Sunday, 13 May 2018

ईरान परमाणु समझौते से ट्रंप का पीछे हटना

ईरान के साथ 2015 में किए गए महत्वाकांक्षी बहुराष्ट्रीय समझौते से बाहर निकल आने का अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का फैसला अप्रत्याशित नहीं है, क्योंकि अपने चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने इसका विरोध किया था। ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए जो करार किया था, उससे वह पीछे हट गए हैं। ओबामा के समय से ही इस समझौते की ट्रंप पहली ही कई बार आलोचना कर चुके हैं। ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका के पीछे हटने की चौतरफा आलोचना हो रही है। इस डील में शामिल अन्य पांच देशोंöब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन और जर्मनी ने कड़ा ऐतराज किया है। ट्रंप का कहना है कि इस समझौते में कई खामियां हैं और यह अमेरिका के हित में नहीं है। ट्रंप ने तो यहां तक कहा कि इससे ईरान को जो धन मिला, उसे परमाणु हथियार हासिल करने से नहीं रोका जा सका। यह समझौता 2015 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के नेतृत्व में हुआ था। ओबामा ने ट्वीट कर इसे ट्रंप प्रशासन का गलत फैसला कहा है। उन्होंने कहा कि यह समझौता केवल उनकी सरकार और ईरान के बीच नहीं था, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों, वैज्ञानिकों की सलाह के आधार पर इसमें दुनिया की महाशक्तियां शामिल हुई थीं। इस तरह के फैसलों से अमेरिका की साख कम होगी और दुनिया की बड़ी ताकतों के साथ मतभेद बढ़ेंगे, जो किसी के हित में नहीं होगा। इस डील पर सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस ने दस्तखत किए थे। जर्मनी भी शामिल हुआ था। इसलिए इस डील को 5+1 के नाम से भी जाना जाता है। इसके तहत ईरान ने परमाणु कार्यक्रम के बड़े हिस्से को बंद करने और अंतर्राष्ट्रीय निगरानी पर राजी हो गया था। करीब डेढ़ दशक तक ईरान के साथ तनावपूर्ण रिश्तों और वार्ताओं के कई दौर के बाद यह करार हो पाया था। ट्रंप ने ईरान को कट्टरपंथी देश बताते हुए सीरिया में युद्ध भड़काने का आरोप लगाया है। ट्रंप का कहना है कि ईरान समझौते का पालन नहीं कर रहा है। हालांकि ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन ने अमेरिका के इस कदम पर असहमति जताई है और ईरान के साथ हुए समझौते को जारी रखने का फैसला किया है। डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा के बाद ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कहा कि वह अपने विदेश मंत्री को समझौते में शामिल अन्य देशों के साथ बातचीत के लिए भेज रहे हैं। उन्होंने चेतावनी भी दी कि वार्ता विफल होने की स्थिति में वह आने वाले हफ्तों में यूरेनियम संवर्द्धन का काम शुरू कर देंगे। सरकारी टीवी पर रूहानी ने जोर दिया कि अमेरिका के बिना भी यह समझौता कायम है। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने भी कहा है कि ईरान में 2009 के बाद से परमाणु हथियार विकसित करने की गतिविधियों के कोई संकेत नहीं मिले हैं और ईरान समझौते के हिसाब से काम कर रहा है। ऐसे में समझौते से अमेरिका का हटना वाजिब नहीं कहा जा सकता। इस फैसले के बाद भी भारत ईरान के साथ है। भारत ने कहा कि इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भावनाओं का ख्याल रखते हुए इसे तय समझौते के तहत सुलझाना चाहिए।

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