Thursday 14 May 2015

जेजे बिल में जरूरी संशोधन

देश में जघन्य अपराध करने वाले 16 से 18 साल के किशोरों के खिलाफ अब बालिगों की तरह आम कोर्ट में मुकदमा चलाने का रास्ता साफ हो गया है। गत गुरुवार को लोकसभा ने जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) यानि जेजे संशोधन बिल पास करके पूरे देश में किशोरों से जुड़े कानून में एक नए बदलाव का रास्ता खोला है। अब यह बिल देश में मौजूदा जेजे कानून 2000 की जगह मान्य होगा। इस बिल में छोटे, गंभीर और जघन्य अपराधों को साफ तौर पर परिभाषित और श्रेणीबद्ध किया गया है। सरकार ने इस बात को खास तौर पर रेखांकित किया कि उसने यह सुनिश्चित करने के लिए काफी संतुलन कायम किया है कि निर्दोष बच्चों के साथ अन्याय न हो। किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) विधेयक 2014 को सरकार की ओर से उपबंध सात को हटाए जाने पर सहमत होने के बाद मंजूरी दी गई। उपबंध सात कहता था कि कोई भी व्यक्ति जिसने 16 से 18 साल की उम्र में किसी जघन्य अपराध या गंभीर अपराध को अंजाम दिया है और वह 21 साल की उम्र पूरी करने के बाद पकड़ा जाता है तो इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत उस पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाएगा। महिला और बाल विकास मंत्रालय ने अगस्त 2014 में लोकसभा में जेजे संशोधन बिल पेश किया था। जिसे बाद में संबंधित मंत्रालय की स्थायी समिति को भेज दिया गया था जिसने कानूनी तौर पर किशोर की उम्र 18 साल रखने की सिफारिश की थी। हालांकि सरकार ने समिति की सिफारिशों को नजरअंदाज करते हुए जघन्य मामलों में किशोर की उम्र घटाकर 16 साल करने का फैसला किया था। गौरतलब है कि दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद जेजे कानून में बदलाव की जरूरत महसूस की गई थी। इस पर राजनीतिक दलों से लेकर समाज तक में अलग-अलग राय सामने आई। जहां  बच्चों के हितों के लिए काम करने वाले एनजीओ इस संशोधन के खिलाफ थे, लेकिन सरकार ने समाज के किशोरों में जघन्य अपराधों की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए इस दिशा में आगे बढ़ने का फैसला किया। कांग्रेस के शशि थरूर और आरएसपी के एनके प्रेमचन्द्रन जैसे नेताओं ने उम्र सीमा को घटाए जाने का विरोध करते हुए नए कानून के गलत इस्तेमाल और इसके तहत बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन की आशंका जताई। हालांकि बिल को आगे बढ़ाते हुए महिला और बाल विकास मंत्री ने दलील दी कि सरकार ने कानून में संशोधन करते समय पूरा ध्यान रखा है कि बेकसूर बच्चों के साथ अन्याय न हो, नए कानून की जरूरत को न्यायोचित ठहराते हुए मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2013 में करीब 28 हजार किशोरों ने विभिन्न अपराध किए और इनमें से 3887 ने कथित रूप से जघन्य अपराधों को अंजाम दिया। निर्भया कांड में हमने देखा कि किस तरह उस किशोर ने इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया। वह इस केस में मास्टर माइंड था और किशोर होने की वजह से पर्याप्त सजा पाने से इसलिए बच गया कि वह अंडर-एज है। हम सरकार के नए प्रावधानों का समर्थन करते हैं। अगर कोई बालक बड़े अपराधों को अंजाम देता है तो उसे सजा भी वैसी ही होनी चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र



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