Friday, 29 May 2015

पीएम व केंद्र से टकराव की नीति अपना रहे हैं केजरीवाल

दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बेशक अधिसूचना पर चर्चा के लिए अरविंद केजरीवाल ने बुलाया पर असल मकसद है केंद्र सरकार व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराज्यपाल पर सीधा हमला बोलना। विधायक कपिल मिश्रा ने नरेंद्र मोदी का नाम लिए बिना तानाशाह, बादशाह, हिटलर, सूटेड-बूटेड, उठकर पासपोर्ट देखने, दुर्योधन-कृष्ण संवाद का जिक्र करके बुद्धि पलटने का जिक्र किया। वहीं चर्चा पूर्ण राज्य का दर्जा, डीडीए और पुलिस पर अधिकार, अधिसूचना की चर्चा तक पहुंचती नजर आई। केजरीवाल ने कहा कि केंद्र की  तरफ से छीने गए दिल्ली के अधिकारों के लिए लड़ाई जारी रखेंगे। केंद्र की अधिसूचना तानाशाही है। केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली को आजाद कराने के लिए और अपने हाथ-पैर खुलवाने के लिए इनसे लड़ाई जारी रखेंगे। मुझे उम्मीद है कि पांच साल में दिल्ली के जो अधिकार केंद्र सरकार ने छीन रखे हैं वापस ले लेंगे। हम केंद्र से छीनेंगे दिल्ली के अधिकार। कपिल मिश्रा ने कहा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सुबह उठकर घोषणा पत्र देखते हैं, मंत्रियों को वादा पूरा करने के लिए काम के निर्देश देते हैं। दूसरी तरफ भाजपा की अगुवाई करने वाले प्रधानमंत्री हैं जो सुबह उठकर पासपोर्ट देखते हैं। दिल्ली को नियंत्रित करने के लिए बादशाह सलामत की तरह उपराज्यपाल को फरमान जारी किए जा रहे हैं जो दिल्ली की जनता की शक्ति कम करने जैसा है। मिश्रा ने पांडवों का हिस्सा दिलाने के लिए शांति दूत बनकर गए कृष्ण के संवाद का जिक्र करके भाजपा की बुद्धि पलटने की बात कही। कई विधायकों ने उपराज्यपाल पर सीधा हमला बोला। दिल्ली सरकार के संसदीय सचिव आदर्श शास्त्राr ने तो यह मांग रख दी थी कि संविधान में संशोधन करके संसद में राष्ट्रपति की तर्ज पर दिल्ली को उपराज्यपाल पर महाभियोग चलाने का अधिकार मिले। शास्त्राr ने कहा कि सरकारिया समिति ने राज्यों के लिए विधानसभा को इस तरह की शक्ति देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 155 और 156 में संशोधन करके राज्यों को राज्यपाल या उपराज्यपाल पर महाभियोग चलाने की शक्ति देने की सिफारिश की है। दिल्ली विधानसभा इस संबंध में प्रस्ताव पास करके केंद्र को भेजे। मोदी सरकार सत्ता में अपनी पहली सालगिरह मना रही है तो अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के 100 दिन का शोर खड़ा कर दिया है। ऐसे नए-नए दांव चलते हुए केजरीवाल प्रचार पाने में नरेंद्र मोदी से होड़ कर रहे हैं। इस रूप में देशभर के जनमानस में मोदी और भाजपा के विकल्प के तौर पर अपनी छवि बनाने की कोशिश को वह आगे बढ़ा रहे हैं। इस क्रम में उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद को अपनी राष्ट्रीय राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का प्लेटफार्म बना लिया है। दिल्ली सरकार की कैबिनेट मीटिंग मुख्यमंत्री सचिवालय में भी कर सकते थे पर उन्होंने पब्लिक का समर्थन पाने के लिए इसके लिए कनॉट प्लेस चुना। जाहिर है कि वह केंद्र से टकराने के लिए जन समर्थन चाहते हैं। वह आए दिन कोई न कोई ऐसा मुद्दा खड़ा करेंगे जिससे केंद्र से तनाव बढ़े। उपराज्यपाल नजीब जंग से आप सरकार के मौजूदा टकराव भी केजरीवाल की रणनीति का हिस्सा है। यह लड़ाई अब सीधे केजरीवाल बनाम केंद्र में परिवर्तित करने के प्रयास में हैं श्री केजरीवाल। इसमें केजरीवाल को अतिरिक्त लाभ यह नजर आता होगा कि इसकी आड़ में वह अपनी तमाम विफलताओं का ठीकरा केंद्र सरकार के माथे फोड़ सकते हैं। ऐसा लगता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वह शासन संभालने के लिए नहीं बल्कि इस प्लेटफार्म से वह बड़ी सियासत करने  बैठे हैं और वे खुलेआम यही कर रहे हैं। श्रीमती शीला दीक्षित ने 15 साल राज किया। मुझे याद नहीं कि उन्होंने कभी भी केंद्र या उपराज्यपाल से इस तरह टकराने की कोशिश की हो। उनके शासन में दिल्ली में बहुत विकास हुआ पर अरविंद केजरीवाल विकास पर तो ध्यान दे ही नहीं रहे उनकी नीयत तो प्रधानमंत्री, गृह मंत्रालय और उपराज्यपाल से टकराने की है। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा।

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