Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
प्रकाशित: 24 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र
-अनिल नरेन्द्र
राजधानी में यदि आप रहते हैं तो बड़ी सावधानी से खाने-पीने के सामान का चयन करें, क्योंकि यहां हर कदम पर आपकी जान के दुश्मन बैठे हैं। जी हां, यहां मिलावटखोरों ने खाने-पीने की ज्यादातर वस्तुओं में मिलावट या गड़बड़झाला कर रखा है। बाजार में शायद ही ऐसी कोई वस्तु मिले जो आपको बगैर मिलावट के मिले। घी, दाल, मसाले एवं अन्य खाद्य पदार्थों में भारी मात्रा में मिलावट की जा रही है। देसी घी में मिलाया जाता है वनस्पति घी। कुछ मामलों में तो मरे जानवरों की चर्बी से भी नकली घी बनाया जाता है। मसालों में सूखे पत्तों का चूरा और बीज मिलाए जाते हैं। वहीं मिर्च के पाउडर में पीसी हुई ईंट एवं लाल रंग, हल्दी पाउडर में रंगीन बुरादा और लौंग में अर्प खींची हुई लौंग की मिलावट विशेष रूप से प्रचलित है। दाल में आमतौर पर खेसारी की दाल मिलाई जाती है। इसकी विशेषता यह है कि यह विभिन्न रंगों में पाई जाती है जिससे इसे किसी भी दाल में मिलाया जा सकता है। मगर यह कड़वी होती है और सेहत के लिए खतरनाक। इसके अतिरिक्त कंकड़ भी मिलाए जाते हैं। चायपत्ती में इस्तेमाल हुई चायपत्ती और चना दाल की भूसी की मिलावट की जाती है। वहीं कॉफी पाउडर में चिकोरी नामक पदार्थ का पाउडर मिलाया जाता है। गेहूं, चावल और बाजरा में विशेष रूप से अर्गाट, धतूरे का बीज और गेरुई अर्थात् फपूंदीयुक्त विषैले दाने जो कि खाद के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं, की मिलावट की जाती है। वहीं सेला चावल में पीला कृत्रिम रंग मिलाया जाता है। मक्खन में आमतौर पर वनस्पति घी को मिलाया जाता है। खोया में चांदी अर्थात् स्टार्च की मिलावट की जाती है। चीनी में सफेद खड़िया चूर्ण की मिलावट की जाती है। यह स्वादहीन होता है और कम घुलनशील होता है। चीनी और पानी के मिश्रण को गरम करके नकली शहद तैयार किया जाता है।
मिलावटखोरी की रोकथाम में सरकार की निगरानी व्यवस्था पूरी तरह से कारगर नहीं है, क्योंकि मिलावटखोरी पर तुरन्त एवं सीधी कार्रवाई करने की व्यवस्था नहीं है। मसलन अगर कहीं पर मिलावटखोरी की शिकायत मिलती है तो जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक अपने साथ क्षेत्र के एसडीएम को लेकर जाएगा और एमसीडी अपने क्षेत्र की पुलिस को लेकर जाएगी। इसके बाद तीन विभागों की टीम मौके पर पहुंच कर पदार्थ का सैम्पल लेगी और उसे जांच के लिए भेजेगी। जांच रिपोर्ट 20 दिन में मिलेगी और उसके बाद कार्रवाई होगी। ऐसे में अक्सर मिलावटखोर भाग जाते हैं या फिर जुर्माना राशि अदा कर आसानी से छूट जाते हैं। इस मिलावट से जनता की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। जीटीबी अस्पताल में मेडिसन विभाग के डॉ. अग्रवाल ने बताया कि मिलावटी पदार्थों के सेवन का प्रभाव उसकी मात्रा पर निर्भर करता है। आमतौर पर देखने में आया है कि मस्टर्ड ऑयल में आर्जिमोन तेल की मिलावट की जाती है। इसके लम्बे समय तक सेवन से हार्ट अटैक का खतरा अधिक होता है। वहीं कई बार दुकानदार चावल में फसंग लगा होने के बावजूद भी उसे बेच देते हैं। ऐसे चावल के सेवन से पेट में खराबी और पीलिया हो जाता है। नकली हल्दी के सेवन से खून की कमी और शरीर की नसें कमजोर होकर फट जाती हैं।
दुनिया के किसी भी सभ्य देश में खाने-पीने की इस तरह मिलावट नहीं होती। भारत में कमजोर कानूनों, पर्याप्त स्टाफ और विभागों की कमी, लैबों की कमी इत्यादि के कारण कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं होती और जनता इस मिलावटी खाद्य पदार्थों को खाने पर मजबूर है।
मिलावटखोरी की रोकथाम में सरकार की निगरानी व्यवस्था पूरी तरह से कारगर नहीं है, क्योंकि मिलावटखोरी पर तुरन्त एवं सीधी कार्रवाई करने की व्यवस्था नहीं है। मसलन अगर कहीं पर मिलावटखोरी की शिकायत मिलती है तो जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक अपने साथ क्षेत्र के एसडीएम को लेकर जाएगा और एमसीडी अपने क्षेत्र की पुलिस को लेकर जाएगी। इसके बाद तीन विभागों की टीम मौके पर पहुंच कर पदार्थ का सैम्पल लेगी और उसे जांच के लिए भेजेगी। जांच रिपोर्ट 20 दिन में मिलेगी और उसके बाद कार्रवाई होगी। ऐसे में अक्सर मिलावटखोर भाग जाते हैं या फिर जुर्माना राशि अदा कर आसानी से छूट जाते हैं। इस मिलावट से जनता की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। जीटीबी अस्पताल में मेडिसन विभाग के डॉ. अग्रवाल ने बताया कि मिलावटी पदार्थों के सेवन का प्रभाव उसकी मात्रा पर निर्भर करता है। आमतौर पर देखने में आया है कि मस्टर्ड ऑयल में आर्जिमोन तेल की मिलावट की जाती है। इसके लम्बे समय तक सेवन से हार्ट अटैक का खतरा अधिक होता है। वहीं कई बार दुकानदार चावल में फसंग लगा होने के बावजूद भी उसे बेच देते हैं। ऐसे चावल के सेवन से पेट में खराबी और पीलिया हो जाता है। नकली हल्दी के सेवन से खून की कमी और शरीर की नसें कमजोर होकर फट जाती हैं।
दुनिया के किसी भी सभ्य देश में खाने-पीने की इस तरह मिलावट नहीं होती। भारत में कमजोर कानूनों, पर्याप्त स्टाफ और विभागों की कमी, लैबों की कमी इत्यादि के कारण कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं होती और जनता इस मिलावटी खाद्य पदार्थों को खाने पर मजबूर है।
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