Tuesday, 3 September 2013

यह सजा नहीं इनाम है ः ऐसे मामलों में उम्र का न मिले लाभ

23 साल की पैरामेडिकल स्टूडेंट के साथ 16 दिसम्बर को वसंत विहार में चलती बस में गैंगरेप के मामले में पहला फैसला आ गया है। लेकिन इस फैसले से पूरा देश निराश एवं गुस्से में है। यह सजा नहीं इनाम है। जिस बस में `निर्भया' पर सबसे ज्यादा जुल्म ढाए और जिसकी वजह से उसकी जान गई उसे मात्र तीन साल की सजा ही मिली। इसमें से भी वो दिन काट दिए जाएंगे जो वो बाल सुधार गृह में बिता चुका है यानि अब महज दो साल आठ महीने की कैद में रहेगा। बाकी की सजा जेल में नहीं सुधार गृह में ही काटेगा। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने नाबालिग आरोपी को शनिवार को यह फैसला सुनाया। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत इसमें ज्यादा समय के लिए सुधार गृह नहीं भेजा जा सकता। लेकिन पीड़िता के परिजन संतुष्ट नहीं हैं। फैसला सुनने के बाद पीड़िता की मां ने कहा कि यही करना था तो इतना इंतजार करने की क्या जरूरत थी? हमें बेवकूफ बनाया गया है। इससे संदेश गया है कि नाबालिग कितना भी गम्भीर अपराध कर ले वह छूट ही जाएगा। जुवेनाइल बोर्ड ने नाबालिग को गैंगरेप और हत्या का दोषी करार दिया है। लड़की के दोस्त से लूटपाट और हत्या की कोशिश के आरोप से बरी कर दिया है। पीड़िता के पिता की प्रतिक्रिया थी ः मैं तो 29 दिसम्बर को तभी टूट गया था जब बेटी को खो दिया था। फिर भी मैंने हिम्मत जुटाई और जुवेनाइल बोर्ड की कार्यवाही में यह सोचकर शामिल हुआ कि नाबालिग को फांसी की सजा मिलेगी। अब लगता है  लड़की पैदा होना ही एक जुर्म है। राज्य या पीड़ित पक्ष फैसले को चुनौती भी नहीं दे पाएंगे। क्योंकि आरोपी को जुवेनाइल एक्ट के तहत अधिकतम सजा मिली है। हां आरोपी चाहे तो फैसले को चुनौती दे सकता है। इस जघन्य अपराध में कुल छह आरोपी थे। एक की मौत हो चुकी है। अब चार लोगों का फैसला बाकी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उन्हें सख्त से सख्त सजा मिले। सबसे दुखद पहलू तो यह है कि 16 दिसम्बर के इस घिनौने हत्याकांड में इस नाबालिग लड़के ने ही हैवानियत का नंगा नाच किया था। चलती बस में गैंगरेप के दौरान उसने दरिन्दगी की सारी हदें पार कर दी थीं। नाबालिग लड़के पर यह भी आरोप है कि उसने ही युवती के नाजुक अंगों को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाने में हिस्सा लिया जो कि उसकी मौत का कारण बना। इस मामले में यह बात चर्चा का विषय बन गई है कि ऐसे गम्भीर व घिनौनी हरकत करने वाले लड़के को क्या सिर्प नाबालिग के नाम पर बच्चा मान लिया जाए और बाल सुधार गृह में भेज दिया जाए या इस कानून पर फिर से संशोधन के लिए विचार किया जाए? लेकिन मौजूदा कानून के तहत जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के समक्ष ही उसका मामला चलाया गया। उसके बर्थ सर्टिफिकेट के आधार पर घटना के वक्त उसकी उम्र 17 साल छह माह पाई गई थी। हालांकि चार जून को अब आरोपी बालिग यानि 18 साल का हो चुका है। इस मामले में जुवेनाइल बोर्ड ने मार्च के महीने में अपनी जांच शुरू की थी और पांच जुलाई को जांच की प्रक्रिया पूरी कर ली गई थी। पुलिस के अनुसार घटना के वक्त नाबालिग कंडक्टर सीट पर बैठा था और मुकेश बस चला रहा था। नाबालिग ने ही आरकेपुरम सेक्टर चार के पास आवाज लगाकर कारपेंटर को बस में बिठाया था और उसके बाद उससे उसका मोबाइल व रुपए लूट लिए और उसे बस से धक्का दे दिया। इसके बाद जब बस मुनिरका बस स्टॉप के पास पहुंची तो द्वारका जाने की बात कहते हुए पीड़िता व उसके दोस्त को बिठा लिया गया, जब उन लोगों ने उतरना चाहा तो इसी नाबालिग ने बस का दरवाजा बन्द कर दिया और फिर सभी आरोपियों ने हैवानियत की वह दास्तान लिखी जिसे कभी भी भूला नहीं जा सकता। इस फैसले से सफदरजंग में पीड़िता के इलाज में शामिल चिकित्सकों की टीम भी बहुत नाखुश है, क्षुब्ध है। युवती के इलाज में शामिल टीम के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने कहा, `युवती के इलाज के दौरान हम भी तड़प उठे थे और दुआ कर रहे थे कि वह किसी तरह से ठीक हो जाए।' युवती के साथ हुए जघन्य कृत्य की सजा से आरोपी सिर्प उम्र को ढाल बनाकर बच रहा है। यह हम सबके लिए शर्मनाक है। इस फैसले पर पुनर्विचार होना चाहिए जानी-मानी मनोचिकित्सक अरुणा बूटा का मानना है कि नाबालिग अगर गम्भीर अपराध करता है तो उसे अपराध के आधार पर ही सजा मिलनी चाहिए। नाबालिग ऐसी घिनौनी हरकतें नहीं करते वह छोटी-मोटी शैतानियां करते हैं। जब यह नाबालिग इतना बड़ा क्राइम कर सकता है जो बड़ी उम्र के आदमी भी नहीं करते तो यह जुवेनाइल कैसे? फिर सारा कुछ एक स्कूल सर्टिफिकेट के आधार पर ही तय हुआ है। क्यों नहीं इसका और टेस्ट कराकर सही उम्र तय की गई। दुख से कहना पड़ता है कि हम इस जुवेनाइल एक्ट में संशोधन करके एक सशक्त इतिहास बनाने से चूक गए। वह दिल्ली नृशंसता का हैवान था किन्तु नाबालिग होना उसकी ताकत व ढाल बन गई। इसलिए कानून की वयस्क धाराओं ने निर्लजता के साथ उसे ऐसी सजा सुनाई कि खुद सजा भी शर्मसार हो गई। यहीं हम अवसर गंवा बैठे। सारे शोधों से पता चलता है कि अगर कोई बच्चा जेनेकिली क्रिमिनल माइंडेड है तो उसके सुधारने की गुंजाइश न के बराबर है। ऐसे नाबालिगों की कितनी ही काउंसलिंग क्यों न की जाए सुधार गृह से निकलने के बाद भी वह अपराध करेंगे। सामूहिक बलात्कार जैसा गम्भीर कृत्य करने वाले नाबालिग आरोपी का ब्रेन टेस्ट करवाया जाना चाहिए था। समाजसेवी स्वामी अवतार बाबा जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड द्वारा फैसला सुनाने के मौके पर मौजूद थे। उन्होंने सवाल उठाया कि नाबालिग द्वारा किए गए बर्बर कृत्य के लिए इतनी सजा बहुत कम है। इससे समाज के समक्ष ऐसे लोगों के खिलाफ अच्छा संदेश नहीं जाएगा और इससे बच्चों व महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में कमी नहीं आएगी। यह जरूरी है कि ऐसे गम्भीर मामलों में नाबालिग के लिए कानून में बदलाव लाया जाए।

-अनिल नरेन्द्र

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