Wednesday 20 May 2015

मुर्सी को मौत की सजा ः विरोध में तीन जजों की हत्या

मिस्र के अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी और मुस्लिम ब्रदरहुड के 105 सदस्यों को शनिवार को काहिरा की एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई है। इन्हें साल 2011 में देश में भड़के विद्रोह के दौरान जेल तोड़ने की घटनाओं के आरोप में यह सजा सुनाई गई। काहिरा की पुलिस अकादमी अदालत में सजा सुनाए जाने के वक्त 63 वर्षीय मुर्सी पिंजरानुमा कठघरे में मौजूद थे। उन्होंने मुट्ठियां तानकर फैसले के खिलाफ विरोध जताया। मिस्र के कानून के तहत मौत की सजा जैसे मामलों पर देश के शीर्ष धार्मिक नेता मुफ्ती से राय ली जाती है। मुर्सी व अन्य को सुनाई गई सजा पर मुफ्ती की राय ली जाएगी। इससे पहले सजा लागू नहीं होगी। हालांकि मुफ्ती की राय बाध्यकारी नहीं है। अदालत इस मामले में अंतिम निर्णय दो जून को सुनाएगी। मुर्सी और 128 अन्य पर आरोप था कि उन्होंने जनवरी 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के खिलाफ विद्रोह के दौरान जेल तोड़ने की साजिश रची थी। इस दौरान 20 हजार से अधिक कैदी जेल से भाग गए थे। इन आरोपों के तहत मौत की सजा सुनने वालों में मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रमुख मोहम्मद बादी भी शामिल हैं। इन सभी पर मिस्र को अस्थिर करने के लिए फिलीस्तीन के इस्लामी चरमपंथी संगठन हमास, ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड और लेबनान के हिज्बुल्ला जैसी विदेशी ताकतों के साथ साठगांठ करने के आरोप हैं। इस मामले में मुर्सी भी आरोपी हैं। यदि अदालत दो जून को अपने प्रारंभिक फैसले पर मुहर लगा देती है या फिर मुर्सी की प्रस्तावित अपील खारिज कर देती है तो मिस्र के इतिहास में मौत की सजा पाने वाले मुर्सी पहले राष्ट्रपति होंगे। मुर्सी को मौत की सजा सुनाए जाने के कुछ ही घंटों बाद देश के अशांत प्रांत शिनाई में तीन जजों की शनिवार को गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह हत्या शिनाई अल अरशि में हुई। हमले में तीन अन्य जज बुरी तरह जख्मी भी हो गए। अधिकारियों ने बताया कि यह हमला इस्लामिक स्टेट (आईएस) के समर्थन वाले आतंकियों ने किया। उन्होंने एक बस को निशाना बनाया, जिस पर जज सवार थे। हमले में बस ड्राइवर भी मारा गया। मुर्सी को सही ठहराने वाले बहुत से लोगों में शिनाई प्रांत के विद्रोही भी शामिल हैं। इसलिए इस हमले के तार इस सजा से जोड़ कर देखे जा रहे हैं। इस घटना के कुछ घंटे पहले ही देश के  पहले निर्वाचित राष्ट्रपति रहे मोहम्मद मुर्सी को अदालत ने मौत की सजा सुनाई। जून 2012 में मुर्सी ने राष्ट्रपति की कुर्सी संभाली थी। वह पहले राष्ट्रपति थे जिनका लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचन हुआ था। जुलाई 2013 में विरोध प्रदर्शनों के बाद सेना ने अपदस्थ कर दिया। उन पर मुस्लिम ब्रदरहुड के समर्थन का भी आरोप लगा था। मिस्र के अंदर सियासी उठापटक चरम पर है। अगर इतनी बड़ी संख्या में आरोपियों को मौत की सजा पर क्रियान्वयन होता है तो यह उस देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक नई बात होगी।
-अनिल नरेन्द्र



No comments:

Post a Comment