Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
प्रकाशित: 04 मई 2011
-अनिल नरेन्द्र
-अनिल नरेन्द्र
पूरी दुनिया को इस्लाम के रंग में रंगने का खूंरेजी ख्वाब देखने वाले और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का पर्याय बन चुके मोस्ट वांटेड आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को अमेरिका ने मौत के घाट उतारकर अमेरिका ने यह साबित कर दिया कि वह अपने इरादों के प्रति अटल है और अपने शत्रुओं का सफाया करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। रविवार की देर रात अमेरिकी सैनिकों ने एक अत्यंत गोपनीय ऑपरेशन में उसे एक ऐसी इमारत के अन्दर मार गिराया जो पाकिस्तान की मिलिट्री अकादमी से कुछ ही दूर स्थित है। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से 60 किलोमीटर दूर एबटाबाद शहर में स्थानीय समयानुसार रात डेढ़ बजे अमेरिकी सेना के विशेष बल को लेकर चार हेलीकॉप्टर उस इमारत के कम्पाउंड में उतरे जहां ओसामा के छिपे होने की सूचना थी। सोमवार को टीवी पर जो फुटेज दिखाए गए, उनमें खेतों के बीच एक कम्पाउंड दिख रहा था, जो 12 फीट ऊंची दीवारों से घिरा हुआ था। किलेनुमा इस इमारत के परिसर में हेलीकॉप्टरों के उतरने के बाद उन पर ओसामा के गार्डों ने फायरिंग की। अमेरिकी सैनिकों की जवाबी कार्रवाई में 54 वर्षीय ओसामा की मौत हो गई। उसके बेटे और एक महिला के मारे जाने की भी खबर है। इस अभियान में एक हेलीकॉप्टर को क्षति पहुंची। मालूम हो कि अमेरिका ने ओसामा पर ढाई करोड़ डालर (लगभग 111 करोड़ रुपये) का इनाम घोषित किया था। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने राष्ट्र के नाम संबोधन में ओसामा के मारे जाने की पुष्टि की। लादेन के मारे जाने के बाद उसकी दो पत्नियों तथा चार बच्चों को हिरासत में ले लिया गया है। अमेरिका का कहना है कि इस्लामी रीति-रिवाज के साथ ओसामा बिन लादेन के शव को समुद्र में दफन किया गया है। समझा जाता है कि उसके अपने देश सऊदी अरब द्वारा शव लेने से इंकार करने पर ऐसा किया गया। हालांकि उसे समुद्र में दफनाने पर इस्लामी विद्वानों ने सवाल उठाए हैं। उसे समुद्र में दफनाने के पीछे अमेरिका की मंशा उसकी कब्रगाह को आस्था का केंद्र बनने से रोकने की रही है। लादेन की पहचान की पुष्टि के लिए अमेरिका ने उसके शव का डीएनए परीक्षण कराया है। यह डीएनए टेस्ट लादेन की बहन के डीएनए से मिलने से किया गया, जिसमें शव लादेन का होने की 99.9 फीसदी पुष्टि हो गई है। बहन का डीएनए सैम्पल 9/11 के हमलों के बाद लिया गया था। लादेन के बारे में किसी भी तरह का शक दूर करने के लिए चेहरे का मिलान करने वाली अत्याधुनिक फेशियल रिकाग्निशन तकनीक का भी सहारा लिया गया। सन 2001 में 9/11 के हमले के बाद अमेरिका लगभग दस साल से अलकायदा सरगना को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने की कोशिश में था। जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने लादेन के मारे जाने की खबर की पुष्टि की तो सारे अमेरिका में जश्न का माहौल बन गया। रात के अंधेरे होने के बावजूद व्हाइट हाउस के बाहर खुशी से झूमती भीड़ एकत्र हो गई।
हालांकि अमेरिका ने लादेन ऑपरेशन को काफी खुफिया रखा और आईएसआई और अलकायदा को इसकी हवा नहीं लगने दी पर इस कार्रवाई से कुछ ही दिन पहले अलकायदा की धमकी का महत्व बढ़ जाता है। क्या यह सम्भव है कि ओसामा के सम्भावित अमेरिकी कार्रवाई का आभास हो गया था? इस कार्रवाई के कुछ ही दिन पहले चर्चित विकीलीक्स की ओर से जारी गोपनीय दस्तावेज में कहा गया, अलकायदा के एक वरिष्ठ स्वयंभू कमांडर ने दावा किया है कि उसके संगठन ने यूरोप में एक परमाणु बम छिपा रखा है। अगर लादेन को पकड़ा गया या मारा गया तो वह इसमें विस्फोट कर देंगे? गुआतांनामो कारागार में 780 पकड़े गए लोगों की पृष्ठभूमि और पूछताछ के दौरान उनकी ओर से दिए बयान के आधार पर यह गोपनीय दस्तावेज तैयार किए गए हैं। ओसामा के मारे जाने से दुनिया में हो रही आतंकवादी गतिविधियों पर शायद ही कोई लम्बा-चौड़ा असर पड़े। क्योंकि आज सारी दुनिया में इतने अलकायदा टाइप के सेल स्थापित हो चुके हैं जो स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं कि इनकी गतिविधियों पर कोई असर न पड़े। फिर इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पिछले एक दशक में अलकायदा ने विचारधारा का रूप ले लिया है। आतंकवाद को खाद-पानी देने वाली इस विचारधारा का अन्त नहीं दिखता। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि अलकायदा ने अमेरिका के नेतृत्व में छेड़े गए आतंकवाद विरोधी अभियान को इस्लाम पर हमले का रूप दे दिया है।
अमेरिकी विशेष बल के हाथों इस्लामाबाद के करीब एबटाबाद में एक शानदार बंगले में ओसामा की मौत और इससे पहले अनेक अलकायदा नेताओं की पाकिस्तानी शहरों में हुई गिरफ्तारी से यह स्पष्ट हो जाता है कि आतंकवादियों की सुरक्षित पनाहगाह अफगान-पाक सीमा या भारत सीमा पर नहीं बल्कि पाकिस्तान के बीचोबीच है। इससे एक और मूलभूत सच्चाई रेखांकित होती है कि पाकिस्तान में सेना का वर्चस्व समाप्त किए बिना तथा वहां कट्टरपंथ को समाप्त किए बगैर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ जंग नहीं जीती जा सकती। 9/11 हमले के बाद पाकिस्तान से पकड़े गए अन्य आतंकवादी नेताओं में अलकायदा के तीसरे नम्बर का नेता शालिद शेक मुहम्मद, नेटवर्प व्यवस्था का प्रमुख अबु जुबैदिया, आसुर जजीरी शामिल है। इन तमाम गिरफ्तारियों में एक समान कड़ी यह है कि ये सब पाकिस्तानी शहरों में पकड़े गए हैं। इस आलोक में यह हैरानी की बात नहीं है कि बिन लादेन कबाइली इलाकों के बजाय पाकिस्तान की राजधानी के निकट शहर में मारा गया। अगर हैरानी है तो इस बात की कि लादेन इस्लामाबाद के बगल में एबटाबाद में रह रहा था। यहां पाकिस्तानी सेना का बड़ा आधार शिविर, सैन्य अकादमी, सैन्य अस्पताल और अनेक वरिष्ठ सैन्य व खुफिया अधिकारी व पूर्व अधिकारियों के आवास हैं। अमेरिका को लादेन को पकड़ने में दस साल इसलिए भी लगे, क्योंकि लादेन को पाकिस्तानी रक्षा प्रतिष्ठान के कुछ तत्वों का संरक्षण प्राप्त था। याद रहे कि ओसामा डायलासिस पर था और डायलसिस हर स्थान पर नहीं हो सकता। कटु सत्य तो यह है कि अमेरिका बेशक जितना प्रयास करे जब तक पाकिस्तानी सेना और आईएसआई नहीं सुधरती तब तक न तो आतंकवाद ही खत्म होगा और न ही पाकिस्तान का राष्ट्र निर्माण सम्भव है। बहरहाल अमेरिका को यह खुशी व संतोष जरूर होगा कि उसने 9/11 का बदला ले लिया है।
हालांकि अमेरिका ने लादेन ऑपरेशन को काफी खुफिया रखा और आईएसआई और अलकायदा को इसकी हवा नहीं लगने दी पर इस कार्रवाई से कुछ ही दिन पहले अलकायदा की धमकी का महत्व बढ़ जाता है। क्या यह सम्भव है कि ओसामा के सम्भावित अमेरिकी कार्रवाई का आभास हो गया था? इस कार्रवाई के कुछ ही दिन पहले चर्चित विकीलीक्स की ओर से जारी गोपनीय दस्तावेज में कहा गया, अलकायदा के एक वरिष्ठ स्वयंभू कमांडर ने दावा किया है कि उसके संगठन ने यूरोप में एक परमाणु बम छिपा रखा है। अगर लादेन को पकड़ा गया या मारा गया तो वह इसमें विस्फोट कर देंगे? गुआतांनामो कारागार में 780 पकड़े गए लोगों की पृष्ठभूमि और पूछताछ के दौरान उनकी ओर से दिए बयान के आधार पर यह गोपनीय दस्तावेज तैयार किए गए हैं। ओसामा के मारे जाने से दुनिया में हो रही आतंकवादी गतिविधियों पर शायद ही कोई लम्बा-चौड़ा असर पड़े। क्योंकि आज सारी दुनिया में इतने अलकायदा टाइप के सेल स्थापित हो चुके हैं जो स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं कि इनकी गतिविधियों पर कोई असर न पड़े। फिर इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पिछले एक दशक में अलकायदा ने विचारधारा का रूप ले लिया है। आतंकवाद को खाद-पानी देने वाली इस विचारधारा का अन्त नहीं दिखता। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि अलकायदा ने अमेरिका के नेतृत्व में छेड़े गए आतंकवाद विरोधी अभियान को इस्लाम पर हमले का रूप दे दिया है।
अमेरिकी विशेष बल के हाथों इस्लामाबाद के करीब एबटाबाद में एक शानदार बंगले में ओसामा की मौत और इससे पहले अनेक अलकायदा नेताओं की पाकिस्तानी शहरों में हुई गिरफ्तारी से यह स्पष्ट हो जाता है कि आतंकवादियों की सुरक्षित पनाहगाह अफगान-पाक सीमा या भारत सीमा पर नहीं बल्कि पाकिस्तान के बीचोबीच है। इससे एक और मूलभूत सच्चाई रेखांकित होती है कि पाकिस्तान में सेना का वर्चस्व समाप्त किए बिना तथा वहां कट्टरपंथ को समाप्त किए बगैर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ जंग नहीं जीती जा सकती। 9/11 हमले के बाद पाकिस्तान से पकड़े गए अन्य आतंकवादी नेताओं में अलकायदा के तीसरे नम्बर का नेता शालिद शेक मुहम्मद, नेटवर्प व्यवस्था का प्रमुख अबु जुबैदिया, आसुर जजीरी शामिल है। इन तमाम गिरफ्तारियों में एक समान कड़ी यह है कि ये सब पाकिस्तानी शहरों में पकड़े गए हैं। इस आलोक में यह हैरानी की बात नहीं है कि बिन लादेन कबाइली इलाकों के बजाय पाकिस्तान की राजधानी के निकट शहर में मारा गया। अगर हैरानी है तो इस बात की कि लादेन इस्लामाबाद के बगल में एबटाबाद में रह रहा था। यहां पाकिस्तानी सेना का बड़ा आधार शिविर, सैन्य अकादमी, सैन्य अस्पताल और अनेक वरिष्ठ सैन्य व खुफिया अधिकारी व पूर्व अधिकारियों के आवास हैं। अमेरिका को लादेन को पकड़ने में दस साल इसलिए भी लगे, क्योंकि लादेन को पाकिस्तानी रक्षा प्रतिष्ठान के कुछ तत्वों का संरक्षण प्राप्त था। याद रहे कि ओसामा डायलासिस पर था और डायलसिस हर स्थान पर नहीं हो सकता। कटु सत्य तो यह है कि अमेरिका बेशक जितना प्रयास करे जब तक पाकिस्तानी सेना और आईएसआई नहीं सुधरती तब तक न तो आतंकवाद ही खत्म होगा और न ही पाकिस्तान का राष्ट्र निर्माण सम्भव है। बहरहाल अमेरिका को यह खुशी व संतोष जरूर होगा कि उसने 9/11 का बदला ले लिया है।
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