Tuesday, 10 May 2011

मनमोहन सिंह के सामने कारवां लुटता रहा और इन्होंने आंखें बन्द कर लीं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 10 मई 2011
-अनिल नरेन्द्र

आजकल प्रधानमंत्री दफ्तर हिला हुआ है। यूं तो कुछ आला कांग्रेसी नेताओं के अनुसार गृहमंत्री पी. चिदम्बरम सर्वाधिक बिलबिलाए हुए हैं पर ज्यादा और चौतरफा मार प्रधानमंत्री और उनके सिपहसालारों पर है। इन मलयाली अफसरों ने डॉ. मनमोहन सिंह को बर्बाद करके रख दिया है। नौबत इतनी खराब हो चुकी है कि जेल में बन्द शाहिद बलवा के वकील की हिम्मत देखिए जो अदालत में कहा कि सीबीआई डॉ. मनमोहन सिंह को गवाह बनाए। उधर सुरेश कलमाड़ी जिस मामले में गिरफ्तार हुए हैं उसमें पीएमओ से नियुक्त जरनैल सिंह की मंजूरी का रहस्योद्घाटन हुआ है। फिर डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने जो किया है वह ऐतिहासिक है। किसी ने कल्पना नहीं की थी कि डॉ. जोशी फाइलों के हवाले से ऐसे दूध का दूध और पानी का पानी करेंगे। डॉ. जोशी की रिपोर्ट में पीएमओ की ही फाइल और पत्रावली के हवाले यह उल्लेखित है कि प्रधानमंत्री ने अपने पीएमओ को 2जी स्पेक्ट्रम मुद्दे से दूर रखा। ऐसा करना संचार मंत्री ए. राजा को यह परोक्ष ग्रीन सिग्नल था कि तुम्हें जो करना है वह करो। संचार मंत्री के फैसले सरकार के कामकाज के बिजनेस रूल से विपरीत थे। बावजूद इसके पीएमओ ने मंत्रियों की मानसिकता को जानते हुए भी कर्तव्य निर्वहन नहीं किया।
कॉमनवेल्थ गेम्स को सुरेश कलमाड़ी ने घोटालों का खेल बना दिया, लेकिन ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री को इस `खेल' की जानकारी नहीं थी। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले की तरह प्रधानमंत्री कार्यालय और खुद प्रधानमंत्री को कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर हो रही धांधलेबाजी की भी पूरी जानकारी थी। खास बात यह है कि समय-समय पर देश के तीन-तीन खेल मंत्रियों ने गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखे थे, लेकिन पत्रों में उठाए गए सवालों को प्रधानमंत्री ने नजरंदाज किया। लिहाजा खेलों की आड़ में घोटाले का खेल कलमाड़ी एण्ड कम्पनी खेलती रही। दैनिक हिन्दी समाचार पत्र नई दुनिया की एक रिपोर्ट के अनुसार पत्र के पास ऐसे पत्र हैं जो इस बात की गवाही देने के लिए पर्याप्त है कि प्रधानमंत्री को इन गड़बड़ियों की पूरी जानकारी थी।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहने को तो हाल ही में सीबीआई के अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा था कि सीबीआई के पास भ्रष्टाचार के तमाम केस हैं, अधिकारियों को निर्भीक होकर इन मामलों की जांच करनी चाहिए। आम आदमी उम्मीदभरी नजरों से उनकी ओर देख रहा है। असल में तो प्रधानमंत्री को सीबीआई के अधिकारियों को यह नहीं कहना पड़ता अगर उन्होंने भी कॉमनवेल्थ गेम्स की आयोजन समिति के तत्कालीन अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर लगाम दी होती। ऐसा भी नहीं कि उन्हें सचेत नहीं किया गया। उन्हें तीन-तीन खेल मंत्रियों ने इस मामले में कम से कम पांच पत्र लिखे। इन पत्रों में साफ लिखा है कि कलमाड़ी `खेल' कर रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री ने पत्रों पर गौर नहीं फरमाया। अगर मनमोहन सिंह थोड़ी होशियारी और ईमानदारी से काम करते तो शायद वे और उनका पीएमओ कटघरे में खड़ा नहीं होता। ऐसे ईमानदार प्रधानमंत्री का भी क्या फायदा जो कारवां लुटते देख रहा हो और अपनी आंखें बन्द कर ले?

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