Wednesday, 27 April 2011

काश! 18 साल पहले वोहरा रिपोर्ट पर ध्यान दिया गया होता

प्रकाशित: 27 अप्रैल 2011
-अनिल नरेन्द्र

अक्सर पिछले कई सालों से यह देखने को आ रहा है की जब भी तानाशाही या भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई अभियान चलाया जाता है या उठाया जाता है तो प्रभावित नेता कभी तो लोकतंत्र कमजोर करने की दुहाई देकर तो कभी संस्थाओं को कमजोर करने का बहाना देकर उसकी हवा निकालने का प्रयास करते हैं। अन्ना हजारे के नेतृत्व में जब से भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठी तो कुछ तत्वों ने भी ऐसा ही करने का प्रयास किया। यह कहा जा रहा है कि ऐसे अभियान से लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर होंगी। यह भी कहा जा रहा है कि अन्ना खुद तो ईमानदार हैं पर उनके आसपास जो नेता जुड़े हैं उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। साथ ही पूरी राजनीति को भ्रष्ट कहे जाने पर राजनेताओं ने खुलकर विरोध किया है। अन्ना ने कभी भी यह नहीं कहा कि सारे नेता भ्रष्ट हैं, उन्होंने हमेशा यह कहा कि अधिकतर नेता भ्रष्ट हैं पर सभी नहीं। किन्तु प्रभावशाली नेताओं पर लगे आरोपों को इस तरह से प्रचारित किया जा रहा है ताकि अपने भ्रष्टाचार की रक्षा में बड़ी सुरक्षात्मक दीवार खड़ी हो जाए। सवाल उठता है कि इस देश में लगातार व बेरोकटोक जारी अरबों रुपये के महाघोटालों से लोकतंत्र कमजोर होगा या भ्रष्टाचार विरोधी अभियान से वह कमजोर हो जाएगा? बहस के लिए अगर आपको अन्ना हजारे व उनके साथियों द्वारा तैयार किए जा रहे जन लोकपाल बिल में कोई खोट नजर आती है तो इसके विरोधी ऐसा कोई वैकल्पिक विधेयक और जांच एजेंसी का प्रारूप तैयार क्यों नहीं कर पा रहे हैं जिसके बन जाने पर कोई भ्रष्टाचारी सजा से बच नहीं सके? अगर आप यह पहले ही कर देते तो अन्ना हजारे को शायद यह अभियान चलाना ही नहीं पड़ता।
ऐसा नहीं है कि इस देश में वर्षों से जारी भ्रष्टाचार व माफियागिरी की खबर दिल्ली दरबार को नहीं रही है। प्रशासनिक सुधार व चुनाव सुधार से संबंधित अन्य आयोगों व समितियों की चर्चित सिफारिशों को छोड़ दें तो भी यहां वोहरा समिति की चर्चित रिपोर्ट को एक बार याद करने की आवश्यकता है। 18 साल पहले 5 दिसम्बर 1993 को तत्कालीन गृह सचिव एनएन वोहरा ने एक सनसनीखेज रिपोर्ट पेश की थी। यह रिपोर्ट गृहमंत्री को सौंपी गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि इस देश में अपराधी गिरोहों, हथियारबंद सेनाओं, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले माफिया गिरोहों, तस्कर गिरोहों, आर्थिक क्षेत्रों में सक्रिय लॉबियों का तेजी से विकास हुआ है। इन लोगों ने विगत कुछ सालों में स्थानीय स्तर पर नौकरशाहों, सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों, राजनेताओं, मीडिया से जुड़े व्यक्तियों तथा गैर-सरकारी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ व्यापक सम्पत्ति विकसित किए हैं। इनमें से कुछ के सिंडिकेटों की विदेशी आसूचना एजेंसियों के साथ-साथ अन्य अंतर्राष्ट्रीय संबंध भी हैं। इस रिपोर्ट को फिर पढ़ने से साफ लगता है कि वोहरा ने राडिया टेप मामले का पूर्वाभास पहले ही करा दिया था पर हमारी सरकारों ने वोहरा की चेतावनी को ग्रहण करने तथा उसकी सिफारिश पर अमल करना जरूरी नहीं समझा।
वोहरा रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि बिहार, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में इन गिरोहों को स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दलों के नेताओं और सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों का संरक्षण हासिल है। कुछ नेता इन गिरोहों के, अवैध हथियारबंद सेनाओं के नेता बन जाते हैं व कुछ ही सालों में स्थानीय निकायों, राज्य की विधानसभाओं तथा संसद के लिए निर्वाचित हो जाते हैं। नतीजतन इन तत्वों ने अत्याधिक राजनीतिक प्रभाव प्राप्त कर लिया है जिसके कारण प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने तथा आम आदमी के जानमाल की हिफाजत करने में गम्भीर बाधा उत्पन्न हो जाती है। इससे जनता में निराशा की भावना घर जाती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि कुछ माफिया तत्व नारकोटिक्स, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी में संलिप्त हैं। उन्होंने विशेषकर जम्मू-कश्मीर, पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अपना एक नारको-तंत्र स्थापित कर लिया है। चुनाव लड़ने जैसे कार्यों में खर्च की जाने वाली राशि के मद्देनजर राजनीतिज्ञ भी इन तत्वों के चंगुल में आ गए हैं। समिति की बैठक में आईबी के निदेशक ने साफ-साफ कहा था कि माफिया तंत्र ने वास्तव में एक समानांतर सरकार चलाकर राज्य तंत्र को एक विसंगति में धकेल दिया है। इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि इस प्रकार के संकट से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक संस्थान स्थापित किया जाए और स्पष्ट रणनीति तय की जाए।
पर देश को इस गर्त से बचाने के लिए गत 18 साल में इस दिशा में कोई काम नहीं किया गया। इस बीच देश की स्थिति और भी बिगड़ती गई और अंतत सिविल सोसाइटी को सामने आना पड़ा। अन्ना हजारे का अभियान इसी तरह का संस्थान विकसित करने के लिए है। इस भीषण व दारुण स्थिति से देश को उबारने के लिए यदि विभिन्न सरकारों ने अपनी कानूनी व संवैधानिक जिम्मेदारियों को निभाया होता तो समय बीतने के साथ स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती और अन्ना हजारे के नेतृत्व में सिविल सोसाइटी को आगे नहीं आना पड़ता। सवाल मंशा का है। इस देश के अधिकतर नेताओं की मंशा सही नहीं है। यदि किसी की सही भी है तो वह भ्रष्ट तत्वों के सामने लाचार है। वोहरा समिति ने ठीक निष्कर्ष निकाला था कि आपराधिक सिंडिकेटों और माफिया संगठनों ने इस देश में काफी अधिक धन और बाहुबल अर्जित कर लिया है और सरकारी अफसरों व राजनीतिक नेताओं और अन्य लोगों के साथ संबंध कायम कर लिए हैं। इस कारण वे बिना दंडित हुए अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। मनमोहन सिंह से सवाल पूछा जाएगा कि यदि वे ईमानदार हैं तो उनकी सरकार में भ्रष्टाचार दिन दूनी रात चौगुनी गति से क्यों बढ़ रहा है? यदि वे इसे नहीं रोक सकते और सच्चे दिल से इस कैंसर का इलाज करना चाहते हैं तो वह इस्तीफा क्यों नहीं दे देते? जब संवैधानिक संस्थाएं अपना काम नहीं करेगीं और जनता के धन को तरह-तरह से लूटने की खुली छूट दे दी जाएगी तो आम जनता उठ खड़ी होगी ही। इधर घोटाले पर घोटाला हो रहा है उधर गरीब जनता महंगाई व बेरोजगारी से पिसती जा रही है। जनता जाग चुकी है। अन्ना हजारे के अभियान की बेशक आप हवा निकाल दें पर जनता के आक्रोश का लावा किसी न किसी रास्ते से जरूर फूटेगा।

1 comment:

  1. वोहरा कमिटी ने किन किन राजनयिक नेताओ के नाम लिए है ?

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