Thursday, 28 May 2015

मोदी सरकार का एक वर्ष ः उपलब्धियां व चुनौतियां

धूमधाम से आई मोदी सरकार ने एक साल पूरा कर लिया है। एक वर्ष की उपलब्धियां बताने के लिए भाजपा 26 मई से 31 मई तक देशभर में रैलियां आयोजित कर रही है। कुछ बड़े नेताओं के अलावा भाजपा सांसद भी पांच हजार रैलियां करेंगे। जन कल्याण पर्व के तहत देशभर में 200 रैलियां होंगी। देखना यह है कि इन सभी आयोजनों के जरिए भाजपा के नेता व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आम आदमी को यह विश्वास दिला पाने में सफल होते हैं या नहीं कि मोदी सरकार ने एक वर्ष में वास्तव में तमाम काम कर दिखाए हैं? यह सवाल इसलिए क्योंकि आम जनता ने मोदी सरकार से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें लगा रखी थीं और चूंकि वे सभी पूरी नहीं हुईं इसलिए एक बेचैनी-सी भी दिखाई दे रही है। जनसंघ विचारक दीनदयाल उपाध्याय की जन्मस्थली मथुरा में ई रैली में खुद को देश का प्रधान ट्रस्टी और संतरी बताकर यही संदेश देने की कोशिश की गई है कि मोदी सरकार के आने से शासन के तौर-तरीके बदल गए हैं। मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल पर एक सर्वेक्षण सामने आया है। रस्टावाणी द्वारा किए गए इस सर्वेक्षण के अनुसार करीब तीन-चौथाई लोग मोदी सरकार के कामकाज से संतुष्ट हैं, वहीं मेट्रो शहरों के 82 फीसदी और गैर मेट्रो शहरों के 74 फीसदी लोगों का मानना है कि आर्थिक विकास के मोर्चे पर सरकार सही दिशा में बढ़ रही है। पिछले एक साल में भ्रष्टाचार का कोई हाई-प्रोफाइल मामला नहीं आने के कारण भी लोगों के मन में मोदी सरकार के प्रति सकारात्मक धारणा बनी है। वहीं स्वच्छता के मुद्दे पर मेट्रो शहरों के 86 फीसदी लोगों ने सरकार को पूरे नम्बर दिए हैं। उम्मीदों के विपरीत मोदी ने सेना के लिए एक रैंक एक पेंशन या फिर किसानों से संबंधित बड़ी घोषणा तो नहीं की लेकिन यह जताने की कोशिश की कि उनकी सरकार गरीबों और वंचितों के लिए फिक्रमंद है। संभवत ऐसा इसलिए है क्योंकि जमीन अधिग्रहण कानून में संशोधन को लेकर संसद और उसके बाहर सरकार और विपक्ष के बीच हुए टकराव से सरकार की छवि पर असर पड़ा है पर इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि मोदी सरकार ने रसोई गैस के लिए नकद सब्सिडी, जनधन योजना, सामाजिक पेंशन से लेकर आधार कार्ड और छोटे कारोबारियों के लिए मुद्रा बैंक की स्थापना जैसी पहल की है, जो उसे सीधे निचले तबके से जोड़ती है। हालांकि मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि उस पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है। जिसके कारण यूपीए और खासतौर पर कांग्रेस की इतनी दुर्गति हो गई कि उसे मान्यताप्राप्त विपक्षी दल के दर्जे लायक सीटें तक नहीं मिलीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लालफीताशाही को कम करने और सुशासन लाने के वादे के साथ भारी  बहुमत से सत्ता में आए थे। उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान विकास में आने वाली प्रशासनिक अड़चनों को हटाने के वादे किए थे। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस दौरान इनमें कितना बदलाव आया है। एक नजर उन वादों पर डालते हैं जो एक साल में मोदी ने पूरे किए हैं। प्रशासन में पारदर्शिता लाने में वह सफल हुए। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के संसाधनों का आबंटन बढ़ा दिया है। अब राज्य सरकारें फैसला कर सकती हैं कि वो विकास के जिस प्रोजेक्ट पर चाहें खर्च कर सकती है। योजना आयोग की जगह पर नीति आयोग बेशक बन तो गया है पर उसकी भूमिका अब तक साफ नहीं हुई है। पहले कोई उद्योग लगाने में कई फार्म भरने पड़ते थे। अब औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग ने इन सबको जोड़कर एक फार्म कर दिया है। वह भी ई-फार्म के रूप में। ऐसे बहुत से कानून थे जो पुराने हो चुके थे और जिनसे फायदा होने की बजाय नुकसान होता था और उन्हें बदलने या हटाने की जरूरत थी। मोदी सरकार ने ऐसे कानूनों की पहचान की है ताकि उन्हें हटाया जा सके। ऐसे भी कई वादे हैं जो अब तक पूरे नहीं हो सके। सत्ता का विकेंद्रीयकरण पूरा नहीं हुआ है। यह एक लम्बा काम है। राज्य सरकारों को ज्यादा अधिकार देने के लिए संविधान में काफी बदलाव करने होंगे। मोदी वन मैन ब्रैंड हैं। सत्ता का केंद्रीकरण होता जा रहा है और यह काफी हद तक सही है। इससे एक फायदा जरूर है कि जिस काम पर फोकस करना हो जल्द हो जाता है लेकिन नुकसान ये है कि कई लोग सशक्त महसूस नहीं करते, इस कमी को दूर करने की जरूरत है। कई राज्य सरकारें केंद्र से असहमत हैं। वह असहमति कोई नई नहीं है, लेकिन इस सरकार ने इस असहमति को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। वित्तीय क्षेत्र में कुछ सुधार होने थे जो नहीं हो सके। श्रम और संबंधित क्षेत्रों में सुधार होना था जो अब तक नहीं हो सका। इसमें दो राय नहीं कि सरकार के इस पूरे एक वर्ष का केंद्र खुद प्रधानमंत्री मोदी ही रहे हैं, जो एक मजबूत नेता बनकर उभरे हैं। लिहाजा सरकार के कामकाज में चाहे वह स्वच्छता अभियान हो या फिर मेक इन इंडिया, सीधे उनका काम दिखता है। इस पर भी गौर करने की जरूरत है कि सरकार की चुनौतियां भी कम नहीं हैं। मसलन जहां देश के 60 करोड़ लोगों के लिए शौचालय की व्यवस्था अब भी बड़ी चुनौती है, वहीं 18 देशों की यात्राएं कर वैश्विक नेता के रूप में स्थापित होने के बावजूद पीएम की पहल निवेशकों को खास आकर्षित नहीं कर सकी है। अच्छे दिन के वादे के साथ सत्ता में आए मोदी ने कहा कि आम लोगों के लिए बुरे दिन गए और बुरा करने वालों के और बुरे दिन आएंगे। उन्हें ध्यान रखना होगा कि पिछली सरकार की नाकामियों पर एक हद तक ही बात की जा सकती है, अंतत जनता उनकी सरकार के कामकाज को ही कसौटी पर उतार सकेगी। मोदी सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती अपनी उन तमाम योजनाओं के नतीजे आम आदमी तक पहुंचाने की भी है जो पिछले साल में शुरू की गई है। निसंदेह मोदी सरकार ने कई ऐसी जन योजनाएं शुरू की हैं जो आम जनता के हितों की पूर्ति करने वाली हैं, लेकिन उनके नतीजे आने शेष हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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