प्रकाशित: 14 अप्रैल 2011
अनिल नरेन्द्र
पस्तावित जन लोकपाल बिल का शांत विरोध आरम्भ हो चुका है। राजनेता अब कुछ बातें खुलकर कहने लगे हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने जन लोकपाल बिल का सीधा विरोध तो नहीं किया पर उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा है कि अन्ना हजारे की भूख हड़ताल ने चार दिन में उससे ज्यादा हासिल किया जो विपक्ष ने दो महीने की मांग के बाद पाया? श्री अडवाणी ने लोकपाल विधेयक को और पभावी बनाने के लिए अभियान चलाने के लिए अन्ना हजारे की पशंसा की लेकिन साथ ही उन लोगों की आलोचना की थी जिन्होंने राजनीति या राजनेताओं के खिलाफ घृणा का माहौल बनाया और कहा कि यह लोकतंत्र के खिलाफ है। उधर पंजाब के मुख्यमंत्री पकाश सिंह बादल ने तो खुलकर कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल या लोकपाल बिल लाने से कुछ नहीं होने वाला। इसके लिए सख्त कानून बनाए जाने की जरूरत है। हमारी पार्टी हो या कोई और पार्टी हो चुनाव में सभी काला धन इस्तेमाल करते हैं। अमेरिका की तरह यहां भी एक निश्चित राशि से अधिक धन रखने वालों पर कानूनी पतिबंध लगा देना चाहिए। अमेरिका में 10 हजार डॉलर से अधिक कैश नहीं रख सकते हैं। देश की जीडीपी के बराबर काला धन मौजूद है और यह केवल तीन पतिशत लोगों के पास है। लोकपाल बिल से कुछ नहीं होने वाला चाहे जिसने भूख हड़ताल रखी हो, उसे ही लोकपाल बना दिया जाए।
केन्द्राrय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने कह दिया कि लोकपाल बिल से आम आदमी की गरीबी, बिजली और शिक्षा जैसे, मूलभूत समस्याएं खत्म नहीं होने वाली क्योंकि इसका सीधा वास्ता भ्रष्टाचार से जुड़े मामले निपटाने का है। सिब्बल के इस बयान पर एतराज जताते हुए अन्ना ने कहा कि अगर केन्द्राrय मंत्री कपिल सिब्बल को लगता है कि लोकपाल विधेयक से कोई फायदा नहीं होगा तो उन्हें मसौदा समिति से इस्तीफा दे देना चाहिए। वह क्यों हमारा और अपना वक्त बर्बाद कर रहे हैं। अन्ना के पलटवार पर सिब्बल भी सकपका गए। उन्होंने तुरंत डैमेज कंट्रोल करते हुए कहा कि वह अन्ना के साथ हैं और उनके साथ मिलकर एक ऐसा विधेयक बनाना चाहते हैं जो भ्रष्टाचार से लड़ने में सक्षम हो। वहीं सलमान खुर्शीद ने भ्रष्टाचार से लड़ने में सक्षम होने के लोकपाल बिल के सवाल पर कहा कि भगवान के मौजूद होने से भी सभी बुराइयां नहीं मरतीं। हमें तब भी अपने बच्चों को अच्छी बातें बतानी पड़ती हैं और मंदिर बनवाकर पूजा करनी पड़ती है। भाजपा पवक्ता तरुण विजय ने ट्विटर पर लिखा ः अन्ना ने पिता और पुत्र की जोड़ी को स्वीकार किया है। माओवाद समर्थक को भी शामिल किया है। उन्होंने लिखा है कि विपक्ष को समिति में जगह नहीं दिया जाना अन्ना के लोकतात्रिक आंदोलन के लिए अच्छा नहीं है। हालांकि विजय बाद में अपनी बात से पलट गए पर उन्होंने अपना विरोध तो जता दिया।
कांग्रेस पार्टी में ऐसे नेताओं की भी कमी नहीं जो अन्ना के सामने झुकने को कतई उचित नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि यह तो सरकार ने एक नया रास्ता खोल दिया है। अब हर कोई सरकार की इसी तरह ब्लैकमेल करने की कोशिश करेगा जैसा कि अन्ना और उनके मुट्ठीभर समर्थकों ने किया है यानि कांग्रेस के भीतर जितने मुंह उतनी बातें। हर कोई दूसरों को दोष दे रहा है तथा अपनी बात सही बता रहा है। अन्ना से मिली हार से न केवल पार्टी का आत्मविश्वास डगमगा गया है बल्कि उसके नेताओं के बीच आपसी तालमेल भी बिगड़ता नजर आ रहा है।
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