कर्नाटक मामले में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की
सियासी गुगली ने राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित
शाह के किए-कराए पर पानी फेर दिया। उनकी
रणनीति को बखूबी अंजाम दिया उनके दो वरिष्ठ सिपहसालारोंöगुलाम
नबी आजाद और अशोक गहलोत ने। राज्य में भाजपा को सत्ता पाने से रोकने के राहुल के प्लान
ने दो स्पष्ट संकेत दिए। पहला कि भाजपा को हराया जा सकता है। दूसरा कि अगर विपक्ष एक
हो जाए तो वह सत्ता की बाजी जीत सकता है। अतीत की गलतियों से सीख लेते हुए इस बार चुनाव
परिणाम से पहले ही पूरी तैयारी कर ली गई थी और सभी को इस अनुरूप जिम्मेदारी भी सौंप
दी गई थी। कांग्रेस खराब मैनेजमेंट के कारण हाल के दिनों में कई बार सत्ता के करीब
पहुंचने के बाद भी सरकार बनाने में विफल रही है। इस बार वह यह नहीं दोहराना चाहती थी,
इसलिए पहले से ही पूरी तैयार कर ली गई। आखिरकार शनिवार को जब कांग्रेस
को अपनी रणनीति में कामयाबी मिली तब पार्टी नेताओं ने राहत की सांस ली। पार्टी ने परिणाम
से पहले ही तमाम संभावनाओं के मद्देनजर तैयारी के बाद सोमवार देर रात ही अचानक ही अशोक
गहलोत और गुलाम नबी आजाद को बेंगलुरु भेजा ताकि वे प्लान बी के साथ तैयार रहें। देर
शाम वे वहां पहुंच चुके थे। चुनाव परिणाम आधिकारिक रूप से घोषित होने से पहले ही कांग्रेस
का बिना संकोच जेडीएस को समर्थन देना स्पष्ट संकेत दे रहा था कि इस चुनाव में कांग्रेस
अल्पमत में आने के बावजूद पूरी रणनीति से काम कर रही थी। प्लान बी के तहत पार्टी ने
बिना किसी आधिकारिक शर्त के कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने पर समर्थन दे दिया। यह
भी खास बात थी कि अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी के नेतृत्व में कर्नाटक में कांग्रेस
पहली बार चुनाव लड़ रही थी। चुनाव के पहले राहुल गांधी सिलसिलेवार जनसभाएं करते रहे,
जबकि चुनाव के बाद तीनों रणनीतिकारों ने सामने आकर मैदान संभाल लिया।
बिसात बिछाने के साथ पूरी रणनीति सोनिया गांधी को बताई जा रही थी। सोनिया लगातार इन
तीनों नेताओं को निर्देश दे रही थीं। जब गवर्नर ने कांग्रेस को दरकिनार करते हुए भाजपा
को सरकार बनाने का आमंत्रण दिया तो अभिषेक मनु सिंघवी ने कानूनी तौर पर मोर्चा संभाला।
सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और इसे इस स्तर पर लेकर आए कि सर्वोच्च
न्यायालय को आधी रात में सुनवाई करनी पड़ी। इस कानूनी लड़ाई में कपिल सिब्बल और पी.
चिदम्बरम भी उनके साथ थे। नतीजों के बाद चली उठापटक में कुमारस्वामी
जब राज्यपाल से मिलने पहुंचे तो उनके साथ आजाद, अशोक गहलोत और
मल्लिकार्जुन खड़गे मौजूद थे। मंगलवार रात कांग्रेसी नेताओं ने बेंगलुरु के होटल में
देवेगौड़ा और कुमारस्वामी से मुलाकात की, जहां आजाद भी ठहरे हुए
थे। बताया जाता है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डी. शिवकुमार भी
होटल में मौजूद थे। इस मौजूदगी का ही परिणाम था कि जब कर्नाटक में भाजपा की सरकार गिर
चुकी थी और जिसे कांग्रेस की अतिसक्रियता और विशेष रणनीति का नतीजा बताया जा रहा है।
कर्नाटक से पहले गुजरात में राज्यसभा सांसद के चुनाव के दौरान भी अमित शाह की रणनीति
को असफलता हाथ लगी थी, तब कांग्रेस के खेवनहार सोनिया गांधी के
करीबी रहे अहमद पटेल बने थे। गुजरात चुनाव के दौरान अगर अहमद पटेल पार्टी के संकटमोचक
बने तो कर्नाटक में गुलाम नबी आजाद, अशोक गहलोत, मल्लिकार्जुन खड़गे और डी. शिवकुमार पार्टी के संकटमोचक
बने। उन्होंने कर्नाटक के फ्लोर टैस्ट से पहले तक कांग्रेसी विधायकों को टूटने से बचाए
रखा। इन नेताओं ने सुनिश्चित किया कि कोई भी विधायक टूटे नहीं। ममता बनर्जी,
मायावती और सीताराम येचुरी ने भी इस मामले में इनपुट दिए वहीं टीडीपी
और टीआरएस भी कांग्रेस के इन शीर्ष नेताओं से लगातार सम्पर्प में थे। इस तरह सब ने
मिलकर मोदी-शाह की रणनीति को मात दी।
No comments:
Post a Comment