Wednesday 11 May 2011

कहीं यह किसान आंदोलन मायावती को भारी न पड़ जाए?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 11 मई 2011
-अनिल नरेन्द्र
जमीन अधिग्रहण के खिलाफ भट्टा-पारसौल में भड़की आग ग्रेटर नोएडा से आगरा तक फैल गई है। जेवर, अलीगढ़, मथुरा और आगरा तक पूरे यमुना एक्सप्रेस-वे पर किसानों के साथ पुलिस की झड़पें हुई हैं। भट्टा-पारसौल में 17 जनवरी से शुरू हुआ किसानों का आंदोलन मायावती सरकार के लिए चिन्ता का विषय बनता जा रहा है। सरकार के अफसर और सलाहकारों ने सत्ता के अंतिम साल में मायावती को ठीक वहीं पहुंचा दिया है जहां पिछली बार मुलायम सिंह सत्ता के अंतिम साल में पहुंच गए थे। तब अनिल अम्बानी के लिए किसान आंदोलन हुआ तो अब की जेपी समूह के लिए हो रहा है। किसानों पर 2007 से अब तक छह बार लाठी-गोली चल चुकी है और करीब दर्जनभर किसान मारे जा चुके हैं।

नोएडा से आगरा के लिए यमुना एक्सप्रेस-वे का निर्माण किया जा रहा है। इसकी लम्बाई 165 किलोमीटर है। गौतम बुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा और आगरा के 334 गांवों की जमीन इस रोड के लिए अधिग्रहित की गई है। किसान महीनों से यह मांग करते आए हैं कि उनको मुआवजे की बेहतर दरें दी जाएं और सरकार भूमि अधिग्रहण के कानून में बदलाव करे। दरअसल यमुना एक्सप्रेस-वे प्रोजेक्ट को लेकर किसानों का टकराव एकदम नया नहीं है। पिछले सालों में कई जगह आंदोलन भड़क चुका है। इसमें 11 किसानों की जान जा चुकी है पर ये विदर्भ के किसान नहीं हैं संकट में घिरने पर फांसी पर चढ़ जाएं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर किसान पूर्वांचल के मुकाबले बड़ी जोत वाले तो हैं ही साथ ही कद, काठी और लाठी में भी मजबूत हैं। जमीनें बिकीं तो किसानों के एक वर्ग ने गाड़ी, मकान और असलहा पर भी निवेश किया। शनिवार को अब पारसौल में जो मुठभेड़ हुई तो उसमें गोली दोनों तरफ से चली। यह बदली हुई संस्कृति और अपरिपक्व नेतृत्व का भी नतीजा है। इस सबसे तो यह साफ है कि करीब सौ साल पुराने अंग्रेजों के बनाए भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर किसानों की नाराजगी विस्फोटक होती जा रही है। किसानों का तर्प है कि प्रदेश सरकार जमीन की तिजारत में क्यों लगी है? किसानों से आठ-नौ सौ रुपये वर्ग मीटर की जमीन लेकर व्यापारियों और उद्योगपतियों को बीस हजार रुपये वर्ग मीटर के हिसाब बेचने से किसका फायदा होता है।

इस प्रकरण में अब सियासत भी नए रंग भरने लगी है। रविवार को रालोद के प्रमुख चौ. अजीत सिंह अपने काफिले के साथ घटनास्थल पर जाने के लिए निकले थे लेकिन उनके काफिले को नोएडा की सीमा में ही रोक दिया गया। अजीत सिंह का कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार एक खास कम्पनी को मालामाल करने के लिए किसानों का गला काटने पर उतारू है। कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा ने इस खूनी जंग की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री मायावती पर डाल दी है। उनका आरोप है कि मायावती सरकार किसान विरोधी है, इसलिए जायज मुआवजा मांगने वाले किसानों पर गोली बरसा रही है। किसान आंदोलन के नेता महेन्द्र सिंह टिकैत के बेटे राकेश टिकैत का कहना है कि भट्टा-पारसौल की घटनाओं से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के स्वाभिमान को ललकारा गया है, ऐसे में अब किसान जान की बाजी लगाकर भी इंसाफ लेने के लिए आगे आएंगे। समय रहते अगर मुख्यमंत्री मायावती ने स्थिति को नहीं सम्भाला तो किसान आंदोलन सरकार के लिए भारी पड़ सकता है।

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