Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi |
प्रकाशित: 20 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र
-अनिल नरेन्द्र
सोमवार को पश्चिम बंगाल के छह उत्तरी जिलों की 54 विधानसभा सीटों पर पहले चरण का मतदान हो गया। पहले चरण के इस मतदान में 74.27 फीसदी मतदान हुआ। इस दौरान कहीं से भी किसी बड़ी अप्रिय घटना का समाचार नहीं है। यह विधानसभा चुनाव वाम मोर्चा के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है। पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे ने 21 जून 1977 को सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ली थी और सत्ता में लगातार बने रहते हुए 34 साल पूरे होने को आ गए हैं। इस उपलब्धि के साथ ही प. बंगाल में लेफ्ट फ्रंट की सरकार ने लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता में बनी रहने वाली सबसे लम्बी कम्युनिस्ट सरकार का रिकार्ड बना लिया है। लेकिन इन विधानसभा चुनावों में इसी बात को इस मोर्चे की सबसे बड़ी कमजोरी भी बताया जा रहा है। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो पूरे राज्य में एक सत्ता विरोधी लहर दौड़ रही है जो सत्ताधारी सीपीएम की गले की फांस बन गई है। हालांकि मार्क्सवादी नेताओं ने 2009 में जारी एक पार्टी दस्तावेज में इन मुद्दों को उठाया और पार्टी नेतृत्व ने इस बात को स्वीकार किया है कि उनके परम्परागत वोटर अब उनकी नीतियों से विमुख हो रहे हैं। सत्ताधारी पार्टी के समक्ष मुस्लिम मतदाताओं को अपने खेमे में बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। पिछले चुनावी नतीजों और अल्पसंख्यकों के इलाकों का आकलन करने के बाद पता चलता है कि कुल 214 सीटों में से 75-77 सीटें ऐसी हैं जहां उन्हीं की जीत की सम्भावना है जहां मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन मिलेगा। इन चुनावों में ऐसा ही कहा जा रहा है कि एक लम्बे समय तक लेफ्ट का समर्थन करते रहने के बाद अब ज्यादातर मुस्लिम मतदाताओं ने अपना समर्थन बन्द कर दिया है। साथ ही लेफ्ट पार्टी के अपने धड़ों में और खासतौर से एसएफआई जैसे छात्र संगठनों में अब मनमुटाव खुलकर सामने आने लगे हैं। पश्चिम बंगाल के राजनीतिक परिवेश में सत्ताधारी वाम नेताओं के जनता को नजरंदाज करने वाले रवैये की भी इन चुनावों में एक महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने अपने करिश्में से वाम मोर्चा की नींद उड़ा रखी है। एकजुट विपक्ष की एक मात्र नेता बनकर उभरी ममता बनर्जी को लेकर गांवों और शहरों में काम करने वालों में बराबर का उत्साह है। ममता की पार्टी के खिलाफ माओवादियों के एक गुट द्वारा दिए गए फरमान भी उन इलाकों में वोट काट सकते हैं जो झारखंड राज्य से सटे हुए हैं पर इन सबके बावजूद लेफ्ट फ्रंट का चुनाव जीतना बहुत मुश्किल लग रहा है। अगर बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में वाम मोर्चा चुनाव जीत गया तो प. बंगाल के चुनावी इतिहास में यह सबसे महत्वपूर्ण घटना होगी। चुनाव पूर्व दो सर्वेक्षणों की मानें तो तृणमूल कांग्रेस-कांग्रेस गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिल रहा है। ओआरजी द्वारा हेडलाइंस टुडे समाचार चैनल के लिए किए ए सर्वेक्षण के मुताबिक तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन को 182 सीटें मिलेंगी जो कि बहुमत के लिए जरूरी 148 सीटों से काफी अधिक है जबकि वाम मोर्चा को 101 सीटें मिलेंगी जो 2006 के चुनाव की तुलना में 126 कम है। बाकी तो मतपेटियां खुलने के बाद ही पता लगेगा।
तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने अपने करिश्में से वाम मोर्चा की नींद उड़ा रखी है। एकजुट विपक्ष की एक मात्र नेता बनकर उभरी ममता बनर्जी को लेकर गांवों और शहरों में काम करने वालों में बराबर का उत्साह है। ममता की पार्टी के खिलाफ माओवादियों के एक गुट द्वारा दिए गए फरमान भी उन इलाकों में वोट काट सकते हैं जो झारखंड राज्य से सटे हुए हैं पर इन सबके बावजूद लेफ्ट फ्रंट का चुनाव जीतना बहुत मुश्किल लग रहा है। अगर बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में वाम मोर्चा चुनाव जीत गया तो प. बंगाल के चुनावी इतिहास में यह सबसे महत्वपूर्ण घटना होगी। चुनाव पूर्व दो सर्वेक्षणों की मानें तो तृणमूल कांग्रेस-कांग्रेस गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिल रहा है। ओआरजी द्वारा हेडलाइंस टुडे समाचार चैनल के लिए किए ए सर्वेक्षण के मुताबिक तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन को 182 सीटें मिलेंगी जो कि बहुमत के लिए जरूरी 148 सीटों से काफी अधिक है जबकि वाम मोर्चा को 101 सीटें मिलेंगी जो 2006 के चुनाव की तुलना में 126 कम है। बाकी तो मतपेटियां खुलने के बाद ही पता लगेगा।
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