Friday, 13 May 2011

34 साल के बाद वाम मोर्चा का सफाया लगभग तय लगता है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi

प्रकाशित: 13 मई 2011
अनिल नरेन्द्र

आमतौर पर चुनाव परिणामों के बारे में दावे से तो कुछ नहीं कहा जा सकता पर मतदान होने के बाद राजनीतिज्ञ, चुनाव विश्लेषकों व विशेषज्ञों को इतना अहसास हो जाता है कि हवा किस रुख चली है। वैसे आजकल तो चुनाव बाद सर्वेक्षण भी आ जाते हैं। हालांकि यह कभी-कभी बहुत गलत साबित होते हैं पर आमतौर पर 70-80 प्रतिशत सटीक बैठते हैं। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव बाद और मतगणना पूर्व सर्वेक्षणों के मुताबिक पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की आंधी से तीन दशक से भी पुराने वाम मोर्चा शासन का किला ढहने के संकेत हैं। प. बंगाल विधानसभा चुनाव के छठे और अंतिम चरण में मंगलवार को 85 प्रतिशत मतदान हुआ 13 मई को नतीजे घोषित होंगे। एक्जिट पोल के मुताबिक तृणमूल और कांग्रेस गठबंधन को राज्य में 210 से 220 सीटें मिलने की संभावना है। वहीं 34 साल से लगातार सत्ता में रहने वाला वाम मोर्चा सिर्प 62 से 65 सीटों तक सिमट सकता है। ममता बनर्जी के जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य पूरा होने जा रहा है। वह पश्चिम बंगाल की अगली मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं। कांग्रेस के लिए केरल से भी अच्छी खबर है। यहां कांग्रेस नेतृत्व वाले यूडीएफ की सरकार बन सकती है। वहीं तमिलनाडु और असम के बारे में टीवी चैनलों की राय बंटी हुई है। हालांकि असम में विपक्ष के बिखराव की वजह से कांग्रेस की मजबूत स्थिति मानी जा रही है। वहीं स्टार न्यूज ने तमिलनाडु में डीएमके-कांग्रेस गठबंधन को सत्ता के करीब बताया है जबकि सीएनएन-आईबीएन ने एआईडीएमके को ज्यादा सीटों की भविष्यवाणी की है। तमिलनाडु में कांटे की टक्कर है। ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी की इन राज्यों में न के बराबर मौजूदगी है।
कांग्रेस सावधानी से चल रही है। दरअसल कांग्रेस चुनाव परिणामों को लेकर ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आ रही। इसीलिए उसने कहना शुरू कर दिया है कि हम इन चुनाव को केंद्र सरकार के लिए जनादेश नहीं मानते। यह चुनाव स्थानीय आधार पर लड़े गए हैं। दरअसल कांग्रेस को चुनाव परिणामों से मिलीजुली तस्वीर उभरने के आसार लग रहे हैं। अगर प. बंगाल में ममता की भारी जीत होती है और तमिलनाडु में द्रमुक की हार तो इसका सीधा असर मनमोहन सरकार पर पड़ सकता है। ममता की भारी जीत भी कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजाती है क्योंकि यदि ममता राइटर्स बिल्डिंग में बिना कांग्रेस मदद के पहुंच गई तो वे अपनी आदत के मुताबिक केंद्र सरकार को पग-पग पर ब्लैकमेल करेंगी। जैसा कि उसने पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को लेकर होने वाली वृद्धि को लेकर किया है। वहीं यदि तमिलनाडु में यदि संभावना के मुताबिक द्रमुक की हार हो जाती है तो वह बौखला कर केंद्र सरकार से हट सकती है। क्योंकि अपने नेताओं पर सीबीआई के लगातार कस रहे शिकंजे से वह पहले ही काफी क्षुब्ध है। ऐसे में यदि चुनावी नतीजों ने उन्हें झटका दे दिया तो वे केंद्र को भी झटका दे सकती है। वहीं दूसरी ओर केरल और असम में जहां कांग्रेस अपने लिए काफी संभावनाएं लेकर चल रही है वहां भी कांटे की टक्कर की भविष्यवाणी ने पार्टी के माथे पर बल डाल दिया है। पुडुचेरी में कांग्रेस पहले से ही हार मान चुकी है। वैसे भी इसका कोई खास महत्व नहीं है। देखें 13 मई को मतपेटियों में क्या भरा है?

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