Monday, 11 July 2016

क्या लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने चाहिए

देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की मांग समय-समय पर उठती रही है। इसके हिमायती कहते हैं कि यह केवल सुविधा की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि बेहतर सुशासन के करोड़ों लोगों को बुनियादी सुविधाएं देने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। आमतौर पर देखा यह गया है कि चुनाव एक प्रदेश में हो या कुछ अधिक प्रदेशों में, इसमें पूरे देश की राजनीति उलझ जाती है। हर वर्ष ही कहीं न कहीं चुनाव होते हैं। अभी पांच राज्यों के चुनाव से निवृत्त हुए और उसके तुरन्त बाद अगले पांच राज्यों के चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है। धीरे-धीरे अब हमारा लोकतंत्र ही चुनाव तंत्र बनता जा रहा है। भारत के प्रमुख चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने कहा है कि यदि सभी राजनीतिक दलों में आम सहमति बने और इस सन्दर्भ में संवैधानिक संशोधन हो तो भारतीय चुनाव आयोग आम चुनाव और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ करवाने के लिए तैयार है। जैदी ने कहाöएक आयोग के रूप में कानून मंत्रालय को हमारी सिफारिश है कि देश में राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ आयोजित कराए जाएं। इन चुनावों को एक साथ करवाने के लिए हमें और अधिक इलैक्ट्रॉनिक मशीनें खरीदने, अस्थायी कर्मचारियों को नियुक्त करने और चुनाव तिथियों में बदलाव जैसे कुछ प्रबंध करने होंगे। उन्होंने कहाöहमने ऐसी ही एक सिफारिश इस मुद्दे की जांच करने वाली संसदीय समिति से भी की थी और समिति ने यह सुझाव दिया था कि इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के बीच पर्याप्त बहस होनी चाहिए क्योंकि कुछ राज्यों की तिथियों को आगे लाने और कुछ को पीछे खिसकाने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा। चुनाव का खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत के प्रथम चुनाव पर एक रुपया प्रति व्यक्ति खर्च आया था, अब यह 22 रुपए प्रति व्यक्ति खर्च होता है। चुनावी खर्च 22 गुना बढ़ा और आबादी 35 करोड़ से 125 करोड़ हो गई है। अगर हम पार्टियों, उम्मीदवारों के खर्च की बात करें तो यह लाखों-करोड़ों रुपए में पहुंचती है। इनमें ज्यादातर काला धन होता है। यदि चुनाव पांच साल में एक बार हों तो लाखों-करोड़ों की बचत होगी और लोकतंत्र पर काले धन की कालिख भी पांच बार की बजाय एक बार ही लगेगी। एक साफ चुनाव होने पर सरकार का धन तो बचेगा ही, पार्टियों और उम्मीदवारों के करोड़ों रुपए बचेंगे। आज का परिदृश्य बदल रहा है। एक तरफ करोड़पतियों, माफियाओं, धन्ना सेठों की संख्या बढ़ रही है वहीं दूसरी ओर करोड़ों लोग पैसों के अभाव के कारण चुनाव नहीं लड़ पाते।

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