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Friday, 2 December 2011

संसद गतिरोध तोड़ने में बीच का रास्ता निकालने में सरकार असफल


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 2nd December 2011
अनिल नरेन्द्र
रिटेल एफडीआई पर छिड़ी रार से निकलने के रास्ते को लेकर मनमोहन सरकार पसोपेश में फंस गई है। सरकार की ओर से फेंके गए सारे पासे बेअसर साबित हो रहे हैं। कांग्रेस के अन्दर शुरू हुए खुले विरोध ने भी सरकार की दुविधा बढ़ा दी है। पहले महंगाई, भ्रष्टाचार और अब एफडीआई के मुद्दे पर घिरी मनमोहन सरकार और कांग्रेस को संकट से निकालने के लिए एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी खुलकर मैदान में आ गई हैं, वहीं दूसरी तरफ एफडीआई को लेकर विपक्ष के हमलों की धार को पुंद करने के लिए उत्तर प्रदेश के सांसद और सोनिया के करीबी संजय सिंह ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी से पुनर्विचार करके किसानों, व्यापारियों और उपभोक्ताओं के हितों के सुरक्षा कवच के साथ एफडीआई लाने का अनुरोध किया है। जहां कैबिनेट की बैठक में एके एंटनी और जयराम रमेश समेत कुछ मंत्रियों की असहमति जगजाहिर हो चुकी है, वहीं अब सुल्तानपुर के सांसद संजय सिंह ने सरकार और पार्टी को इस पर पुनर्विचार करने की अपील करके उत्तर प्रदेश में पार्टी के डैमेज कंट्रोल की पहल कर दी है। सूत्रों का कहना है कि यूपी अधिसंख्य नेताओं और सांसदों की राय है कि राहुल गांधी के दौरे के बाद कांग्रेस के पक्ष में बने माहौल को एफडीआई के फैसले से नुक्सान हो सकता है। इसलिए संजय सिंह ने पहल करके कांग्रेस के खिलाफ बसपा, सपा और भाजपा द्वारा पैदा किए जा रहे जन असंतोष को कम करने की कोशिश की है। सम्भव है कि संजय सिंह ने सोनिया गांधी की पहल पर ही यह बयान दिया हो ताकि मनमोहन सिंह को समझ आए कि उनकी जिद पार्टी पर भारी पड़ सकती है। सूत्रों का कहना है कि वित्तमंत्री और कांग्रेस के संकट मोचक प्रणब मुखर्जी भाजपा की शरण में गए थे। उन्होंने भाजपा के वरिष्ठतम नेता लाल कृष्ण आडवाणी से गुप्त मुलाकात करके कोई बीच का रास्ता निकालने और गतिरोध तोड़ने की अपील की थी पर इसमें उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। भाजपा ने बुधवार को आरोप लगाया कि सरकार ने यह निर्णय अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों के दबाव में किया है। उसने यह भी आरोप लगाया है कि वैश्विक रिटेल कम्पनियों ने इसके लिए काफी लाबिंग की है और पैसा दिया है। भाजपा ने कहा कि सरकार संसद की कार्यवाही चलाने का मार्ग प्रशस्त करने के लिए अपने निर्णय को वापस ले या फिर कार्य स्थगित प्रस्ताव के तहत इस विषय पर चर्चा कराकर संसद की भावना को स्वीकार करे। भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि मल्टी ब्रांड खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ः एफडीआई की अनुमति दिए जाने का सभी विपक्षी दलों और सरकार में शामिल कुछ पार्टियों तक ने विरोध किया है। लेकिन सरकार ने देशहित के खिलाफ एकतरफा ढंग से संसद सत्र के दौरान यह निर्णय किया है। उन्होंने कहा कि सरकार को दो सुझाव दिए गए हैंöया तो वह इस निर्णय को वापस लेकर संसद में कल से महंगाई, कालाधन पर चर्चा शुरू करवाए अथवा खुदरा क्षेत्र में एफडीआई पर कार्यस्थगन प्रस्ताव के तहत बहस कराए। इन्हीं स्थितियों में संसद चल सकती है। इसमें बीच का अब कोई रास्ता नहीं है।
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Friday, 1 July 2011

भाजपा के विधानसभा उपचुनाव में सफलता के कारण

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 1st July 2011
अनिल रेन्द्र
दो राज्यों में हुए विधानसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पाटा ने दोनों सीटों पर सफलता अर्जित की है। मध्य प्रादेश की जबेरा सीट पर भाजपा के दशरथ लोधी ने कांग्रोस की डॉ. तान्या सालोमन को 11,738 वोटों के अन्तर से हराया।
भाजपा ने यह सीट कांग्रोस से छीनी है। उधर बिहार में पूर्णिया सदर सीट पर भाजपा की किरण केसरी ने कांग्रोस के रामचरित्र यादव को 23,665 वोटों से पराजित किया। इस सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार है। इन शानदार सफलताओं से एक बार फिर साबित होता है कि कांग्रोस की छवि और स्थिति कितनी खराब हो गईं है। इसका एक और महत्वपूर्ण कारण है इन राज्यों में सशक्त नेतृत्व। भाजपा शासित राज्यों में अच्छी छवि का सबसे बड़ा कारण है वहां पाटा का नेता। पाटा के नेता की छवि स्वच्छ, ईंमानदार, जनता के प्राति संवेदनशील, नौकरशाह पर वंट्रोल और सही प्राथमिकताओं को रखना अति आवश्यक है। नेता कार्यंकर्ता को अपने पास रखे और सत्ता में उनसे भागीदारी करे। मुझे बीजेपी के कर्मठ और हार्ड कोर कायकर्ता ने एक पते की बात बताईं। उन्होंने कहा कि भाजपा और कांग्रोस में एक बड़ा बुनियादी फर्व क्या है? कांग्रोस जब सत्ता में आती है, तो सत्ता का सुख, लाभ, पुरस्कार अपने कार्यंकर्ताओं से बांटते हैं यानि कार्यंकर्ता को सत्ता का लाभ मिलता है। दूसरी ओर भाजपा नेता चुनाव से पहले तो कार्यंकर्ता को माईं-बाप बना लेते हैं और चुनाव जीतने के बाद जब सत्ता सुख बांटने की बारी आती है तो वह अपने एयरवंडीशन ड्राइंग रूम में बन्द होकर रह जाते हैं, कार्यंकर्ता उनके घर, कार्यांलय में घुस भी नहीं सकता। वह सत्ता सुख, सत्ता के लाभ, प्रासाद खुद ही भोगना चाहते हैं, कार्यंकर्ताओं से बांटने को तैयार नहीं होते। यही वजह है कि अगले चुनाव में वह कार्यंकर्ता घर बैठ जाता है और कहता है कि हमारी बला से यह जीते या हारे, हमें क्या लेना-देना है? दूसरी ओर कांग्रोस का कार्यंकर्ता अगले चुनाव में पूरा दमखम लगा देता है। इसलिए क्योंकि अपने नेता को जिताने में उसका भी स्वार्थ जुड़ा होता है। जब तक भाजपा वेंद्रीय नेतृत्व को यह साधारणसी बात समझ नहीं आती वह शायद ही सत्ता में आ सवें। अगर मध्य प्रादेश, बिहार या गुजरात में भाजपा को इतनी सफलता मिल रही है तो उसका एक बड़ा कारण है वहां पाटा का मुख्यमंत्री। आम कार्यंकर्ता अपने आपको अपने नेता से आइडेंटीफाईं करता है और उसे मालूम है कि उसे कोईं भी समस्या होगी या उसका कोईं काम होगा तो वह अपने नेता पर भरोसा कर सकता है।
कांग्रोस में वुछ नेता चाहे जितनी भी विपरीत हवा हो, चुनाव जीत जाते हैं क्योंकि उनके कार्यंकर्ता उन्हें जिताने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं।
आज भारतीय जनता पाटा के वेंद्रीय नेतृत्व में इतनी गुटबाजी है, प्राधानमंत्री बनने की होड़ लगी हुईं कि उन्हें सिवाय अपना जोड़तोड़ करने की किसी को पुर्सत नहीं है। एक-दूसरे की टांग खींचना, नम्बर घटाने के खेल में यह दिन-रात जुटे हुए हैं। यह बात मैं अकेला नहीं कह रहा, खुद पाटा के दिग्गज नेता श्री लाल वृष्ण आडवाणी ने हाल ही में कही है। पूर्व उपप्राधानमंत्री और भारतीय जनता पाटा संसदीय दल के अध्यक्ष लाल वृष्ण आडवाणी ने कहा है कि ईंमानदारी के मामले में पाटा की साख गिरी है। उन्होंने कहा कि पाटा में गुटबाजी अब तेजी से बढ़ रही है। इससे भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है। भाजपा के अंदरुनी सूत्रों के अनुसार आडवाणी ने दिल्ली नगर निगम के भाजपा पार्षदों के लिए दिल्ली के छतरपुर मंदिर में आयोजित प्राशिक्षण शिविर के उद्घाटन सत्र में कहा कि पाटा का निगम के कामों में तो प्रादर्शन अच्छा नहीं रहा है, ईंमानदारी के मामले में पाटा की साख गिरी है। इस मामले में उन्होंने अहमदाबाद नगर निगम की तारीफ करते हुए कहा कि वहां ईंमानदारी से काम हो रहा है। उन्होंने कहा कि दिल्ली प्रादेश भाजपा में पहले भी गुटबाजी थी, अब यह गुटबाजी और बढ़ रही है। उन्होंने साफ कहा कि पाटा की साख गिराने के लिए खुद पाटा के वुछ नेता जिम्मेदार हैं। आडवाणी जी ने बेशक यह बातें दिल्ली प्रादेश भाजपा नेताओं के लिए कही हों पर इशारे- इशारे में वे एक तीर से कईं शिकार कर गए हैं। आज की आवश्यकता यह है कि भाजपा के वेंद्रीय नेतृत्व के दूसरी पंक्ति के नेता प्राधानमंत्री बनने का सपना छोड़े और भाजपा ऐसे व्यक्ति को पीएम के तौर पर प्राोजेक्ट करे जो पूरी पाटा को साथ लेकर चल सके। वर्तमान नेतृत्व में मुझे तो ऐसे तीन ही विकल्प नजर आते हैं जिन्हें अनुभव है, जो ईंमानदार छवि के हैं, जो पाटा कार्यंकर्ताओं को साथ लेकर चला सकते हैं, जिनमें अहंकार इतना नहीं आया कि वह अपनी जमीन ही भूल जाएं—ये हैं श्री लाल वृष्ण आडवाणी, श्री मुरली मनोहर जोशी और श्री नरेन्द्र मोदी।
Tags: Anil Narendra, Bihar, BJP, Daily Pratap, L K Advani, Madhya Pradesh, Murli Manohar Joshi, Narender Modi, Vir Arjun

Tuesday, 10 May 2011

मनमोहन सिंह के सामने कारवां लुटता रहा और इन्होंने आंखें बन्द कर लीं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 10 मई 2011
-अनिल नरेन्द्र

आजकल प्रधानमंत्री दफ्तर हिला हुआ है। यूं तो कुछ आला कांग्रेसी नेताओं के अनुसार गृहमंत्री पी. चिदम्बरम सर्वाधिक बिलबिलाए हुए हैं पर ज्यादा और चौतरफा मार प्रधानमंत्री और उनके सिपहसालारों पर है। इन मलयाली अफसरों ने डॉ. मनमोहन सिंह को बर्बाद करके रख दिया है। नौबत इतनी खराब हो चुकी है कि जेल में बन्द शाहिद बलवा के वकील की हिम्मत देखिए जो अदालत में कहा कि सीबीआई डॉ. मनमोहन सिंह को गवाह बनाए। उधर सुरेश कलमाड़ी जिस मामले में गिरफ्तार हुए हैं उसमें पीएमओ से नियुक्त जरनैल सिंह की मंजूरी का रहस्योद्घाटन हुआ है। फिर डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने जो किया है वह ऐतिहासिक है। किसी ने कल्पना नहीं की थी कि डॉ. जोशी फाइलों के हवाले से ऐसे दूध का दूध और पानी का पानी करेंगे। डॉ. जोशी की रिपोर्ट में पीएमओ की ही फाइल और पत्रावली के हवाले यह उल्लेखित है कि प्रधानमंत्री ने अपने पीएमओ को 2जी स्पेक्ट्रम मुद्दे से दूर रखा। ऐसा करना संचार मंत्री ए. राजा को यह परोक्ष ग्रीन सिग्नल था कि तुम्हें जो करना है वह करो। संचार मंत्री के फैसले सरकार के कामकाज के बिजनेस रूल से विपरीत थे। बावजूद इसके पीएमओ ने मंत्रियों की मानसिकता को जानते हुए भी कर्तव्य निर्वहन नहीं किया।
कॉमनवेल्थ गेम्स को सुरेश कलमाड़ी ने घोटालों का खेल बना दिया, लेकिन ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री को इस `खेल' की जानकारी नहीं थी। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले की तरह प्रधानमंत्री कार्यालय और खुद प्रधानमंत्री को कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर हो रही धांधलेबाजी की भी पूरी जानकारी थी। खास बात यह है कि समय-समय पर देश के तीन-तीन खेल मंत्रियों ने गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखे थे, लेकिन पत्रों में उठाए गए सवालों को प्रधानमंत्री ने नजरंदाज किया। लिहाजा खेलों की आड़ में घोटाले का खेल कलमाड़ी एण्ड कम्पनी खेलती रही। दैनिक हिन्दी समाचार पत्र नई दुनिया की एक रिपोर्ट के अनुसार पत्र के पास ऐसे पत्र हैं जो इस बात की गवाही देने के लिए पर्याप्त है कि प्रधानमंत्री को इन गड़बड़ियों की पूरी जानकारी थी।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहने को तो हाल ही में सीबीआई के अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा था कि सीबीआई के पास भ्रष्टाचार के तमाम केस हैं, अधिकारियों को निर्भीक होकर इन मामलों की जांच करनी चाहिए। आम आदमी उम्मीदभरी नजरों से उनकी ओर देख रहा है। असल में तो प्रधानमंत्री को सीबीआई के अधिकारियों को यह नहीं कहना पड़ता अगर उन्होंने भी कॉमनवेल्थ गेम्स की आयोजन समिति के तत्कालीन अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर लगाम दी होती। ऐसा भी नहीं कि उन्हें सचेत नहीं किया गया। उन्हें तीन-तीन खेल मंत्रियों ने इस मामले में कम से कम पांच पत्र लिखे। इन पत्रों में साफ लिखा है कि कलमाड़ी `खेल' कर रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री ने पत्रों पर गौर नहीं फरमाया। अगर मनमोहन सिंह थोड़ी होशियारी और ईमानदारी से काम करते तो शायद वे और उनका पीएमओ कटघरे में खड़ा नहीं होता। ऐसे ईमानदार प्रधानमंत्री का भी क्या फायदा जो कारवां लुटते देख रहा हो और अपनी आंखें बन्द कर ले?

Saturday, 30 April 2011

बेशक मसौदा रिपोर्ट खारिज कर दी गई पर डॉ. जोशी अपने मकसद में सफल

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 30 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

यह तो होना ही था। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले की जांच कर रही लोक लेखा समिति (पीएसी) की मसौदा रिपोर्ट खारिज कर दी गई। बृहस्पतिवार को पीएसी की बैठक में मसौदा रिपोर्ट पर भारी हंगामा हुआ जिस पर इसके अध्यक्ष भाजपा नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने बैठक स्थगित कर दी और विपक्षी दलों के अन्य सदस्यों के साथ बैठक से चले गए। इसके बाद मसौदा रिपोर्ट को संप्रग सदस्यों ने सपा और बसपा के सदस्यों के सहयोग से रद्द कर दिया। डॉ. जोशी द्वारा तैयार मसौदा रिपोर्ट पर विचार के लिए बुलाई गई समिति की बैठक फलस्वरूप अफरातफरी में समाप्त हो गई। जोशी जी मतदान से पहले ही बैठक से उठकर चले गए। उन्होंने कहा कि चूंकि उन्होंने बैठक स्थगित कर दी है इसलिए कोई कार्यवाही नहीं हो सकती पर संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल ने इस विषय पर उनसे मतभेद जताते हुए कहा कि हमारे विचार से रिपोर्ट खारिज हो गई है, यह मामला समाप्त हो गया है। अब सभी की निगाहें जेपीसी पर है। इस पीएसी का कार्यकाल 30 अप्रैल को समाप्त हो रहा है।
लोक लेखा समिति (पीएसी) संसद की महत्वपूर्ण समिति है। इसकी रिपोर्ट और टीका-टिप्पणी खासा महत्व रखती रही है। समिति के अध्यक्ष डॉ. जोशी इसी फेर में रहे हैं कि 30 अप्रैल से पहले ही जांच रिपोर्ट आ जाए जबकि कांग्रेस और डीएमके सदस्यों ने ठान रखी थी कि कोई न कोई अड़ंगेबाजी करके रिपोर्ट न आने दें। डॉ. जोशी भी कम उस्ताद नहीं हैं। उन्होंने तमाम विरोध, आपत्तियों व अड़ंगेबाजियों के कुछ हद तक अपने लक्ष्य में सफलता पा ही ली। 270 पन्नों की इस ड्राफ्ट रिपोर्ट में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन की भी जमकर खबर ली गई है। 2जी स्पेक्ट्रम मामले में उनके कार्यालय की भूमिका को शक के घेरे में खड़ा किया गया है। कहा गया है कि प्रधानमंत्री इस घोटाले को होते हुए देखते रहे। ऐसे में वह कम जिम्मेदार नहीं हैं। ड्राफ्ट रिपोर्ट में कई जगह प्रधानमंत्री की भूमिका पर कड़ी टिप्पणियां भी की गई हैं। इसी को लेकर कांग्रेस के नेता बौखला गए। रिपोर्ट में तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं। कहा गया है कि उन्होंने समय रहते कदम नहीं उठाया बल्कि इसे `बन्द फाइल' मान लेने की बात कही। ताकि पीएमओ भी किसी कार्रवाई के बारे में पुनर्विचार न करे। इस तरह से चिदम्बरम को भी कटघरे में खड़ा कर दिया गया है। सुझाव तो यह भी दिया गया है कि चिदम्बरम की भूमिका की भी व्यापक जांच होनी चाहिए। इस विवादित ड्राफ्ट रिपोर्ट को लेकर सत्तारूढ़ धड़ा बेचैन हो गया है। पूरी ताकत लगाई जा रही है कि डॉ. जोशी का शो कामयाब न हो। लेकिन डॉ. जोशी के दांव ने काफी हद तक अपना मकसद पूरा कर लिया है। बेशक जोर-जबरदस्ती करके सत्तापक्ष सांसदों ने पीएसी की रिपोर्ट को रद्द कर दिया हो पर डॉ. जोशी ने प्रधानमंत्री, उनके पीएमओ और चिदम्बरम की तरफ शक की सुई घुमाकर अपनी उस्तादी का कमाल तो दिखा ही दिया है। अब कांग्रेस के लोग सालों-साल सफाई देते रहेंगे। यह समिति सांसदों की है इसलिए इसे इतनी आसानी से रद्दी की टोकरी में नहीं फेंका जा सकता। भाजपा और विपक्ष सांसद इसे उठाने का भरपूर प्रयास जरूर करेंगे।

Tuesday, 19 April 2011

पीएसी बनाम जेपीसी

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
 प्रकाशित: 19 अप्रैल 201
-अनिल नरेन्द्र
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रही संसदीय लोक लेखा समिति (पीएसी) की बैठक शुक्रवार को सत्तापक्ष और विपक्ष की जंग में बदल गई। दिनभर की खींचतान के बाद कांग्रेस नेता आखिरकार सॉलिसिटर जनरल गुलाम वाहनवती व शनिवार को कैबिनेट सचिव और पीएम के प्रधान सचिव की गवाही टलवाने में कामयाब हो गए। फिलहाल उनकी गवाही खटाई में पड़ गई है। दरअसल कांग्रेसी सांसद पूरी तैयारी करके आए थे। कांग्रेसी सदस्यों ने बड़ी ही दिलचस्प अंदाज में नए-नए तर्प गढ़कर तलब किए गए अफसरों की पेशी को टालने के प्रयास किए। डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने संवैधानिक नियमों, समिति के अधिकारों और पूर्व समितियों का हवाला देकर उन तर्कों की काट पेश की मगर वह अहम लोगों, खासतौर पर सॉलिसिटर जनरल वाहनवती और पीएमओ के अफसरों की गवाही टालने से रोक नहीं पाए। बैठक के बीच में कांग्रेस सदस्य कई दफा बाहर आकर फोन पर गम्भीर चर्चा में व्यस्त दिखे। सबसे पहले मुद्दा जेपीसी बनाम पीएसी का। यह बहस पिछली दो बैठकों में भी उठाई गई थी। मगर कांग्रेस के केएस राव, जितेन्द्र सिंह, नवीन जिन्दल व सैफुद्दीन सोज ने एक साथ मिलकर कहा कि आखिर संसद ने जब जेपीसी गठित कर दी है तो आला अफसरों को तलब करने में यह सक्रियता क्यों? इस पर डॉ. जोशी ने स्पीकर का पत्र पढ़कर सुनाया। स्पीकर मीरा कुमार ने दोनों समितियों के अध्यक्ष चाको व जोशी से बैठक के बाद अपनी राय दी थी कि उन्हें मिलकर काम करना चाहिए। जोशी ने अपने बचाव में संसद के नियमों की किताब पढ़ी और कहा कि समिति सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक मामले की तह तक जाएगी। कांग्रेस सदस्यों का दूसरा एतराज था, सीबीआई की चार्जशीट में आरोपी लोगों को बुलाने पर। एक सदस्य का तर्प था कि सीबीआई चार्जशीट में नामित लोगों को यहां तलब करने की क्या तुक है? मामला अदालत में चल रहा है इसलिए भी यह सब ज्यूडिस है। इस पर डॉ. जोशी ने याद दिलाया कि शुक्रवार, शनिवार को जो अधिकारी बुलाए गए हैं उनका चार्जशीट से कोई लेना-देना नहीं, फिर अड़चन कैसी? एक अन्य सदस्य अरुण कुमार ने नाराजगी जताई कि अगर पीएम के करीबी अफसर बुलाए जा सकते हैं तो इस मामले में ए. राजा को बुलाना चाहिए। तीन घंटे की मात्थापच्ची के बाद यह तय हुआ कि सदस्यों को कागजात के अध्यापन के लिए बैठक एक हफ्ते तक मुल्तवी करने में कामयाब हो गए।
कांग्रेस सदस्यों के आक्रामक विरोध ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर तेज गति से चल रही पीएसी की जांच में ब्रेक लगा दी है। अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की कोशिश अब भी यह है कि वह अपनी रिपोर्ट जल्द से जल्द दें। मौजूदा पीएसी का कार्यकाल इसी महीने खत्म हो रहा है। इसलिए जोशी ने जल्द से जल्द रिपोर्ट देने का संकेत दिया है।हालांकि भाजपा ने जोशी का कार्यकाल जारी रखने का फैसला किया है, लेकिन जोशी की कोशिश है कि जेपीसी की अगली बैठक यानि 18 मई से पहले रिपोर्ट सौंप दी जाए। पीएसी बनाम जेपीसी टकराव तो होना ही था। कांग्रेस सांसदों द्वारा आपत्तियों को उचित ठहराते हुए कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि जब जेपीसी बनाने की मांग हो रही थी हम उसी वक्त कह रहे थे कि क्षेत्राधिकार और जांच में दोहराव को लेकर टकराव हो सकता है। उस वक्त कहा गया कि हम जिद्दी हैं। डॉ. जोशी की पीएसी की जांच काफी आगे तक बढ़ चुकी है और हमें लगता है कि डॉ. जोशी बहुत जल्द अपनी रिपोर्ट पेश कर ही देंगे।