Thursday 21 May 2015

42 साल बाद अरुणा शानबाग को सुकून की नींद

चालीस वर्ष तक कोमा में रहने के बाद दुनिया छोड़ देने वाली मुंबई के केईएम अस्पताल की पूर्व नर्स अरुणा शानबाग को ऐसी यातना झेलनी पड़ी जिसने हमारी सामूहिक चेतना को झकझोर कर रख दिया। मौत तो अरुणा शानबाग की 27 नवम्बर 1973 में हो गई थी जिस रात दुराचार के बाद वह कोमा में चली गई थी। अब तो कानूनी मौत हुई है। 68वें जन्मदिन से 13 दिन पहले 42 साल के असीम दर्द के बाद उन्हें सुकून की नींद आई। सोमवार सुबह अरुणा की मौत के बाद यह शब्द थे उनकी दोस्त पिंकी वीराणी के। अरुणा केईएम अस्पताल में नर्स थी। यहीं के वार्ड ब्वॉय ने उनसे दुष्कर्म की कोशिश की थी। अरुणा का गला कुत्ता बांधने वाली चेन से दबा दिया। इससे अरुणा के दिमाग में खून की सप्लाई रुक गई और वो कोमा में चली गईं। फिर वह कभी नहीं उठीं, कोमा से बाहर नहीं निकल सकी। अरुणा के परिवार ने भी मुंह मोड़ लिया पर मृत्यु के बाद अरुणा के दो भांजे अस्पताल आए। लेकिन नर्सों ने कहा कि अरुणा हमारी बेटी थी, अंतिम संस्कार हम ही करेंगे। यह परिवार आज कहां से आ गया? दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद न केवल बलात्कार की परिभाषा कड़ी की गई है बल्कि ऐसे मामलों में सजा के प्रावधान भी और सख्त किए गए हैं। मगर अरुणा के साथ यौन हिंसा करने वाले सोहन लाल पर जानलेवा हमला और डकैती के मामले तो चले और उसे सजा भी हुई, लेकिन उस पर बलात्कार या यौन हिंसा का मामला नहीं चलाया गया। शायद उस वक्त की सामाजिक संरचना और दबाव में अस्पताल प्रबंधन को यह उचित लगा था। मगर उस हादसे ने अरुणा के अस्तित्व को खत्म ही कर दिया और यदि केईएम अस्पताल के उनके सहयोगी और नर्सें उनकी सेवा नहीं करतीं तो वह इतने लम्बे समय तक जीवित नहीं रह पाती। अरुणा शानबाग 42 सालों से किंग एडवर्ड्स मैमोरियल (केईएम) अस्पताल के ग्राउंड फ्लोर पर वार्ड नम्बर चार से जुड़े कमरे में भर्ती थीं। यह कमरा ही उनका घर था और अस्पताल का स्टाफ परिवार। इस लम्बे वक्त के दौरान वह कभी नहीं बोलीं, लेकिन उनकी खामोशी देश में इच्छा मृत्यु पर बहस और फिर कानून बनने में सबसे सशक्त हथियार बनी। पत्रकार पिंकी वीराणी ने अरुणा को इच्छा मृत्यु देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। अरुणा के साथ दर्दनाक हादसे के बाद करीब 38 सालों बाद 24 जनवरी 2011 को कोर्ट ने अर्जी मंजूर करते हुए तीन डाक्टरों का पैनल गठित किया था। बाद में सात मार्च 2011 को यह याचिका खारिज कर दी गई। कोर्ट ने कहा कि पूरी तरह निक्रिय अवस्था में पड़े मरीजों के जीवनदायी उपकरणों को हटाकर पैसिव इच्छा मृत्यु दी जा सकती है। इस प्रक्रिया को तभी वैध माना जाएगा जब हाई कोर्ट की निगरानी में हो। अरुणा भारत में इच्छा मृत्यु के अधिकार से जुड़ी बहस का प्रतीक बन गईं। अरुणा की तरह पूर्व मंत्री और कांग्रेसी नेता प्रियरंजन दासमुंशी और भाजपा के पूर्व वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह भी कोमा में हैं। मुंशी अक्तूबर 2008 में हार्ट अटैक के  बाद से कोमा में हैं। 76 वर्षीय जसवंत सिंह को आठ अगस्त 2014 को सिर में चोट लगी थी और वह अब कोमा में हैं।
-अनिल नरेन्द्र



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