Saturday, 2 July 2016

तुर्की में इस साल का 14वां आतंकी हमला

यूरोप अब पूरी तरह से आतंकवाद की चपेट में आ चुका है। मंगलवार शाम तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में कमाल अतातुर्प अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर स्वचालित राइफलों से लैस आत्मघाती हमलावरों ने अंधाधुंध फायरिंग करके 41 लोगों की जान ले ली, जिनमें विदेशी नागरिक भी थे। खबरों के मुताबिक यह फिदायीन हमला था। तीन हमलावर टैक्सी में आए और मुसाफिरों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलानी शुरू कर दीं। पुलिस ने जवाबी फायरिंग की तो हमलावरों ने खुद को विस्फोट से उड़ा लिया। तुर्की में आतंकी हमलों में लगातार इजाफा हो रहा है। पिछले एक साल में कम से कम 14 आतंकी हमले हो चुके हैं। इनमें 200 लोगों से ज्यादा की मौत हो चुकी है। इन हमलों में कम से कम आठ हमले कुर्द लड़ाकों ने किए। इसके अलावा भीड़भाड़ वाले प्रसिद्ध इलाकों में हमलों के पीछे आईएस का हाथ रहा है। यूरोप के कई बड़े शहरों में आईएस ने आतंकी हमले किए हैं। पिछले दिनों बेल्जियम के ब्रुसेल्स में हुए आतंकवादी हमले और इस्तांबुल के हमले में कई समानताएं हैं, जिन्हें एक ही आतंकवादी गुट का हाथ होने का प्रमाण माना जा सकता है। दोनों ही हमलों में तीन आतंकी शामिल थे। दोनों ही हमलों में दो आतंकवादियों ने हवाई अड्डे में पहले अंधाधुंध गोलीबारी की, फिर खुद को उड़ा लिया। ब्रुसेल्स में तीसरे आतंकी ने जहां पास के मेट्रो स्टेशन में आत्मघाती विस्फोट किया, वहीं इस्तांबुल में तीसरे आतंकी ने पार्किंग लॉट में अपने को उड़ाया। जहां यूरोप ही आतंकवादी हमलों की आशंका परिणामों से जूझ रहा है। वहां तुर्की विशेष रूप से असुरक्षित है। तुर्की यूरोप और एशिया की सीमा पर है और वह दोनों के बीच आवाजाही का केंद्र है। उसकी सीमाएं इराक और सीरिया से मिलती हैं, जहां काफी हिस्सों में इस्लामिक स्टेट (आईएस) का राज है। सीरिया और इराक से यूरोप जाने वाले शरणार्थी भी तुर्की के रास्ते ही जाते हैं और इन शरणार्थियों के बीच मुमकिन है कि कुछ आतंकवादी भी हों। इस वजह से भी तुर्की में पहले भी हमले हो चुके हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि अतातुर्प अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा तुर्की का सबसे बड़ा और यूरोप का तीसरा सबसे व्यस्त हवाई अड्डा है। इस हवाई अड्डे की वेबसाइट के मुताबिक पिछले साल चार करोड़ 10 लाख मुसाफिर यहां से गुजरे। यह भी गौरतलब है कि इस्तांबुल में यह हमला ऐसे वक्त हुआ जब पवित्र रमजान का महीना चल रहा है जो मुस्लिम समुदाय के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है। पिछले दिनों अफगानिस्तान में तालिबान ने भी कहर बरपाया। वह भी रमजान के महीने में हुआ। दरअसल तालिबान तथा आईएस जैसे संगठनों के लिए इस्लाम को सिर्प अपनी गिरोहबंदी व अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस्लाम के उसूलों और मुस्लिम समुदाय की मजहबी आस्थाओं से उनका कोई मेल नहीं है। तुर्की में आतंकी हमले के बाद हैदराबाद में आईएस के 11 संदिग्ध आतंकियों की गिरफ्तारी से जाहिर है कि पश्चिम एशिया में  बढ़ते हमलों के बाद जहां आतंकी जवाबी कार्रवाई तेज कर रहे हैं, वहीं उनकी गतिविधियों का दायरा भी फैल रहा है। हालांकि इस्तांबुल में हमले की जिम्मेदारी किसी आतंकी संगठन ने नहीं ली है, लेकिन वहां के प्रधानमंत्री तैयब एरडोजन ने इसमें आईएस का हाथ होने का दावा किया है और यह भी कहा कि यह हमला आतंक के खिलाफ लड़ाई के लिए निर्णायक मोड़ साबित होने वाला है। साफ है कि सीरिया पर होने वाले हमले में रूस की भागीदारी पर आपत्तियां रखने और रूसी विमान को मार गिराने वाला तुर्की हमले के बारे में नए सिरे से सोचने पर मजबूर होगा और तुर्की को अपना नजरिया व रणनीति बदलनी होगी। यह अच्छे और बुरे आतंकवादी का फर्प समाप्त करना होगा। पिछले दिनों जब आईएस सरगना अल-बगदादी को मार गिराने की खबर पश्चिमी मीडिया में प्रसारित हुई थी और जिसका श्रेय लेते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने गुट के शीर्ष नेतृत्व को खत्म करने का दावा किया था तो लगा था कि आईएस कमजोर हुआ है, लेकिन ताजा हमले ने यह जता दिया कि कुछ आर्थिक और नेतृत्व संबंधी क्षति के बावजूद हमले करने की उसकी क्षमता बरकरार है। इस हमले का मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि आईएस की ताकत उल्टा बढ़ रही है। बेशक इराक और सीरिया में उसका तेजी से सफाया हो रहा है पर इसका मतलब यह नहीं कि दुनिया आईएस को कम करके आंकना शुरू कर दे। दुनिया के कई देशों में इस्लामिक स्टेट के समर्थक मौजूद हैं और बौखलाहट में वे खतरनाक हमले कर सकते हैं। इसलिए भी यह जरूरी है कि दुनिया के सभी देश अपनी सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दें और आतंकवाद के खिलाफ आपसी सहयोग बढ़ाएं। आने वाले दिन ज्यादा चुनौती भरे हो सकते हैं।

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