Saturday 14 September 2013

क्या उत्तर प्रदेश के मुसलमानों का सपा से मोह भंग हो गया है?

मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों ने यूपी की सत्ताधारी अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार की चूलें इस कदर हिला दी हैं कि डेढ़ साल पहले इकट्ठा किया व्यापक जनाधार अब बुरी तरह छिन्न-भिन्न हो रहा है। सपा की इस सरकार को बाहरी विरोध के साथ-साथ अन्दर से उठ रही विरोधी आवाजों से भी जूझना पड़ रहा है। जिन मुसलमानों के वोट के लिए सपा की सरकार बदनाम हुई आज वही मुस्लिम संगठन उनकी सरकार का इस्तीफा मांग रहे हैं, अखिलेश सरकार की नाकामी मुस्लिम संगठनों को बहुत नागवार गुजरी है। मुस्लिम नेताओं का कहना है कि साफ हो गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार में मुस्लिम समुदाय महफूज नहीं रह सकता। जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने बुधवार को मुजफ्फरनगर का दौरा कर सांप्रदायिक हिंसा में हुई तबाही का जायजा लेने के बाद दिल्ली में कहाöसाफ हो गया है कि अखिलेश सरकार की हुकूमत में मुस्लिम समुदाय के जानमाल की हिफाजत नहीं हो सकती। दंगे से 30 हजार लोग बेघर हुए हैं। जो शिविरों में हैं वे जान गंवाने के डर से गांव लौटने को तैयार नहीं है। वहां राष्ट्रपति शासन लगाना जरूरी हो गया है। कई अन्य मुस्लिम संगठनों ने भी प्रधानमंत्री को चिट्ठी भेजकर अखिलेश सरकार की बर्खास्तगी की मांग की है। जमात-ए-इस्लामी हिन्द के अमीर-ए-आलम मौलाना जलालुद्दीन उमरी ने कहा कि राज्य सरकार चाहती तो दंगे रोक सकती थी लेकिन उसने उसे होने दिया। लोकसभा चुनाव आने वाला है जो सूरत-ए-हाल है, देखिए सपा के साथ क्या होता है? उधर जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के सदर मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि कौन इंकार करेगा कि दंगे न रोक पाने में अखिलेश सरकार की गलती नहीं है। मुजफ्फरनगर में तो 1947 में भी दंगे नहीं हुए थे। अब पीएसी के जवान तलाशी के बहाने मुस्लिम युवकों पर जुल्म ढा रहे हैं। मौलाना ने यह भी कहा कि एक सियासी पार्टी ने रोटियां सेंक लीं। मुस्लिम संगठनों की अखिलेश सरकार से नाराजगी स्वाभाविक है। इन संगठनों को इस नतीजे पर पहुंचने के लिए दोष नहीं दिया जा सकता कि मुजफ्फरनगर में हिंसा रोकने में यह सरकार नाकाम रही है। अब तो समाजवादी पार्टी के अन्दर भी उनके मुस्लिम नेता सरकार से नाराज होकर घर बैठ गए हैं। सपा के अक्खड़ नेता एवं मुस्लिम चेहरा आजम खान को लेकर एक बार फिर पार्टी और सरकार में तनाव पैदा हो गया है। आगरा में पार्टी के दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आजम खान सारे प्रयासों के बावजूद गैर हाजिर रहे। हालांकि मुलायम सिंह यादव ने आजम खान से आगरा पहुंचने की खुद गुजारिश की थी। खबर है कि मुलायम का फोन भी आजम ने नहीं उठाया। सूत्रों के मुताबिक आजम खान की अखिलेश व पार्टी के बड़े नेताओं से दिलों की दूरियां बढ़ रही हैं। खास बात यह है कि आजम खान के तेवरों से पार्टी आजिज आ चुकी है। पार्टी ने तय किया है कि अब आजम खान को सबक सिखाया जाएगा। इसी के तहत पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने कार्यकारिणी में ही मीडिया से कह दिया कि आजम खान या तो अपने पद की गरिमा समझें वरना इस्तीफा दे दें। रामगोपाल यादव ने मुलायम सिंह और अखिलेश से मंत्रणा के बाद ही इस तरह का बयान दिया होगा। रामगोपाल के बयान के बाद तो पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने आजम खान पर निशाने साधने शुरू कर दिए हैं। पार्टी के दूसरे राष्ट्रीय महासचिव नरेश अग्रवाल ने बड़े दबंग अंदाज में कह डाला है कि कितना भी बड़ा नेता हो, पार्टी से बड़ा नहीं हो सकता। यह बात आजम खान पर भी लागू होती है। अग्रवाल ने मांग कर दी है कि मुलायम सिंह आजम खान पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करें क्योंकि उनके तौर-तरीकों से पार्टी के अन्दर गलत संकेत जा रहा है। नाराजगी जताने वालों में अबू आजमी जैसे मुस्लिम नेता भी रहे। इन लोगों ने मुलायम सिंह से यहां तक कहा कि क्या पार्टी में आपके लिए एक ही मुस्लिम नेता इतना दुलारा है कि वह पार्टी की ऐसी-तैसी करने पर उतारू है, फिर भी आप चुप हैं? पहले शाहिद सिद्दीकी फिर कमाल फारुकी के बाद अब आजम खान जैसे दिग्गज पार्टी को अलविदा कहने को तैयार हैं? आखिर क्यों यह सब हो रहा है? सूत्रों का कहना है कि आजम खान ने मुलायम सिंह को एक शिकायती पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने मुलायम से दस सवाल पूछे हैं जो पूरी तरह मुस्लिम हितों से संबंधित हैं। उन्होंने एक तरह से सपा सरकार पर दोषारोपण करते हुए पूछा है कि जब प्रशासन ने खबर दे दी थी कि मुजफ्फरनगर में बड़ी तादाद में दंगा हो सकता है तो फिर इसे रोकने के एहतियाती कदम क्यों नहीं उठाए और वहां इतनी बड़ी संख्या में खाप पंचायतों का आयोजन क्यों होने दिया? इतना ही नहीं, उन्होंने यह सवाल भी पूछा है कि अल्पसंख्यकों के लिए चुनावी घोषणा पत्र में किए वादों से अभी तक कुछ भी पूरा क्यों नहीं हुआ है? आजम ने यह भी सवाल किया है कि क्या सपा अब संघ या भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद कर रही है? क्या आजम खान इन सवालों का जवाब खुद नहीं जानते या फिर इन बातों को पत्र के माध्यम से पूछने का मकसद इन इल्जामों के साथ सपा से विदाई लेने की तैयारी समझा जाए? इससे पहले सपा से शाहिद सिद्दीकी और कमाल फारुकी जैसे बड़े मुस्लिम चेहरे विदा हो चुके हैं। इन नेताओं की बेरुखी और मुस्लिम नेताओं के आलोचनात्मक बयान अब यह भी दर्शा रहे हैं कि अल्पसंख्यकों का सपा से मोह भंग हो चुका है। क्योंकि यह संदेश लगभग पूरे प्रदेश और उसके बाहर पहुंच गया है कि इन दंगों में ढिलाई सपा सरकार ने जानबूझ कर अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए बरती ताकि भाजपा का डर दिखाकर अल्पसंख्यकों को सपा के साथ बांधा रखा जा सके। इसके साथ-साथ मुजफ्फरनगर दंगों से यह भी साबित हो रहा है कि अजीत सिंह के वोट बैंक को तोड़ना। यही वजह है कि अजीत सिंह ने मुजफ्फरनगर दंगों को प्रदेश सरकार  का होने का आरोप लगाया है और इसकी तुलना गुजरात दंगों से कर डाली। अजीत सिंह ने कहा है कि चुनावी फायदे के लिए दंगे करवाए गए हैं। उन्होंने कहा कि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जाग गई है और सांप्रदायिक मुद्दों के आधार पर यह सपना पूरा करना चाहते हैं। इस पर किसी ने टिप्पणी की कि मुलायम का सारा परिवार मिलकर एक सूबा तो सम्भाल नहीं पा रहे और सपना देख रहे हैं पूरे देश को सम्भालने का?

-अनिल नरेन्द्र

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