Thursday 21 April 2011

60 साल दूर रहने के बाद जमात भी उतरा सियासी मैदान में

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
प्रकाशित: 21 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

लगभग छह दशकों से राजनीति से दूर रहे देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन `जमात-ए-इस्लामी हिन्द' ने सक्रिय राजनीति में उतरने का ऐलान किया है। सोमवार को जमात के अमीर (प्रमुख) सैयद जलालुद्दीन उमरी ने मावलंकर हॉल में यह ऐलान करते हुए कहा कि देश में एक ऐसी पार्टी की जरूरत महसूस हो रही थी जो अल्पसंख्यक, गरीब और समाज के सभी तबकों की आवाज बुलंद करे। हमने इसी वजह से इस पार्टी का गठन किया है। जमात के वरिष्ठ सदस्य मुज्तबा फारुख इसके अध्यक्ष बनाए गए हैं। पार्टी का नाम है वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया। पार्टी का दावा है कि वह इस बात का पूरा प्रयास करेगी, उस पर अल्पसंख्यक पार्टी होने का ठप्पा न लगे। पार्टी महासचिव और जमात के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा कि हमारी पूरी कोशिश होगी कि हमें सिर्प मुसलमानों से जोड़कर न देखा जाए। हम सबको साथ लेकर चलने की नीति पर काम करेंगे। भारत में जमात पहली बार सक्रिय राजनीति में कदम रख वही है। देश को आजादी मिलने के समय इस संगठन ने राजनीति से दूर रहने का फैसला किया था। अब सक्रिय राजनीति में आने की वजह के बारे में फारुक ने कहा कि पार्टी गठित करने में देर हुई है, लेकिन अब और देर नहीं की जा सकती थी।
भारत के मुसलमान बहुत दिनों से यह महसूस करते आ रहे हैं कि उनके हितों की रक्षा करने वाली कोई सियासी जमात नहीं है। हर सियासी पार्टी ने अपने हितों को साधने के लिए अल्पसंख्यकों का इस्तेमाल किया पर कभी किसी ने उनकी तरक्की नहीं कराई। इसी शून्य की कमी करने के लिए अब हम देख रहे हैं कि जमात भी मैदान में उतर आई है। कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश में पीस पार्टी भी सक्रिय राजनीति में आ गई। आगामी विधानसभा चुनावों में सम्भव है कि पीस पार्टी जोरशोर से दंगल में उतरे। पीस पार्टी की रैलियां आरम्भ हो चुकी हैं। इन रैलियों में
25-30 हजार लोग जुट रहे हैं। पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ. मोहम्मद अयूब ने कहा कि चुनाव में हमारा मुख्य मुद्दा काले धन और प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ जेहाद है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता से मेरी पार्टी का विश्वास जगा है कि हम भ्रष्टाचार से निजात दिला सकेंगे। डॉ. आयूब ने कहा कि हाल ही में डुमरियागंज में हुए विधानसभा उपचुनाव में पीस पार्टी को 26 हजार मत मिले थे। इसके चलते समाजवादी पार्टी चौथे और कांग्रेस पांचवें नम्बर पर खिसक गई थी। 2012 के चुनाव में भी सपा और कांग्रेस की लड़ाई चौथे और पांचवें नम्बर के लिए होगी। उन्होंने कहा कि सपा और कांग्रेस समेत सभी दलों ने मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है जबकि प्रदेश में मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत है। हम एक विकल्प के रूप में उभर रहे हैं। पीस पार्टी का फिलहाल सबसे अधिक जनाधार पूर्वी उत्तर प्रदेश में है। यहां इन दिनों पार्टी की रैलियां हो रही हैं और इनमें हजारों लोगों की मौजूदगी से पार्टी के हौसले बुलंद हैं। डॉ. अयूब कहते हैं कि 2012 के चुनाव में मेरी कोशिश रहेगी कि हम असम की ऑल इंडिया डेमोकेटिक फ्रंट की तरह एक विकल्प बन सकें, जिससे कांग्रेस का अल्पसंख्यक और पिछड़ा वोट दूर हो सके।
प्रदेश की राजनीति में पीस पार्टी की धमाकेदार मौजूदगी से सबसे ज्यादा परेशानी कांग्रेस को हो सकती है और राहुल गांधी के मिशन यूपी 2012 के सपने को धक्का लग सकता है।

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