Saturday, 11 April 2020

जिंदगी ही नहीं, मौत की रस्में भी बदलीं

कोरोना ने न सिर्प जिंदगी जीने के कई तरीके बदल दिए हैं, बल्कि मौत व अंतिम संस्कार की रस्में भी बदल डाली हैं। देश में कोरोना से भले ही मौतें हुई हों, लेकिन दूसरी बीमारियों डायबिटीज, हार्ट अटैक, किडनी फैलियर से प्राकृतिक मौतों जारी हैं। मगर अब न तो अर्थी चार कंधों पर श्मशान घाट तक जाती है, न चिता के आसपास अपने रिश्तेदारों और जानने वालों की भीड़ जुटती है, न ही तेरहवीं की बैठक बुलाई जाती है और न ही तेरहवीं होती है। कोरोना ने मौत के बाद होने वाली तमाम रस्में भी बदल डाली हैं। शोक संदेशों में भी इन दिनों एक लाइन बहुत कॉमन हो गई हैöलॉकडाउन के कारण दिवंगत आत्मा को शांति हेतु घर से ही प्रार्थना करें, या दुआ--मगफिरत अपने घर से करें। सभी शोक संदेशों में यही निवेदन होता है कि रिश्तेदार अपने घर से श्रद्धांजलि मोबाइल मैसेज के जरिये भेज दें। यहां तक कि लोगों से अंतिम संस्कार में शामिल न होने की अपील भी की जाती है। ऐसा करने का संदेश साफ इतना ही है कि रस्में निभाने से ज्यादा जरूरी है जीवन। अगर किसी की मौत कोरोना संक्रमण से हुई हो तो उसे कब्रिस्तान में दफनाने की भी जगह नहीं मिल रही है। अंतिम क्रिया से जुड़े पंडित नरेंद्र जोशी बताते हैं कि लोग क्रियाकर्म को लेकर बेहद संवेदनशील होते हैं। कई बार समझाने के बाद ही वह मानते हैं। लॉकडाउन के चलते अस्थियों को प्रभावित करने के लिए परिजनों को इंतजार करना पड़ रहा है। हाल में अपनी पत्नी को खोने वाले राजेंद्र सिंह बताते हैं कि हमने अस्थियां संभाल कर रखी हैं। लॉकडाउन खुलने के बाद उन्हें गंगा में प्रवाहित करेंगे। इसी तरह कब्रिस्तान व चर्च में भी इन नियमों का पालन हो रहा है। सभी दिशानिर्देश का पालन करते हुए शव दफनाएं जा रहे हैं। कोरोना के चलते मृत व्यक्तियों को अपने चार रिश्तेदारों, मित्रों का कंधा भी नहीं मिल रहा है। सम्पन्न परिवार शोक सभा के लिए वीडियो कांफ्रेंसिंग कर रहे हैं। कई बार अंतिम दर्शन के लिए भी ऑनलाइन एप की मदद ली जा रही है। दिल्ली में पढ़ाई कर रहीं स्वाति को लॉकडाउन में फंसे होने के कारण पिता के अंतिम दर्शन मोबाइल पर ही करवाए गए। हाल में अपने युवा पुत्र को खोने वाले घनश्याम गुप्ता (नाम बदलकर) कहते हैं, मेरा बेटा तो अब वापस लौट कर नहीं आ सकता, पर दूसरों की जिंदगी खतरे में नहीं डाली जा सकती। महामारी के चलते धार्मिक समारोहों पर रोक के साथ-साथ अंतिम संस्कार के लिए भी नियम तय किए हैं। इनके अनुसार अंतिम संस्कार में 20 से ज्यादा लोग शामिल नहीं हो सकते। शव को शमशान घाट तक वाहन से ले जाना होता है। अंतिम यात्रा की अनुमति नहीं है। शमशान घाट तक परिवार के चार से 10 लोग जा रहे हैं। वह अपने मास्क व सेनेटाइजर साथ ले जा रहे हैं, मोक्षधाम के कर्मी भी दूरी बनाते दिखते हैं।

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