Friday 22 April 2011

भाजपा में बढ़ता असंतोष व अनुशासनहीनता को कौन रोके?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 22 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

किसी भी सियासी दल के लिए अनुशासन बहुत जरूरी होता है। उस पार्टी के नेतृत्व में इतनी क्षमता बर्दाश्त और कार्यकर्ताओं से लगातार सम्पर्प बनाए रखने की काबलियत होनी चाहिए। अगर नेताओं में अहंकार आ जाए और वह सत्ता में इतने गैर-जवाबदेही हो जाएं कि उन्हें न तो पार्टी की परवाह हो, न ही कार्यकर्ता की तो उस पार्टी में विद्रोह और असंतोष फैल जाता है। एक समय में भारतीय जनता पार्टी इन आरोपों से बची हुई थी पर वर्तमान पार्टी नेतृत्व बुरी तरह से विभिन्न कारणों से फेल होता नजर आ रहा है। हम देख रहे हैं कि भाजपा की विभिन्न राज्य ईकाइयों में असंतोष, अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है। भाजपा में इन दिनों कई राज्यों में बगावत का माहौल है। देश के उत्तरी छोर जम्मू-कश्मीर से लेकर पंजाब, राजस्थान, दिल्ली व झारखंड तक पार्टी के अन्दर जारी गुटबाजी अब खुलकर सतह पर आ गई है। कहीं तो यह खुली बगावत का रूप ले चुकी है तो कहीं अन्दर ही अन्दर असंतोष पनप रहा है। पार्टी आलाकमान ने हर तरफ स्थिति सम्भालने के लिए अपने सिपाही भेजे हैं मगर ज्यादातर मामलों में इनकी कोशिशें अभी तक फेल ही हुई हैं।
पार्टी को सबसे बड़ा झटका जम्मू में लगा। अमरनाथ आंदोलन के बाद जनता ने भाजपा पर भरोसा करते हुए उसे 11 विधायकों की बम्पर जीत दी। पार्टी अपना आधार बढ़ाने की तैयारी कर रही थी कि सात विधायकों की क्रॉस वोटिंग से उसके पांव तले जमीन खिसक गई। सूत्रों से पता चला है कि विधायकों के भीतरघात के पीछे प्रदेश अध्यक्ष शमशेर सिंह का रवैया भी बड़ी वजह है। ये नेता लम्बे अरसे से अपनी शिकायत संगठन के कार्यकर्ताओं को पहुंचा रहे थे मगर मामला हाथ से निकल गया। खिसयाए नेतृत्व ने सभी 11 विधायकों का इस्तीफा ले लिया है। उधर पार्टी आलाकमान की नाक के नीचे राजधानी दिल्ली में भी हालात बिगड़ते जा रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता की नए मेयर के चुनाव में खुली छूट देना पार्टी के लिए सिरदर्द साबित हुआ है। पार्टी के प्रभारी महासचिव अरुण जेटली आजकल सातवें आसमान पर हैं। उन्हें न तो दिल्ली भाजपा की कोई परवाह है, न ही कार्यकर्ताओं की। विधायक, कार्यकर्ता करें तो क्या करें?
झारखंड में तो पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा अपनी ही सरकार के खिलाफ बेमियादी धरने पर बैठ गए। मामला था प्रदेश में अतिक्रमण हटाने के अदालत के आदेश का। सिन्हा पीड़ित लोगों की तरफदारी से धरने पर बैठ गए और अर्जुन मुंडा सरकार से मांग कर दी कि इसके लिए अध्यादेश जारी करके लोगों को राहत दे। पंजाब में पार्टी गठबंधन में मतभेद के चलते स्वास्थ्य मंत्री लक्ष्मी कान्ता चावला का इस्तीफा लेने की बार-बार कोशिश कर रही है मगर कामयाब नहीं हो सके। राजस्थान में भी नेता विपक्ष वसुंधरा राजे ने प्रदेश प्रमुख अरुण चतुर्वेदी की ओर से गठित टीम पर एतराज किया। नतीजतन पार्टी को कई नाम बदलने पड़ गए। कर्नाटक व उत्तराखंड में तो पार्टी की अंदरुनी उठापटक रोज की बात हो गई है। प्रवक्ता निर्मला सीतारमण ने कबूल किया कि इन सारी चीजों से लगता है कि संगठन को और मजबूत करने की जरूरत है लेकिन इसे इस सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए। कई प्रदेशों में पार्टी सिफर थी। सवाल यह है कि भाजपा में आई इस गिरावट को थामेगा कौन? केंद्रीय नेतृत्व या तो खुद गुटबाजी में व्यस्त है या फिर नेताओं का सत्ता भोग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। आज यह उस पार्टी को भी भूल गए हैं जिसकी बदौलत ये नेता यहां तक पहुंचे हैं।

1 comment:

  1. अब भारतीय जनता पार्टी में अब उन लोगों का बोलबाला है जिनके पास अकूत दौलत है । सिद्धांतो पर चलने वालों , जनता के लिए काम करने वालों की पार्टी में पूछ नहीं है . ड्रांईंग रूम नेता ज्यादा हो गए हैं जनता के हक के लिए लडने वाला कोई नहीं वरना आज जो स्थिति है उसमें विपक्ष मौजूदा सरकार का विकल्प बन सकता है लेकिन जनता को अब बीजेपी पर वो भरोसा नहीं है . पहले पार्टी को टीवी नेताओं और ड्रांईग रूम नेताओं से छुटकारा पा कर जन सेवकों की पार्टी बनना पड़ेगा । दिल्ली में ही देख लिजिए Property dealers से पार्टी भरी पड़ी है ।

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