Saturday 16 April 2011

तमिलनाडु, केरल और असम में विधानसभा चुनाव


-अनिल नरेन्द्र

तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में विधानसभा चुनावों में जमकर वोटिंग हुई है। तमिलनाडु में 75.21 प्रतिशत, केरल में 74.04 और पुडुचेरी में 85.21 प्रतिशत। चुनाव आयोग मतदान के प्रतिशत बढ़ने से इस बात से खुश है कि लोग अपने वोट की कीमत समझने लगे हैं, वहीं विभिन्न राजनीतिक पार्टियां अधिक मतदान को अपने लिए फायदेमंद मान रही हैं। अगर हम तीनों राज्यों में मतदान का प्रतिशत लगाएं तो यह तकरीबन 78 फीसदी रहता है और आमतौर पर यह शांत मतदान रहा। लोग शाम तक मतदान करने के लिए कतारों में खड़े थे। कांग्रेस केरल सहित अन्य राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में मतदान का रुझान पढ़ने में अलग-अलग थ्यौरी गढ़ रही है। पार्टी ने केरल में बड़ी तादाद में मतदाताओं के घर से निकलने को सत्ता विरोधी रुझान बताया है जबकि असम और तमिलनाडु के बारे में यही सवाल आने पर पार्टी बगलें झांकने लगती है। वहीं कांग्रेस ने भारी मतदान को संकेत में ही सही अन्ना के आंदोलन से जोड़कर भी पढ़ने की कोशिश की है। कांग्रेस ने कहा कि इन राज्यों में जो मतदान हुआ है उस पर जन सैलाब का यह मतलब है कि जनता का विश्वास लोकतंत्र में है। तीनों राज्यों में मतदान प्रतिशत बढ़ने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं। नेताओं को भ्रष्ट बताने व समाजसेवी अन्ना हजारे के बयान के संदर्भ में उनका नाम लिए बिना कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि इस लोकतांत्रिक प्रणाली के जो असली कर्णधार है वह राजनीतिक दल ही हैं जो न केवल चुनाव में बल्कि उसके बाद लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करते हैं। तिवारी ने कहा कि हर पांच साल में राजनीतिक दलों का जो मूल्यांकन होता है उससे दुनिया के बाकी मुल्कों में भारत की साख बनी हुई है। इसलिए जरूरी है कि जो भी कदम उठाए जाएं उसका मकसद व्यवस्था को मजबूत करना होना चाहिए।
पार्टी सूत्रों का मानना है कि तमिलनाडु में द्रमुक और कांग्रेस के गठबंधन और जयललिता की अगुवाई वाले अन्नाद्रमुक के बीच कांटे का मुकाबला है। हालांकि जमीनी रिपोर्ट से कांग्रेस आलाकमान बहुत आश्वस्त नहीं है। तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की जीत का दावा करने वाले द्रमुक प्रमुख एम. करुणानिधि ने राज्य में संभावित गठबंधन सरकार के गठन के संकेत दिए हैं। अपने मताधिकार का प्रयोग करने के बाद उन्होंने कहा कि उगते सूर्य (द्रमुक का चुनाव चिन्ह) की तरह जीत को लेकर भी हमारी संभावनाएं उज्जवल हैं। सरकार बनाने के लिए हमें जितनी सीटों की जरूरत है, हम उतनी जीतेंगे। सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और द्रमुक के बीच चले दावपेंच को देखते हुए कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने इसके माध्यम से सत्ता में अपनी भागीदारी को लेकर मजबूत आधार तैयार कर लिया है। कांग्रेस 1967 के बाद से तमिलनाडु में सत्ता में नहीं आई है।
केरल में 74.4 प्रतिशत मतदान हुआ है। भाजपा को भी उम्मीद है कि इस बार केरल में भी कमल खिल जाए। मुख्य मुकाबला वाम मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन के बीच है। टिकट बंटवारे में तरह-तरह के आरोप  लगाए गए। देश के सबसे साक्षर और प्रगतिशील राज्य केरल में विधानसभा चुनाव की टिकटें राजनीतिक दलों के दफ्तरों की बजाय चर्चों और मदरसों में बंटी है। चाहे सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोकेटिक फ्रंट हो या विपक्षी यूनाइटेड डेमोकेटिक फ्रंट दोनों ने चर्चों, मदरसों, मौलवियों और पादरियों के कहने पर टिकटें  बांटी हैं। जिन धर्मगुरुओं को मनमाफिक टिकट मिली है वे खुश हैं और जिनकी लिस्ट की अनदेखी हुई है वह नाराज हैं। केरल में राजनीति से इतर धार्मिक आधार पर टिकटों का बंटवारा चोरी-छिपे नहीं बल्कि खुलेआम हुआ है। मुस्लिम धर्मगुरुओं का कहना है कि कांग्रेस ने उन्हें कम टिकट दिए हैं, जबकि सीपीएम ने उनके कहे अनुसार टिकट बांटे हैं। कांग्रेस की मुश्किल यह है कि उसके गठबंधन में शामिल मुस्लिम लीग ने 22 में से 21 उम्मीदवार मुस्लिम उतारे हैं। कम से कम 14 विधानसभा क्षेत्रों में ईसाई जीत-हार का फैसला करने की स्थिति में हैं। भाकपा महासचिव एबी वर्धन ने चुनाव से पहले एर्नाकुलम प्रेस क्लब में कहा कि प. बंगाल में वाम मोर्चा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होगा जबकि केरल में भाकपा नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा कांग्रेस नीत संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे से बेहतर स्थिति में है। उन्होंने कहा कि केरल में मुकाबला बेशक दिलचस्प है लेकिन एलडीएफ बेहतर स्थिति में है और वाम मोर्चा बहुमत हासिल कर लेगा। वर्धन ने कहा, एलडीएफ तथा यूडीएफ की बारी-बारी से सरकार बनने का केरल का तथाकथित रुझान वाम मोर्चे के अच्छे प्रदर्शन के बाद इस बार कायम नहीं रहेगा।
असम में पहले चरण में लगभग 72 प्रतिशत मतदान हुआ है। छिटपुट हिंसक घटनाओं को छोड़कर इस प्रदेश में 126 निर्वाचन क्षेत्रों में शांतिपूर्ण मतदान प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए गौरवपूर्ण वरदान है। उल्फा के एक गुट तथा नेशनल डेमोकेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड ने चुनाव के दौरान गड़बड़ी फैलाने की चेतावनी दी हुई थी। लेकिन जनता ने उनकी परवाह नहीं की। समाजसेवी अन्ना हजारे भले ही यह मानते हों कि गरीब मतदाता शराब और धन के मोह में उलझकर वोट डालते हैं और उनके जैसा ईमानदार व्यक्ति चुनाव में कभी सफल नहीं हो सकता, लेकिन असम, बिहार, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के गरीब और आदिवासी करोड़ों मतदाता अपने गांव, कस्बे, परिवार और समाज के भले के लिए वोट डालते हैं। संभव है कि भोलेपन, डर और थोड़े लालच में गलत उम्मीदवारों की तरफ झुक जाते हों लेकिन उन्हें वोट की ताकत का अहसास है। यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट समर्थित निर्दलियों के बल पर और भारतीय जनता पार्टी जरूरत पड़ने पर असम गण परिषद के सहयोग से नई सरकार बनाने की तैयारियां कर रही हैं। पांच प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका कम नहीं है। भाजपा तो खुलकर बंगलादेश की सीमा से आए मुस्लिम मतदाताओं को लेकर गहरा आक्रोश व्यक्त करती रही है जबकि कांग्रेस बहुसंख्यक हिन्दू मतदाताओं के साथ मुस्लिमों और क्षेत्रीय भावना वाले आदिवासियों को अपनी ओर खींचने का हर संभव प्रयास करती रही है। अन्त में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में चुने जाने और प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के लिए असम के कामरूप जिले के दिसपुर निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता के रूप में अपना नाम तो दर्ज करवा रखा है लेकिन इस विधानसभा चुनाव में वह  स्वयं और पत्नी गुरशरण कौर का वोट डालने नहीं गए। यही नहीं, उन्होंने डाक से मतदान करने का आग्रह भी निर्वाचन आयोग से नहीं किया। एक तरफ हम वोट के अधिकार का उपयोग करने का प्रचार करते नहीं थकते वहीं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रधानमंत्री ही मतदान नहीं करता।

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