Wednesday 13 April 2011

एमसीडी के बंटवारे का सोच-समझकर ही फैसला करें


प्रकाशित: 13 अप्रैल 2011

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल ने भले ही एमसीडी के बंटवारे पर अपनी मुहर लगा दी है, लेकिन इस फैसले का चौतरफा विरोध जारी है। यहां तक कि कांग्रेसी पार्षद भी इसका जमकर विरोध कर रहे हैं। गत शुक्रवार को एमसीडी सदन में प्रतिपक्ष के नेता जयकिशन शर्मा की अगुवाई में पार्षदों ने पार्टी आलाकमान सोनिया गांधी से मुलाकात की। मुलाकात के लिए पहुंचे पार्षदों में जयकिशन शर्मा के अलावा अनीता बब्बर, मुकेश गोयल, सतबीर शर्मा, अनिल माथुर, रेणुका गुप्ता, पन्नालाल खेरवाल, हेमचन्द गोयल, विष्णु अग्रवाल, महमूद जिया और राकेश जोशी शामिल थे। पार्षदों ने सोनिया गांधी को बताया कि एमसीडी के पांच हिस्से होने पर वार्डों की संख्या 272 से बढ़कर 408 हो जाएगी। इससे नगर निगम कमजोर होगा और एक पार्षद की स्थिति आरडब्ल्यूए के पदाधिकारियों जैसी हो जाएगी। पार्षदों की चिन्ता यह भी है कि नई व्यवस्था लागू होने के बाद चुनाव में पार्टी को नुकसान होगा। 2007 में चुनाव से पहले वार्डों की संख्या 134 से बढ़कर 272 किए जाने का परिणाम सामने आ चुका है। इसमें कांग्रेस को सीधा नुकसान हुआ था और पार्षदों की संख्या घट गई थी। कांग्रेस शासित दिल्ली सरकार ने एमसीडी के बंटवारे का फैसला लिया है, लेकिन खुद पार्टी के पार्षद ही इस फैसले का जोरशोर से विरोध जता रहे हैं। इस मतभेद ने भाजपा के विरोध को बल दे दिया है। भाजपा नेताओं और पार्षदों का कहना है कि दिल्ली सरकार के जिस फैसले से खुद कांग्रेसी पार्षद सहमत नहीं हैं उसे जनता के हित में करार देना उचित नहीं है।

बंटवारे पर राजधानी के राजनीतिक गलियारों के अलवा एमसीडी की कार्यप्रणाली से जुड़े कुछ अहम सवाल भी आते हैं। इनका समाधान किए बिना निगम का बंटवारा कितना सफल होगा, इसमें भारी संदेह है? पहला सवाल : कैसे बांटा जाएगा राजस्व? एमसीडी को अपना राजस्व प्रॉपर्टी टैक्स, विज्ञापन, पार्किंग और टोल टैक्स, आदि से मिलता है। पहले यह बजट समान रूप से पूरी दिल्ली पर खर्च किया जाता था। पांच भागों में बंटने पर जहां गांव, अनाधिकृत कॉलोनियां, झुग्गी बस्ती और अनाधिकृत नियमित कॉलोनियां हैं, वहां पर प्रॉपर्टी टैक्स, विज्ञापन, आदि से बहुत कम राजस्व मिलेगा। असंतुलन को मिटाने में खासी दिक्कतें आ सकती हैं। दूसरा सवाल ः प्रॉपर्टी विभाजन कैसे होगा? कुछ इलाकों में एमसीडी की प्रॉपर्टी बहुत ज्यादा है और कुछ में बहुत कम। मध्य दिल्ली में एमसीडी का पुराना मुख्यालय है ही, नया मुख्यालय सिविक सेंटर भी है। यमुना पार में करोड़ों रुपये की लागत से बना बूचड़खाना है तो कई इलाकों में जोनल कार्यालयों में बड़ी-बड़ी इमारतें हैं। एमसीडी के बड़े-बड़े अस्पताल किसकी प्रॉपर्टी कहलाएंगे? सैकड़ों स्कूलों आदि का क्या होगा? सवाल नम्बर तीन : वार्ड बढ़ेंगे तो उनके इलाके छोटे हो जाएंगे। ऐसा होने से विकास कार्यों को लेकर खासा झंझट पैदा हो सकता है। उदाहरण के तौर पर प्रमुख सड़कें, स्ट्रीट लाइटें, नालियां, नालों का निर्माण, आदि कई वार्डों से गुजरेगा तो क्या अलग-अलग टेंडर होंगे, सुपरविजन कौन करेगा? सवाल नम्बर चार : एमसीडी पर करोड़ों रुपये की देनदारी है। एमसीडी की आर्थिक हालत ऐसी नहीं कि नए वार्डों के लिए नई भर्ती की जाए। सवाल नम्बर पांचवा : पांच एमसीडी बनने से दिल्ली के पांच मेयर होंगे। पांच कमिश्नर होंगे तो पांच ही स्थायी समिति के अध्यक्षों के अलावा विभिन्न समितियों के अध्यक्ष होंगे। ऐसे में नेताओं की अपनी हैसियत खासी छोटी नजर आएगी। जब तक इन सारे प्रश्नों पर गम्भीरता से विचार नहीं होता, हमें नहीं लगता कि मामले में इतनी जल्दबाजी करनी चाहिए।

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