Wednesday 6 May 2015

नजीब और केजरी में दिल्ली के ताज के लिए जंग

आखिर दिल्ली का बॉस कौन है? इसे लेकर एक बार फिर दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आमने-सामने हैं। इन दोनों के बीच फाइलों को लेकर तकरार बढ़ गई है। पिछले दो महीने में यह चौथी बार है जब दोनों में ठनी है। उपराज्यपाल ने रविवार को दिल्ली सरकार के सभी मंत्रियों और अधिकारियों को सख्त निर्देश दिया कि विभिन्न मुद्दों से जुड़ी सभी फाइलें उनके पास लाई जाएं। उपराज्यपाल के यह निर्देश मीडिया की उस रिपोर्ट के बाद आए जिसमें कहा गया था कि हर फाइल एलजी के दफ्तर से होकर न जाए। इस तरह नजीब जंग ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के उस आदेश को पलट दिया जिसमें कहा गया था कि पुलिस, कानून-व्यवस्था, जमीन आदि से जुड़ी सभी फाइलें एलजी को भेजने की जरूरत नहीं है। एलजी ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम 1991 और ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स 1993 के प्रावधानों का हवाला भी दिया। उपराज्यपाल ने कहा कि संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार मुख्यमंत्री और उनका मंत्रिमंडल एलजी को सलाह और सहयोग देने के लिए है। जंग ने सरकार द्वारा अफसरों के लिए जारी सीएम के निर्देशों को वापस लेने का भी निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि राज्य के सभी अफसरों के लिए संविधान, दिल्ली एक्ट और बिजनेस रूल्स का शाब्दिक और तथ्यात्मक तौर पर पालन अनिवार्य है। बकौल जंग कानून में यह साफ है कि जिन विषयों पर विधानसभा कानून बनाने को स्वतंत्र है उनकी फाइलें भी अंतिम सहमति के लिए एलजी को भेजी जाएं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक 29 अप्रैल को अरविंद केजरीवाल ने सभी विभागों को लिखे पत्र में कहा था कि हर फाइल एलजी के पास भेजने की औपचारिकता जरूरी नहीं है। सीएम ने अनुच्छेद 239 एए के हवाले से कहा था कि दिल्ली विधानसभा को सौंपे गए विषयों से संबंधित फाइलें एलजी के पास भेजना जरूरी नहीं है। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री-उपराज्यपाल कार्यालय ने इस स्थिति से गृह मंत्रालय को भी अवगत करा दिया है जहां से भी यही कहा बताया जाता है कि संविधान व्यवस्था ने दिल्ली के उपराज्यपाल को सर्वोच्च बनाया है और वह दिल्ली के प्रशासक हैं और उनकी गरिमा को कम नहीं किया जा सकता है और दिल्ली सरकार संवैधानिक दायरे में काम करने के लिए बाध्य है। यह पहली बार नहीं जब केजरीवाल, जंग से टकराए हैं। वह जब पहली बार 49 दिन के लिए सीएम बने थे तो जनलोकपाल विधेयक को सदन में रखने की  उपराज्यपाल कार्यालय से मंजूरी न मिलने के बाद भी सदन में रखने की कोशिश की थी और उस समय विपक्ष के विरोध के बीच विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे एमएस धीर ने पद की गरिमा कलंकित  न होने देते हुए इसको मंजूरी नहीं दी और इसे लेकर केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया। लेकिन इस बार अलग परिस्थिति है, अरविंद केजरीवाल प्रचंड बहुमत से जीते सीएम हैं। जहां तक सदन का प्रश्न है तो वह आसानी से कोई भी विधेयक या प्रस्ताव पास कर सकते हैं। लगता है कि यह टकराव बढ़ेगा और केंद्रीय गृह मंत्रालय को हस्तक्षेप करना ही होगा।

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