सुनवाई कर रहा है। हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के जस्टिस इम्तियाज मुर्तजा और जस्टिस अरविन्द कुमार त्रिपाठी की बैंच ने सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर की याचिका पर सपा सरकार में हुए सभी दंगों पर दो सप्ताह में जवाब मांगा है। राज्य के अपर महाधिवक्ता को सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद बैंच ने दंगों के संबंध में दायर मुकदमों की स्थिति से भी अवगत कराने को कहा गया है। याचिका में मौजूदा सरकार और उसके अधिकारियों पर एक समुदाय के प्रति झुकाव और अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई में शिथिलता बरतने का आरोप है। उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दंगों की बाबत याचिका पर सुनवाई करेगा। अब बात करते हैं इंटेलीजेंस ब्यूरो यानि आईबी की रिपोर्ट की। आईबी ने मुजफ्फरनगर दंगों पर एक रिपोर्ट दी है जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जो सांप्रदायिक हिंसा हुई उसके बारे में खुफिया ब्यूरो ने अगस्त माह में उत्तर प्रदेश सरकार को आगाह किया था। कुछ और राज्यों को भी इस संबंध में चेताया गया था। इसके कुछ दिन बाद गृह मंत्रालय ने भी बिहार, मध्य प्रदेश के साथ उत्तर प्रदेश को भी एडवाइजरी जारी कर कहा था कि गणेश चतुर्थी के दौरान सांप्रदायिक हिंसा का खतरा है। दंगों पर आईबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मुजफ्फरनगर का दंगा रुक सकता था, लेकिन सरकार ने ही पुलिस प्रशासन के हाथ बांध दिए थे। अलर्ट के बावजूद संबंधित इलाकों में न तो फोर्स बढ़ाई गई और न ही कोई एक्शन प्लान बना। आईबी सूत्रों के मुताबिक कवाल के तिहरे हत्याकांड के बाद यदि निष्पक्ष कार्रवाई  होती तो बवाल नहीं बढ़ता लेकिन सरकार में नम्बर दो की हैसियत वाले एक मंत्री ने पुलिस प्रशासन को कार्रवाई न करने के निर्देश दिए थे। आईबी ने पश्चिम उत्तर प्रदेश की हिंसा को सुनियोजित बताया है जो अधिक चिन्ताजनक है। इसका असर पूरे देश में पड़ सकता है। मुजफ्फरनगर और उसके आसपास के क्षेत्रों में हुई हिंसा पर सिलसिलेवार अगर नजर डालें तो यह हूबहू ऐसी ही नजर आती है मानो इसकी बाकायदा पटकथा लिखी गई हो। जिस छोटी घटना के बाद यह बड़ी हिंसा हुई वैसी घटनाएं तो पश्चिम उत्तर प्रदेश में साल में दो दर्जन से ज्यादा घटती हैं। वहां इससे पहले किसी भी ऐसी  छोटी घटनाओं ने सांप्रदायिक हिंसा का रूप नहीं लिया। इसी वजह से सभी को और आईबी को शक है कि यह हिंसा सुनियोजित थी। बड़ी पंचायतें भी शक के घेरे में हैं क्योंकि तनाव के माहौल के बीच भारी भीड़ जुटी और उसमें भड़काऊ भाषण हुए। इसके साथ-साथ पाकिस्तान की चार साल पुरानी सीडी का पहले सोशल मीडिया पर डालना और उससे अफवाहों का गरम होना भी पूरी तरह सुनियोजित लगता है। जब इसे सोशल मीडिया पर रुकवाया गया तब यह बड़ी तादाद में लोगों के बीच बंटने लगी। इस सीडी को लेकर पुलिस प्रमुख की अपील अभी तक अखबारों में छप रही है कि यह सीडी पाकिस्तान की है और सालों पुरानी है। जिससे जाहिर होता है कि पुलिस भी महसूस कर रही है कि उक्त सीडी ने जहर का बीज बोने में बड़ी भूमिका निभाई। इस सीडी का बड़े पैमाने पर आना और कई जिलों में बड़ी तादाद में बंटना सुनियोजित नहीं है तो और क्या है? 80 हजार लोगों को पंचायत के बाद घर वापसी के दौरान लोगों पर घात लगाकार कई स्थानों पर हमला होना क्या इस पूरे वाकया को सुनियोजित नहीं बताता? मौके से एके-47 के खोखों का मिलना भी यही इशारा कर रहे हैं कि साजिशकर्ता पूरी तैयारी से थे। दंगे की जड़ रहे कवाल कांड के बाद सपा नेताओं के सियासी दबाव ने किस तरह पुलिस-प्रशासन के हाथ बांध दिए थे उसकी पुष्टि आज तक के स्टिंग ऑपरेशन ने उजागर और साबित कर दिया है। मंगलवार और बुधवार को आज तक टीवी चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन का प्रसारण किया तो पुलिस-प्रशासन और सियासी हलकों में खलबली मच गई। खुफिया कैमरे में सीओ जानसठ जगतराम जोशी और एसडीएम आरसी त्रिपाठी के अलावा एसपी क्राइम कल्पना सक्सेना, एसओ फुगाना आरएस गौर, एसओ शाहपुर सत्य प्रकाश सिंह, एसएचओ रामपाल सिंह, एसएचओ मीरपुर एके गौतम और हटाए गए इंस्पेक्टर बुढ़ाना ऋषिपाल सिंह भी बोलते नजर आ रहे हैं। वह साफ कहते दिखाई दे रहे हैं कि कवाल में शाहनवाज और मलिकपुर में सचिन और गौरव की हत्या के बाद तलाशी अभियान चलाकर सात संदिग्ध आरोपियों को हिरासत में लिया था। तभी एक कद्दावर सपा नेता ने फोन कर सातों को छुड़वा  दिया। एफआईआर भी फर्जी कराई गई। एसएचओ मीरपुर बोल रहे हैं कि सपा नेता ने डीएम-एसएसपी को हटवाया जबकि दोनों अधिकारी अच्छा काम कर रहे थे, चैनल के सनसनीखेज खुलासे के साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार और खासतौर पर आजम खान ने स्टिंग ऑपरेशन को ही फर्जी (कट एंड पेस्ट) बता दिया। अगर यह सीडी फर्जी है, कट एंड पेस्ट है तो अखिलेश और आजम खान बताएंगे कि उन्होंने उन पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों करनी शुरू कर दी जो इस रिपोर्ट में है? मंगलवार किसी का तबादला कर दिया गया तो किसी को लाइन अटैच करने के आदेश जारी कर दिए गए। आठ सितम्बर को फुगाना इलाके में सबसे ज्यादा लोग मारे गए। थाने के सैकेंड अफसर आरएस मगौर ने बताया कि कम से कम 16 लोगों की मौत हुई। उन्होंने बताया कि मौके पर पुलिस फोर्स बहुत कम थी। उनके पास असलाह भी नहीं है और जो हैं वह चलते ही नहीं... जो चल गया तो मानो ऊपर वाले की कृपा है। अगर ऊपर वाला गुस्सा हो जाए तो वो भी नहीं चलेगा। स्टिंग ऑपरेशन से यह भी साबित हुआ कि सपा सरकार ने दंगा बढ़ाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। दंगा प्रभावित इलाके के एक पुलिस अफसर ने स्टिंग में बताया कि लखनऊ से सपा के बड़े नेता आजम खान का फोन आया। इसके बाद सभी आरोपियों को छोड़ना पड़ा। नेता ने कहा, `जो हो रहा है होने दो।'

-अनिल नरेन्द्र

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