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Friday, 15 July 2011

एक बार फिर मुंबई बनी आतंकियों का निशाना

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 15th July 2011
अनिल नरेन्द्र
पिछले काफी समय से भारत पर कोई आतंकी हमला नहीं हुआ था। हमले तो होते रहे पर कोई सीरियल टाइप के ब्लास्ट नहीं हुए थे। यूं तो तीन दिन पहले असम के कामरूप (ग्रामीण) जिले के रांगिया के पास एक विस्फोट के बाद गुवाहाटी-पुरी एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी पर उसके पीछे स्थानीय विद्रोहियों का हाथ था। इस दुर्घटना में 50 से ज्यादा यात्री घायल हुए थे पर बुधवार को मुंबई में जैसा आतंकी हमला हुआ, ऐसा हमला काफी दिनों के बाद हुआ है। हम भूल गए थे कि ऐसे हमले हो सकते हैं। शायद यही वजह थी कि हमारी खुफिया एजेंसियों को इस सिलसिलेवार धमाकों के बारे में कोई भनक न लग सकी। गृह मंत्रालय ने माना है कि मुंबई में हुए सिलसिलेवार धमाकों के बारे में केंद्र या राज्य सरकार के खुफिया तंत्र को जरा भी भनक नहीं लग सकी। बुधवार शाम मुंबई की भीड़ भरी जगहों पर हुए इन तीन धमाकों ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि पिछले छह महीने के दौरान देश में कोई आतंकी वारदात नहीं होने के बाद सुरक्षा-खुफिया तंत्र काफी हद तक शिथिल हो गया था। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में बुधवार की शाम भीड़भाड़ वाले तीन स्थानों पर 10 मिनट के अन्दर तीन धमाके हुए जिसमें 21 लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हुए। सांताकूज में एक जिन्दा बम भी मिला जो फटा नहीं था। पिछले 18 साल में बुधवार को 14वीं बार मुंबई आतंकी हमले का शिकार हुई। शाम करीब 6ः15 बजे झावेरी बाजार स्थित चांदी के आभूषणों के व्यापारी दीपक सेन ने अपने नौकर से भेल मंगवाई। वह भेल की पुड़िया खोल ही रहा था कि एक जोरदार धमाके ने उनकी दुकान की ट्यूबलाइटें एवं शोकेस के कांच को झनझना कर तोड़ दिया। सेन ने आग का एक बड़ा-सा गोला ऊपर की ओर जाते देखा, सामने की खान-पान की दुकानें आग पकड़ चुकी थीं। सामने सड़क पर खड़े पापड़ बेच रहे खोमचे वाले के परखच्चे उड़ गए थे। तीन दर्जन से ज्यादा लोग बुरी तरह झुलसकर जमीन पर गिर पड़े थे। लोक इधर-उधर भाग रहे थे। लेकिन कुछ ही पलों में लोग फिर सजग हो गए और जमीन पर पड़े घायलों को लेकर उपलब्ध साधनों से ही निकट के जीटी अस्पताल की ओर ले जाने लगे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार झावेरी बाजार में सिर्प कुछ पलों के अन्तर से दो धमाके हुए। बताया जाता है कि ये दोनों धमाके एक मोटरसाइकिल एवं एक स्कूटर में रखे विस्फोट से हुए। लगभग यही दृश्य कुछ मिनटों के अन्दर पहले ऑपेरा हाउस पर फिर दादर रेलवे स्टेशन के पास दोहराया गया। ऑपेरा हाउस हीरों के कारोबार का न सिर्प भारत में बल्कि पूरी दुनिया में प्रमुख केंद्र है। यहां हुआ विस्फोट पंचरत्न बिल्डिंग एवं प्रसाद चैम्बर के बीच टाटा रोड के खाऊ गली में हुआ जबकि दादर का विस्फोट बेस्ट के एक बस स्टॉप की छत पर विस्फोट रखकर किया गया। झावेरी बाजार को पिछले 18 वर्षों में तीसरी बार आतंकी हमले का शिकार होना पड़ा है जबकि दादर और ऑपेरा हाउस में पहली बार विस्फोट किया गया है। बुधवार के विस्फोट में झावेरी बाजार में हुए विस्फोट में सबसे ज्यादा लोग मारे गए एवं घायल हुए हैं। ऐसे मौकों पर जब एक शहर में धमाके हों तो दूसरे बड़े शहरों में दहशत फैल जाती है। मेरे पास कई एसएमएस आए कि दिल्ली के साकेत और डिफेंस कॉलोनी में भी बम मिले हैं। यह सब एक अफवाह थी और दिल्ली में उपर वाले की कृपा से कहीं भी कोई बम नहीं मिला।
अब सवाल आता है कि यह विस्फोट किसने करवाए और क्यों करवाए? जहां तक किसने करवाए इसकी सही जानकारी तो बाद में मिले या शायद कभी भी निश्चित रूप से न मिल सके पर मकसद का थोड़ा अन्दाजा जरूर हो सकता है। जिस तरह से बार-बार झावेरी बाजार को टारगेट बनाया जा रहा है उससे तो लगता है कि बिजनेस को प्रभावित करने का उद्देश्य है। ऑपेरा हाउस भी एक ऐसा ही बिजनेस सेंटर है। दोनों ही जगहों पर भीड़ होती है। विस्फोटों से ज्यादा से ज्यादा लोगों को नुकसान पहुंचाने का इरादा साफ झलकता है। मुंबई में सीरियल ब्लास्ट में जैसी तबाही पहले मचती रही है, वैसी इस बार नहीं हो सकी। इसकी वजह विस्फोटों का उतना शक्तिशाली न होना है। इसमें खराब प्लानिंग भी हो सकती है पर चूंकि इन विस्फोटों में आईईडी तकनीक का इस्तेमाल हुआ इसलिए यह कहा जा सकता है कि इसके पीछे किसी बड़े आतंकी संगठन का हाथ है। यह स्थानीय अंडरवर्ल्ड का खेल नहीं है। हो सकता है कि इसके पीछे आईएसआई, लश्कर-ए-तोयबा व दाऊद इब्राहिम गिरोह का हाथ हो? यह किसी ऐसे संगठन ने भी करवाया हो जो भारत-पाक वार्ता में बाधा डालना चाहता हो। पाक से रिश्ते सुधारने के लिए बातचीत का दौर लम्बे वक्त के बाद शुरू हो चुका है, यह हमला उसे तोड़ने की साजिश भी हो सकती है।
अखबारों में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार इसके पीछे दाऊद इब्राहिम का हाथ हो सकता है। आईएसआई के इशारे पर हुए इस विस्फोट में अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद ने इस काम को अंजाम देने का बीड़ा उठाया। इसमें हिजबुल मुजाहिद्दीन और इंडियन मुजाहिद्दीन ने साथ दिया। सूत्रों के अनुसार बुधवार को मुंबई में हुए आतंकी हमले ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद भारत में कुछ करने के लिए आईएसआई ने दाऊद से कहा। आईएसआई की पहल पर ही दाऊद अपने गुर्गों के साथ चार माह पहले ही लश्कर-ए-तोयबा में सम्मिलित हो गया था। सूत्रों के अनुसार आईएसआई ने दाऊद के कई लोगों को लाहौर के बहावलपुर में हथियार चलाने और कमांडो प्रशिक्षण भी दिलवाया है और प्रशिक्षण अभी भी जारी है। जिस प्रकार मुंबई में विस्फोट हुआ है उसमें कम और मध्यम क्षमता वाले बम का प्रयोग किया गया। इसमें आईईडी का भी इस्तेमाल हुआ है। इस तरह के बम का प्रयोग इंडियन मुजाहिद्दीन करते हैं। हिजबुल की आदत है कि वह बम विस्फोट में किसी हिन्दू धार्मिक स्थल पर मध्यम क्षमता के बम का प्रयोग करता है। मुंबई में झावेरी बाजार में मुंबा बेबी के पास बम फटा है। इसके अलावा हिजबुल प्राय बम विस्फोट में गाड़ी का इस्तेमाल करता है जो मुंबई में हुआ। इंडियन मुजाहिद्दीन एक प्रकार से लश्कर के स्लीपर सेल की तरह काम करता है। आने वाले दिनों में शायद इस पर और जानकारी मिले। भारत की खुफिया और सुरक्षा तंत्र को चुस्त-दुरुस्त करना होगा। ऐसे हमले और भी हो सकते हैं। हमें पूरी तरह से तैयार रहना होगा।
Tags: 13/7, Anil Narendra, Bomb Blast, Daily Pratap, Dawood Ibrahim, Hizbul Mujahid, India, Indian Mujahideen, ISI, Lashkar e Toeba, Mumbai, Osama Bin Ladin, P. Chidambaram, Terrorist, Vir Arjun

Saturday, 7 May 2011

For India, Lashkar is more dangerous than Laden

Anil Narendra
US might have felt relieved with the death of Osama bin Laden, but so far India is concerned, we are least affected by his death. For us, Lashkar-e-Toiba is more dangerous than Al Qaeda. Even the terrorist infrastructure in Pakistan is not going to be affected by the killing of bin Laden. A number of terror camps of dozens of outfits like Lashkar, Jaish-e-Mohammed, Hizb-ul- Mujahideen, Harkat-ul-Ansar are still operating in Pakistan. At present, about 37 terror camps are active in Pakistan. About 2,300 hardcore terrorists are operating in Jammu and Kashmir. Besides, about 900 foreign mercenaries are also present there. Foreign mercenaries from Pakistan, PoK, Afghanistan, Egypt, Sudan, Yemen, Bahrain, Bangladesh, Iran and Iraq are also present in J&K.
In fact, Indian Intelligence Agencies see no difference between Al Qaeda of Osama and Lashkar-e-Toiba. Indian dossier on Lashkar says that this terror outfit has close relations with Al Qaeda and Taliban. These terror organizations in Islamic Pakistan nation, fulfill their expansion needs out of the revenue received from the sale of hides of slaughtered animals on Eid and other religious celebrations, besides from donations and levies collected from people. According to sources, the Lashkar training camp at Pawanodheri in Manshera of Pakistan has the capacity to train 500 persons at a time. Lashkar also has more than 2,000 recruiting centers and offices spread in a number of big cities including Muzaffarabad, Lahore, Peshawar, Islamabad, Rawalpindi, Karachi, Multan, Quetta, Gujaranwala, Sialkot, Gilgit. Beside modern weapons, they have advanced communication equipment. According to intelligence sources, terrorists of Lashkar use voice internet protocol for ransom and communication in the Valley.
In spite of UN sanctions, the power of this terror outfit, working under different 19 names including Jamat-ud-Dawa and Lashkar-e-Toiba can be gauged from the operations of the organization. Even though the Lashkar has been banned by UN since 2005 and by Pakistan since 2002, its chief Hafiz Saeed did not refrain from organizing condolence meetings on the death of Osama bin Laden. In India, with the support of outfits like Indian Mujahideen SIMI has developed a model for outsourcing terrorism. In Bangladesh, Jamaat-ul-Mujahideen and Harkat-ul-Jihad al-Islami (HuJI) has direct links with Lashkar. Mumbai terror attack has, now forced US to acknowledge the fact that expansion of Lashkar and targeting Western countries are a cause of serious concern. Lashkar terrorists have proved this point by targeting Khasad House, an important place for Israelis and Hotel Taj, a preferred stay-destination for Western tourists in Mumbai. India must fight its fight against terrorism on its own. We, however, can pressurize US in destroying terror factories in Pakistan or help us in destroying them.

Thursday, 5 May 2011

जेरोनिमो ईकेआईए सुनने को थे बेकरार ओबामा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 05 मई 2011
अनिल नरेन्द्र
एक बार जब यह सुनिश्चित हो गया कि एबटाबाद के एक घर में ओसामा बिन लादेन छिपा हुआ है तो अमेरिकी सुरक्षा विभाग ने राष्ट्रपति बराक ओबामा को दो विकल्प दिए। पहला कि इमारत परिसर को बमों से उड़ा दिया जाए, दूसरा कि जमीनी हमला करके उसे तबाह कर अन्दर सभी लोगों को मार दिया जाए या गिरफ्तार किया जाए। बराक ओबामा ने दूसरा  विकल्प चुना। उन्होंने कहा कि जमीनी हमला करो ताकि हम सब और सारी दुनिया में यह निश्चित रूप से निर्णायक रूप से तय हो जाए कि ओसामा बिन लादेन ही छिपा है और हमला उसी पर किया गया है। इस काम के लिए प्रतिष्ठित नेवी सील की एक विशेष टीम चुनी गई। अफगानिस्तान के अमेरिकी बैस से हेलीकॉप्टरों ने उड़ान भरी। भारतीय समयानुसार रात दो बजे चार हेलीकॉप्टरों ने हवेली की घेराबंदी शुरू कर दी और यह सारी कार्रवाई राष्ट्रपति ओबामा, विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और टॉप कमांडर व्हाइट हाउस के बेसमेंट में सिचुएशन रूम में बन्द होकर खुफिया वीडियो क्रीन पर देख रहे थे। यूएस नेवी सील्स के जवानों के हेलमेट पर कैमरे लगे थे। ओबामा बेसब्री के साथ लादेन के मारे जाने से संबंधित कोड मैसेज मिलने का इंतजार कर रहे थे। यह मैसेज था, जेरोनिमो ईकेआईए। सीआईए के डायरेक्टर लियोन ई. पैनेटा ने कहा कि हमें जेरोनिमो दिखाई दिया है। इसके कुछ ही मिनट बाद उन्होंने कहा कि जेरोनिमो ईकेआईएस यानि एनिमी किल्ड इन एक्शन। लादेन की बाईं आंख पर गोली मारी जा चुकी थी। ओबामा ने कहा वी गाट हिम।
दरअसल राष्ट्रपति ओबामा ने राष्ट्रपति का पद्भार सम्भालते ही सीआईए के डायरेक्टर लियोन पैनेटा को आदेश दिया था कि मुझे 30 दिन के अन्दर एक ऐसा प्लान चाहिए जिसमें ओसामा लादेन को या तो जिन्दा पकड़ा जाए या फिर मुर्दा। सीआईए ने अगस्त 2010 में प्लान तैयार कर लिया था। आतंक का दूसरा नाम बन चुका बिन लादेन कहां रहता है, यह जानकारी अमेरिकी खुफिया अधिकारियों को एक कार का पीछा करते हुए मिली। सफेद रंग की सुजुकी कार को पिछले साल जुलाई में पेशावर के निकट देखा गया था। कार में बैठा था अलकायदा प्रमुख लादेन का सबसे विश्वस्त संदेशवाहक, जिसका अमेरिकी खुफिया अधिकारी कई महीनों से पीछा कर रहे थे। समाचार चैनल सीएनएन के मुताबिक संदेशवाहक का नाम अबू अहमद था और वह कुवैती नागरिक था। उसकी जानकारी हालांकि अमेरिकी खुफिया अधिकारियों को 2007 में ही मिल चुकी थी। न्यूयार्प टाइम्स के मुताबिक सीआईए के लिए काम करने वाले पाकिस्तानी जासूस ने पिछले साल जुलाई में पेशावर के निकट अहमद की सफेद कार देखी थी और उसका पीछा किया था। कई सप्ताह तक कार का पीछा करने पर जासूस को एबटाबाद के एक बंगले का पता चला। यह बंगला अभी चार दिवारियों से घिरा हुआ था। यह स्थान इस्लामाबाद से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जब कमांडो कार्रवाई हुई उस समय अहमद भी एबटाबाद की इस इमारत में मौजूद था और मारा गया। बिन लादेन सबसे छोटी पत्नी और बेटे सहित दो संदेशवाहकों के साथ रह रहा था। इस हवेली की 18 फीट ऊंची दीवारें थीं जिसमें आने-जाने के लिए कम रास्ते थे और सड़क कच्ची थी। 4.4 करोड़ रुपये कीमत की हवेली थी लेकिन उसमें फोन या इंटरनेट नहीं था। मोबाइल तक भी नहीं था। इस तरह हुआ ओसामा बिन लादेन का अन्त।

Wednesday, 4 May 2011

दुनिया का सबसे मोस्ट वांटेड ओसामा बिन लादेन मारा गया

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi

प्रकाशित: 04 मई 2011
-अनिल नरेन्द्र
पूरी दुनिया को इस्लाम के रंग में रंगने का खूंरेजी ख्वाब देखने वाले और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का पर्याय बन चुके मोस्ट वांटेड आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को अमेरिका ने मौत के घाट उतारकर अमेरिका ने यह साबित कर दिया कि वह अपने इरादों के प्रति अटल है और अपने शत्रुओं का सफाया करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। रविवार की देर रात अमेरिकी सैनिकों ने एक अत्यंत गोपनीय ऑपरेशन में उसे एक ऐसी इमारत के अन्दर मार गिराया जो पाकिस्तान की मिलिट्री अकादमी से कुछ ही दूर स्थित है। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से 60 किलोमीटर दूर एबटाबाद शहर में स्थानीय समयानुसार रात डेढ़ बजे अमेरिकी सेना के विशेष बल को लेकर चार हेलीकॉप्टर उस इमारत के कम्पाउंड में उतरे जहां ओसामा के छिपे होने की सूचना थी। सोमवार को टीवी पर जो फुटेज दिखाए गए, उनमें खेतों के बीच एक कम्पाउंड दिख रहा था, जो 12 फीट ऊंची दीवारों से घिरा हुआ था। किलेनुमा इस इमारत के परिसर में हेलीकॉप्टरों के उतरने के बाद उन पर ओसामा के गार्डों ने फायरिंग की। अमेरिकी सैनिकों की जवाबी कार्रवाई में 54 वर्षीय ओसामा की मौत हो गई। उसके बेटे और एक महिला के मारे जाने की भी खबर है। इस अभियान में एक हेलीकॉप्टर को क्षति पहुंची। मालूम हो कि अमेरिका ने ओसामा पर ढाई करोड़ डालर (लगभग 111 करोड़ रुपये) का इनाम घोषित किया था। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने राष्ट्र के नाम संबोधन में ओसामा के मारे जाने की पुष्टि की। लादेन के मारे जाने के  बाद उसकी दो पत्नियों तथा चार बच्चों को हिरासत में ले लिया गया है। अमेरिका का कहना है कि इस्लामी रीति-रिवाज के साथ ओसामा बिन लादेन के शव को समुद्र में दफन किया गया है। समझा जाता है कि उसके अपने देश सऊदी अरब द्वारा शव लेने से इंकार करने पर ऐसा किया गया। हालांकि उसे समुद्र में दफनाने पर इस्लामी विद्वानों ने सवाल उठाए हैं। उसे समुद्र में दफनाने के पीछे अमेरिका की मंशा उसकी कब्रगाह को आस्था का केंद्र बनने से रोकने की रही है। लादेन की पहचान की पुष्टि के लिए अमेरिका ने उसके शव का डीएनए परीक्षण कराया है। यह डीएनए टेस्ट लादेन की बहन के डीएनए से मिलने से किया गया, जिसमें शव लादेन का होने की 99.9 फीसदी पुष्टि हो गई है। बहन का डीएनए सैम्पल 9/11 के हमलों के बाद लिया गया था। लादेन के बारे में किसी भी तरह का शक दूर करने के लिए चेहरे का मिलान करने वाली अत्याधुनिक फेशियल रिकाग्निशन तकनीक का भी सहारा लिया गया। सन 2001 में 9/11 के हमले के बाद अमेरिका लगभग दस साल से अलकायदा सरगना को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने की कोशिश में था। जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने लादेन के मारे जाने की खबर की पुष्टि की तो सारे अमेरिका में जश्न का माहौल बन गया। रात के अंधेरे होने के बावजूद व्हाइट हाउस के बाहर खुशी से झूमती भीड़ एकत्र हो गई।
हालांकि अमेरिका ने लादेन ऑपरेशन को काफी खुफिया रखा और आईएसआई और अलकायदा को इसकी हवा नहीं लगने दी पर इस कार्रवाई से कुछ ही दिन पहले अलकायदा की धमकी का महत्व बढ़ जाता है। क्या यह सम्भव है कि ओसामा के सम्भावित अमेरिकी कार्रवाई का आभास हो गया था? इस कार्रवाई के कुछ ही दिन पहले चर्चित विकीलीक्स की ओर से जारी गोपनीय दस्तावेज में कहा गया, अलकायदा के एक वरिष्ठ स्वयंभू कमांडर ने दावा किया है कि उसके संगठन ने यूरोप में एक परमाणु बम छिपा रखा है। अगर लादेन को पकड़ा गया या मारा गया तो वह इसमें विस्फोट कर देंगे? गुआतांनामो कारागार में 780 पकड़े गए लोगों की पृष्ठभूमि और पूछताछ के दौरान उनकी ओर से दिए बयान के आधार पर यह गोपनीय दस्तावेज तैयार किए गए हैं। ओसामा के मारे जाने से दुनिया में हो रही आतंकवादी गतिविधियों पर शायद ही कोई लम्बा-चौड़ा असर पड़े। क्योंकि आज सारी दुनिया में इतने अलकायदा टाइप के सेल स्थापित हो चुके हैं जो स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं कि इनकी गतिविधियों पर कोई असर न पड़े। फिर इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पिछले एक दशक में अलकायदा ने विचारधारा का रूप ले लिया है। आतंकवाद को खाद-पानी देने वाली इस विचारधारा  का अन्त नहीं दिखता। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि अलकायदा ने अमेरिका के नेतृत्व में छेड़े गए आतंकवाद विरोधी अभियान को इस्लाम पर हमले का रूप दे दिया है।
अमेरिकी विशेष बल के हाथों इस्लामाबाद के करीब एबटाबाद में एक शानदार बंगले में ओसामा की मौत और इससे पहले अनेक अलकायदा नेताओं की पाकिस्तानी शहरों में हुई गिरफ्तारी से यह स्पष्ट हो जाता है कि आतंकवादियों की सुरक्षित पनाहगाह अफगान-पाक सीमा या भारत सीमा पर नहीं बल्कि पाकिस्तान के बीचोबीच है। इससे एक और मूलभूत सच्चाई रेखांकित होती है कि पाकिस्तान में सेना का वर्चस्व समाप्त किए बिना तथा वहां कट्टरपंथ को समाप्त किए बगैर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ जंग नहीं जीती  जा सकती। 9/11 हमले के बाद पाकिस्तान से पकड़े गए अन्य आतंकवादी नेताओं में अलकायदा के तीसरे नम्बर का नेता शालिद शेक मुहम्मद, नेटवर्प व्यवस्था का प्रमुख अबु जुबैदिया, आसुर जजीरी शामिल है। इन तमाम गिरफ्तारियों में एक समान कड़ी यह है कि ये सब पाकिस्तानी शहरों में पकड़े गए हैं। इस आलोक में यह हैरानी की बात नहीं है कि बिन लादेन कबाइली इलाकों के बजाय पाकिस्तान की राजधानी के निकट शहर में मारा गया। अगर हैरानी है तो इस बात की कि लादेन इस्लामाबाद के बगल में एबटाबाद में रह रहा था। यहां पाकिस्तानी सेना का बड़ा आधार शिविर, सैन्य अकादमी, सैन्य अस्पताल और अनेक वरिष्ठ सैन्य व खुफिया अधिकारी व पूर्व अधिकारियों के आवास हैं। अमेरिका को लादेन को पकड़ने में दस साल इसलिए भी लगे, क्योंकि लादेन को पाकिस्तानी रक्षा प्रतिष्ठान के कुछ तत्वों का संरक्षण प्राप्त था। याद रहे कि ओसामा डायलासिस पर था और डायलसिस हर स्थान पर नहीं हो सकता। कटु सत्य तो यह है कि अमेरिका बेशक जितना प्रयास करे जब तक पाकिस्तानी सेना और आईएसआई नहीं सुधरती तब तक न तो आतंकवाद ही खत्म होगा और न ही पाकिस्तान का राष्ट्र निर्माण सम्भव है। बहरहाल अमेरिका को यह खुशी व संतोष जरूर होगा कि उसने 9/11 का बदला ले लिया है।

Friday, 29 April 2011

आईएसआई एक आतंकवादी संगठन है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 29 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

भारत तो हमेशा से कहता आया है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई एक सही एजेंसी नहीं है और यह आतंकवाद को बतौर एक हथियार इस्तेमाल करती है पर अमेरिका सहित अधिकतर पश्चिमी देश हमारी बात से सहमत नहीं थे। अमेरिका ने तो आतंकवाद के खिलाफ जंग में पाकिस्तान को अपना स्ट्रेटेजिक पार्टनर तक बना रखा है पर जब खुद पर बीतती है तो अमेरिका भी बोलने  में मजबूर हो जाता है कि आईएसआई एक आतंकवादी संगठन है। द गार्डियन जैसे प्रतिष्ठित ब्रिटिश अखबार ने अमेरिकी गुप्तचर फाइलों का हवाला देते हुए कहा है कि गुआंतानामो-वे के जांचकर्ताओं को की गई सिफारिश में इंटरसर्विसेज महानिदेशालय के साथ-साथ अलकायदा, हमास और हिजबुल्ला को एक चुनौती करार दिया गया है। सितम्बर 2007 के इन दस्तावेजों में कहा गया है, इन समूहों में से किसी से भी संबंधित होने का अर्थ आतंकवादी या विद्रोही गतिविधि है। दस्तावेज में कहा गया है, `इन संगठनों के साथ संबंध रखने का अर्थ है कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति ने अलकायदा या तालिबान को समर्थन दिया है या वह अमेरिका पर गठबंधन बलों के खिलाफ कार्रवाइयों में लिप्त रहा है।' हाल ही में अमेरिका की गुप्तचर सेवाओं को खबरें मिली थीं कि आईएसआई तालिबान को अफगानिस्तान में कई वर्षों से समर्थन दे रही है। इस खबर के प्रकाशित होने के कुछ समय बाद ही यह नया खुलासा हुआ है। अमेरिकी अधिकारियों की ओर से तैयार खुफिया दस्तावेज में आईएसआई का जिन तीन दर्जन आतंकी संगठनों के साथ उल्लेख किया गया है उनमें अलकायदा, तालिबान के अलावा भारत को खासतौर पर आतंकित करते रहने वाले लश्कर-ए-तोयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन भी हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि यह दस्तावेज 2007 में तैयार किया गया हो लेकिन माना जा रहा है कि अमेरिका को चुनौती देने वाले संगठनों की सूची में से आईएसआई को अभी हटाया नहीं गया है। इसका सीधा अर्थ है कि जिस तरह पाकिस्तान ने आतंकवाद को लेकर दोहरे मानदंड अपना रखे हैं उसी तरह अमेरिका ने भी। पाकिस्तान यह दावा करता है कि वह भी आतंकवाद  के खिलाफ है और अपने दावे को सही ठहराने के लिए खुद के आतंकवाद से त्रस्त होने का रोना रोता है, लेकिन सच्चाई यह है कि वह एक बड़ी संख्या में आतंकी संगठनों का परोक्ष-प्रत्यक्ष रूप से समर्थन करता है। समय-समय पर अमेरिकी विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और यहां तक कि राष्ट्रपति बराक ओबामा यह कह चुके हैं कि आतंकवाद के खिलाफ अपेक्षित कदम उठाने से पाकिस्तान इंकार कर रहा है।
सारी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान दुनिया में एक मात्र देश है जो अपनी नीति और रणनीति के तहत आतंकवाद को प्रश्रय देता है। पाकिस्तान को आज इसीलिए आतंकवाद की नर्सरी कहा जाता है और आईएसआई की विभिन्न आतंकी कार्रवाइयों में संलिप्तता बार-बार उजागर भी होती रही है। मुंबई हमले में भी उसकी भूमिका से अब अमेरिका पूरी तरह वाकिफ हो चुका है। यही नहीं अमेरिका में 9/11 हमलों में भी आईएसआई की भूमिका थी। अमेरिका अन्दरखाते यह सब जानता है पर चूंकि अफगानिस्तान में उसे आईएसआई का साथ चाहिए इसलिए भी सब कुछ जानते हुए भी अनजान बन जाता है। ताजा खुलासे से अमेरिका का पाक की ओर शायद ही नजरिया बदले पर भारत को यह संतोष जरूर होगा कि आज सारी दुनिया मानने लगी है कि आईएसआई एक आतंकी संगठन है।