जिस
तरह हर रोज कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है उससे सबसे ज्यादा जरूरी है
कि जांच में तेजी लाई जाए और अधिक से अधिक लोगों के नमूने लिए जाएं। इस तरह संक्रमितों
की पहचान जल्दी होगी और उन्हें अलग-थलग कर दूसरों में संक्रमण फैलने से रोका जा सके। इस लिहाज से सुप्रीम कोर्ट
द्वारा सरकारी लैब की तरह निजी लैब में भी कोरोना संक्रमण की जांच मुफ्त करने का आदेश
समय की मांग है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह आदेश दिया कि सरकारी लैब की तरह निजी
लैब में भी अब कोरोना संक्रमण की जांच मुफ्त हो। कोर्ट ने इसके अलावा कोरोना के इलाज
व जांच में लगे डॉक्टरों और स्टॉफ की समुचित सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी आदेश दिया।
इसके साथ अदालत ने डॉक्टरों व मेडिकल स्टॉफ को सुरक्षा किट मुहैया कराने का आदेश दिया
है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और एस. रविन्द्र भट्ट की पीठ ने बुधवार
को मामले की सुनवाई वीडियो कांफ्रेंसिंग से की। कोर्ट के सामने तीन याचिकाएं थीं जिसमें
डॉक्टरों की सुरक्षा व निजी लैब में कोरोना की जांच के लिए 4500 रुपए फीस लेने का मुद्दा उठाया था। पीठ ने कहा कि वह सहमत हैं कि राष्ट्रीय
आपदा के दौरान निजी लैब को कोरोना जांच के शुल्क के तौर पर 4500 रुपए लेने की इजाजत देना ठीक नहीं है। पैसे के कारण कोई कोरोना की जांच से
वंचित नहीं होना चाहिए। पीठ ने कहा कि उन्हें बताया गया है कि सरकारी लैब में कोरोना
की जांच मुफ्त हो रही है। ऐसी स्थिति में एनएबीएल मान्यता प्राप्त निजी लैब में भी
कोरोना की जांच मुफ्त होनी चाहिए। उच्चतम न्यायालय द्वारा निजी प्रयोगशालाओं को कोरोना
वायरस की जांच मुफ्त में करने के निर्देश दिए जाने के बाद कई प्रयोगशालाओं ने उम्मीद
जताई है कि सरकार तौर-तरीके बताएगी, जिससे
वह देश में बढ़ती मांग के बीच जांच का काम जारी रख सकें। कुछ निजी प्रयोगशालाओं के
मालिकों ने यह भी कहा है कि उनके पास मुफ्त में यह महंगी जांच करने के लिए साधन नहीं
हैं। डॉ. डैंग लैब के सीईओ डॉ. अमुन डैंग
ने कहा कि हम उच्चतम न्यायालय के फैसले को स्वीकार करते हैं, जिसका उद्देश्य कोविड-19 जांच की पहुंच बढ़ाने और इसे
आम आदमी के लिए वहनीय बनाना है। उन्होंने दलील दीöहालांकि निजी
प्रयोगशालाओं के लिए कई चीजों की लागत तय है, जिनमें अभिकर्मकों
(रीएजरेंस) उपयोग की वस्तुएं, कुशल कामगारों और उपकरणों के रखरखाव शामिल हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस
की जांच में भी संक्रमण के लिए कई उपाय करने पड़ते हैं, जैसे
व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण, संक्रामक परिवहन तंत्र और साफ-सफाई। साथ ही हर वक्त कर्मचारियों की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण कदम है। कटु
सत्य तो यह भी है कि सरकारी प्रयोगशालाओं की क्षमता इतनी नहीं है कि वह हर रोज हजारों
लोगों की जांच कर सकें। फिर यह प्रयोगशालाओं की पूरे देश में इतनी संख्या नहीं है,
यह प्रयोगशालाएं कुछ शहरों में ही स्थित हैं। इसलिए दूरदराज के गांवों-कस्बो में लोगों की जांच कर पाना कठिन काम बना हुआ है। ऐसे में निजी प्रयोगशालाओं
के सहयोग से जांच में तेजी लाने का सुप्रीम कोर्ट और भारत सरकार का प्रयास कारगर हो
सकता है तावक्ते में निजी लैब जांच निशुल्क करने को तैयार हों। गरीब लोग इतने पैसे
जांच के लिए इन हालातों में नहीं दे सकते जबकि उनकी रोजी ठप है।
-अनिल नरेन्द्र
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