Tuesday, 11 July 2023

प्राधानमंत्री की आलोचना राजद्रोह नहीं

कर्नाटक हाईं कोर्ट ने एक स्वूल प्राबंधन के खिलाफ राजद्रोह का मामला खारिज करते हुए कहा कि प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपशब्द अपमानजनक और गैर-जिम्मेदाराना थे लेकिन इसे राजद्रोह नहीं कहा जा सकता है। हाईं कोर्ट की वुलबगा शाखा के जस्टिस हेमंत चंदनगौदर ने शुव््रावार को बिदर के न्यू टाउन पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईंआर को खारिज करते हुए बिदर के शाहीन स्वूल के प्राबंधन के सभी आरोपियों, अलाऊद्दीन, अब्दुल खालिक, मोहम्मद बिलाल और मोहम्मद मेहताब को क्लीन चिट दे दी है। कोर्ट ने कहा कि विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच सद्भावना बिगाड़ने की धारा 153(ए) को इस केस में उपयुक्त नहीं पाया गया है। जस्टिस चंदनगौदर ने अपने पैसले में कहा—प्राधानमंत्री के लिए अपशब्द कहना न सिर्प अपमानजनक है बल्कि गैर-जिम्मेदाराना भी है। सरकार की नीतियों की सकारात्मक आचोलना जायज है। लेकिन संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को किसी नीतिगत पैसले के लिए अपमानित नहीं किया जा सकता है। खासकर इसलिए किसी समूह विशेष को उनका पैसला पसंद नहीं आया है। हाईं कोर्ट ने कहा कि स्वूल में मंचित नाटक दुनिया के सामने तब आया जब स्वूल के एक व्यक्ति ने अपने इंटरनेट मीडिया पर उसके वीडियो को अपलोड किया। कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने लोगों को सरकार के खिलाफ हिसा के लिए भड़काने या जनता को अस्थिर करने के इरादे से यह कदम उठाया है। इसलिए कोर्ट ने कहा कि धारा 124(ए)(राजद्रोह) और धारा 505(2) के लिए पर्यांप्त परिस्थितियों की कमी के चलते इन धाराओं को लगाना नाजायज है। हाईं कोर्ट ने अपने आदेश में स्वूल को भी हिदायत दी है कि वह बच्चों को सरकार की आलोचना से दूर रखें। उल्लेखनीय है कि 21 जनवरी 2020 को कक्षा 4, 5 और 6 के छात्रों ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ स्वूल में एक नाटक का मंचन किया था। एबीवीपी कार्यंकर्ता नीलेश रक्षला की शिकायत पर चार लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ था जिसमें धारा 504 (जानबूझ कर अपमान करना), 505(2), 124(ए)(राजद्रोह), 153 (ए) और धारा 34 लगाईं गईं थी। कोर्ट ने साफ कहा कि प्राधानमंत्री की आलोचना करना राजद्रोह नहीं है हालांकि यह अपमानित करना जरूर है।

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