Thursday 20 July 2023
पवार-शिदे को साथ लेने का फायदा?
क्या हार में, क्या जीत में, किचित नहीं भयभीत मैं, कर्तव्य पथ पर जो मिला, यह भी सही वो भी सही। 1996 में तत्कालीन प्राधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बहुमत के आगाज में 13 दिन के भीतर गिर गईं थी। राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए संसद में बहुमत नहीं जुटा पाने के दर्द के तौर पर अटल जी ने यह कविता संसद में पढ़ी थी। वाजपेयी के दौर में भाजपा सत्ता के लिए कोईं समझौता नहीं करने का स्टैंड दिखाती रही थी, परन्तु वह बदलते दौर में किसी भी तरह का समझौता करने में नहीं हिचक रही है। महाराष्ट्र की राजनीति की मौजूदा तस्वीर से इसे बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। महाराष्ट्र विधानसभा के मॉनसून सत्र के हंगामेदार होने की उम्मीद है। आार्यं यह भी है कि सत्ता में शामिल राजनीतिक दलों की मुश्किलें, विपक्षी दलों से कम नहीं दिख रही हैं। महाराष्ट्र में मौजूदा विधानसभा में 105 विधायकों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पाटा है। शिदे के समर्थन से भाजपा सत्ता में आईं और सबसे बड़ी पाटा होने के बाद भी उसे मुख्यमंत्री का पद 40 विधायकों वाली शिदे गुट को देना पड़ा। एक साल बाद जब लगा कि मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा के कईं चेहरों को शामिल किया जाएगा तभी अजीत पवार की एनसीपी गठबंधन में शामिल हो गईं और उनके नौ विधायकों को मंत्री बना दिया गया। शिदे गुट वाली शिवसेना के चार और भाजपा के पांच मंत्री पद एनसीपी के खाते में चले गए। इतना ही नहीं, अब भी आशंका जताईं जा रही है कि भाजपा को अपने वुछ अहम विभाग पवार गुट के लिए छोड़ने होंगे। ऐसे में भाजपा विधायकों को सत्ता में अपना पूरा हिस्सा नहीं मिल रहा है और इस बात को लेकर उनकी नाराजगी लगातार बढ़ रही है। एक साल से चल रही शिदे सरकार में शिदे जरूर मुख्यमंत्री थे लेकिन अधिकांश अहम मंत्रालय फड़नवीस और भाजपा के पास थे। जब पवार के नेतृत्व में एनसीपी के नौ मंत्रियों ने शपथ ली तो उन्होंने अहम मंत्रालयों की मांग की। वित्त, सहकारिता, खादृा एवं नागरिक आपूर्ति, चिकित्सा, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी भाजपा से लेकर एनसीपी गुट को दे दिए गए। हालांकि भाजपा विधायकों के पास वेंद्रीय नेतृत्व के पैसले का समर्थन करने के अलावा कोईं विकल्प नहीं है, लेकिन अहम मंत्रालयों के छिन जाने से भारी नाराजगी देखी जा रही है। हालांकि सरकार में मंत्रालय के बंटवारे से जुड़ी समस्या को सुलझाना मुश्किल नहीं होता, लेकिन इस गठबंधन की उलझनें कहीं अधिक हैं।
दरअसल गठबंधन में शामिल हुए अजीत पवार गुट के वुछ नेताओं की अपनी-अपनी विधानसभा सीटों पर भाजपा से सीधी टक्कर रही है। सालों तक एनसीपी के खिलाफ आव््रामक रुख अपनाने वाले विधायकों और पदाधिकारियों के सामने अब असमंजस की स्थिति है। महाविकास अघाड़ी सरकार बनने के बाद इन सीटों पर पाटा पदाधिकारियों ने तीनों दलों के खिलाफ चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। लेकिन अब उन्हें अजीत पवार और एकनाथ शिदे के साथ काम करना होगा। असल संकट यही है।
हालांकि अभी यह नाराजगी अंदरुनी लग रही है, लेकिन चुनाव के दौरान विवाद बढ़ने की आशंका जताईं जा रही है। पिछले चुनाव में भाजपा ने जहां विधानसभा की 160 सीटों पर चुनाव लड़ा था, वहीं इस बार दो पार्टियों से तालमेल बिठाते हुए कम सीटों पर समझौता करना होगा। पवार-शिदे दोनों को साथ लेने से भाजपा को कितना चुनावी लाभ होगा यह तो समय ही बताएगा।
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