Thursday 16 April 2020

सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले ः हम प्रेस का गला नहीं घोटेंगे

सोमवार को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण मामलों में अपने फैसले दिए। पहला मामला था प्रेस पर पाबंदी लगाने का, दूसरा विदेशों में फंसे भारतीयों का और तीसरा था पीएम केयर्स संबंधित याचिका का। उच्चतम न्यायालय ने कोरोना वायरस महामारी फैलने को हालिया निजामुद्दीन मरकज की घटना से जोड़कर कथित रूप से सांप्रदायिक नफरत फैलाने से मीडिया के एक वर्ग को रोकने के लिए मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा--हिन्द की याचिका पर कोई भी अंतरिम आदेश देने से सोमवार को इंकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि वह प्रेस का गला नहीं घोटेंगे। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमएम शांतनागौदार की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इस मुस्लिम संगठन की याचिका पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की और उससे कहा कि मामले में भारतीय प्रेस परिषद को इसका पक्षकार बनाएं। पीठ ने कहा कि वह इस समय याचिका पर कोई अंतरिम आदेश नहीं देगी और उसने यह मामला दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। याचिकाकर्ता ने इस याचिका में आरोप लगाया है कि मीडिया का एक वर्ग दिल्ली में पिछले महीने आयोजित तबलीगी जमात के कार्यक्रम को लेकर सांप्रदायिक नफरत फैला रहा है। जमीयत उलेमा--हिन्द ने अपनी याचिका में फर्जी खबरों को रोकने और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का निर्देश केंद्र को देने का अनुरोध किया है। पश्चिमी निजामुद्दीन में पिछले महीने तबलीगी जमात के मुख्यालय में हुए धार्मिक कार्यक्रम में कम से कम नौ हजार लोगों ने शिरकत की थी और यह कार्यक्रम ही भारत में कोविड-19 महामारी संक्रमण फैलने का एक मुख्य स्रोत बन गया क्योंकि इसमें हिस्सा लेने वाले अधिकांश व्यक्ति अपने धार्मिक कार्यों के सिलसिले में देश और विदेश के विभिन्न हिस्सों में गए जहां वह अन्य लोगों के सम्पर्प में आए। उस याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि देश में कोरोना वायरस महामारी के फैलने के संबंध में मीडिया की रिपोर्टिंग और सरकार की रिपोर्ट लगातार तबलीगी जमात के बारे में ही बात कर रही है। इस पर पीठ ने कहाöहम सोचते हैं कि आप भारतीय प्रेस परिषद को भी इस मामले में एक पक्षकार बनाएं। भारतीय प्रेस परिषद इस मामले में एक जरूरी पक्ष है। न्यायालय ने कहाöवह प्रेस का गला नहीं घोट सकते, हम प्रेस का गला नहीं घोटेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस कोविड-19 को लेकर जारी पूर्ण बंदी के कारण विदेशों में फंसे भारतीयों को स्वदेश लाने पर सोमवार को सलाह दी कि जो जहां है, वहीं रहे। शीर्ष अदालत ने विदेशों में फंसे भारतीयों को स्वदेश लाने पर केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमएम शांतनागौदार की पीठ ने विदेश में रुके भारतीयों से अपील की कि वह जहां हैं वहीं रहें। न्यायालय ने कहा कि उन्हें अभी वापस लाना संभव नहीं होगा। शीर्ष अदालत ने सात याचिकाओं की संयुक्त सुनवाई की, जिसमें ब्रिटेन, अमेरिका, ईरान और अन्य खाड़ी देशों में छात्रों, कामकाजी पेशेवरों, अकुशल श्रमिकों और मछुआरों एवं भारतीय नागरिकों को वहां से निकालने का अनुरोध किया गया था। एक अन्य महत्वपूर्ण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निबटने के लिए प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपात स्थिति राहत कोष पीएम केयर्स बनाने के सरकार के फैसले को निरस्त करने के खिलाफ दायर याचिका सोमवार को खारिज कर दी। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमएम शांतानागौदार की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा की याचिका सुनवाई के बाद खारिज कर दी। पीठ याचिकाकर्ता शर्मा की इन दलीलों से सहमत नहीं थी कि इस कोष की स्थापना संविधान के अनुच्छेद 266 और 267 में प्रदत्त योजनाओं का अनुसरण किए बगैर ही की गई है। केंद्र ने 28 मार्च को कोविड-19 जैसी महामारी फैलने और इससे प्रभावित लोगों को राहत देने हेतु आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री के नागरिक सहायता और राहत कोषöपीएम केयर्स कोष की स्थापना की थी। प्रधानमंत्री इस कोष के पदेन अध्यक्ष और रक्षामंत्री, गृहमंत्री और वित्तमंत्री इसके पदेन ट्रस्टी हैं। जनहित याचिका में कहा गया कि पीएम केयर्स फंड की स्थापना के बारे में अध्यादेश और राजपत्र में इसकी अधिसूचना प्रकाशित हुए बगैर ही 28 मार्च को प्रेस बयान जारी होने, कोविड-19 महामारी का मुकाबला करने और भावी सुविधाओं के लिए प्रधानमंत्री की लोगों से इस ट्रस्ट में दान देने की अपील करने के साथ यह मुद्दा उठा। याचिका में इस कोष में सभी ट्रस्टियों के साथ ही प्रधानमंत्री को भी पक्षकार बनाया गया था। याचिका में इस कोष को मिला सारा दान भारत के समेकित कोष प्राइम मिनिस्टर्स रिलीफ फंड में स्थानांतरण करने का निर्देश देने के साथ ही इस कोष की स्थापना की जांच न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल से कराने का अनुरोध किया गया था। पीठ ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह याचिका मिथ्य तथ्यों पर आधारित है। पीठ याचिकाकर्ता शर्मा की इन दलीलों से सहमत नहीं थी कि इस कोष की स्थापना संविधान के अनुच्छेद 266 और 267 में प्रदत्त योजनाओं का अनुसरण किए बगैर ही की गई है।

-अनिल नरेन्द्र

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