Sunday, 31 July 2016

आखिर क्यों बंद किया जाए पैलेट गन का इस्तेमाल?

जम्मू-कश्मीर में पिछले दिनों उग्र प्रदर्शनों और हमारे सुरक्षा जवानों पर पत्थरबाजी पर इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं और मीडिया के एक हिस्से ने बहुत हायतौबा मचा रखी है। यह कहते हैं कि पैलेट गन इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगना चाहिए? हम पूछते हैं कि क्यों लगना चाहिए? क्या हमारे सुरक्षा जवानों को अपनी जान बचाने का इतना भी अधिकार नहीं है? क्या आपको मालूम है कि जम्मू-कश्मीर में जारी गंभीर विरोध प्रदर्शनों और पत्थर फेंकने की घटनाओं में 25 जुलाई तक लगभग 3500 सुरक्षा बल के जवान घायल हो चुके हैं। गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर ने कहा कि वहां पर इस साल गंभीर विरोध प्रदर्शन और पत्थर फेंकने की कुल 1029 घटनाएं हुई हैं। 2015 में विरोध प्रदर्शन और पत्थर फेंकने की कुल 730 घटनाएं हुई थीं। इसके साथ ही अहीर ने बताया कि 17 जुलाई तक जम्मू-कश्मीर में 152 आतंकवादी घटनाएं हुईं जिनमें 30 जवानों की मौत हुई जबकि 2015 में हुई 208 आतंकी घटनाओं में 39 जवानों की मौत हो गई थी। पैलेट गन के इस्तेमाल पर खासा विवाद खड़ा किया जा रहा है। दुखद पहलू यह है कि हमारे गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी इस दबाव का शिकार होते लग रहे हैं। उन्होंने घोषणा की है कि पैलेट गन के विकल्प के लिए सात सदस्यों की विशेषज्ञ समिति गठित की जा रही है। यह समिति दो महीने में अपनी रिपोर्ट देगी। दो दिवसीय घाटी में दौरे पर गए राजनाथ सिंह को बताया गया कि पैलेट गन की स्टील की गोली से वयस्क ही नहीं, बल्कि छोटे बच्चों के शरीर के सॉफ्ट टिश्यू और आंखों को खासा नुकसान पहुंचा है। हम जानना चाहते हैं कि ऐसा कौन-सा उग्र आंदोलन होता है जहां निर्दोष इसकी चपेट में नहीं आ जाते। जब भीड़ पत्थरों से मार-मार कर हमारे जवानों को अधमरा कर रही हो तो क्या उन्हें सेल्फ डिफेंस का भी अधिकार नहीं है? भीड़ ने एक जवान को पकड़ कर उसकी आंख ही फोड़ दी। क्या यह सब हमें बर्दाश्त है कतई नहीं। हम सीआरपीएफ के डीजी दुर्गा प्रसाद से पूरी तरह सहमत हैं जब वह कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में पैलेट गन का इस्तेमाल नहीं रुकेगा। वार्षिक प्रेस कांफ्रेंस में श्री प्रसाद ने कहा कि हम स्वयं बहुत ही विषम परिस्थितियों में पैलेट गन के इस्तेमाल की कोशिश करते हैं। जिससे इंजरीस कम से कम हों। हम इन्हें एक्सट्रीम परिस्थितियों में इस्तेमाल करते हैं जब भीड़ काबू से बाहर हो जाती है। उन्होंने बताया कि सुरक्षा बलों का इमोशन न होने के लिए ऐसी स्थिति से तर्पसंगत तरीके से निपटने के लिए ट्रेंड किया जाता है। उन्होंने कहा कि पैलेट गन लीथल हथियार (जानलेवा) नहीं है। जम्मू-कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य है जहां जवानों पर इस तरह का पथराव किया जाता है और ऐसे में जब परिस्थिति काबू से बाहर हो जाती है तो जवानों को अपनी जान बचाने के लिए पैलेट गन का इस्तेमाल करना पड़ता है। डीजी ने बताया कि सभी सुरक्षा बलों को निर्देश दिए जाते हैं कि कश्मीर में पैलेट गन का इस्तेमाल किए जाने के दौरान इसे घुटने के नीचे के हिस्से में चलाया जाए। उन्होंने बताया कि जवानों को सामने से गन को तब चलाना पड़ता है जब प्रदर्शनकारी करीब आ गए, ऐसे में जान जाने की आशंका थी। उन्होंने बताया कि हम कम खतरनाक श्रेणी में आने वाले दूसरे हथियारों का भी एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। इसमें अमेरिका में यूज किया जाने वाला एक बेपन भी शामिल है। बता दें कि यह  पैलेट गन क्या है? ये पंप करने वाली बंदूक होती है जिसमें कई तरह के कारतूस इस्तेमाल होते हैं। कारतूस एक से 12 की रेंज में होते हैं। एक को सबसे तेज और खतरनाक माना जाता है। इसका असर काफी दूर तक होता है। पैलेट गन से फायर किए गए एक कारतूस में 500 तक रबर और प्लास्टिक के छर्रे हो सकते हैं। फायर करने के बाद कारतूस हवा में फटते हैं और छर्रे एक जगह से चारों दिशाओं में जाते हैं। अंत में कारगिल विजय के मौके पर आतंकवादी बुरहान वानी के एनकाउंटर पर कुछ मीडिया (एंयूडो सेक्यूलर) में उठे सवालों पर रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। दिल्ली में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि के अवसर पर बोलते हुए पर्रिकर ने बगैर नाम लिए एक चैनल पर सवाल उठाया। आखिर देश के खिलाफ इसका क्या मतलब है? एक आतंकी के मारे जाने पर कई चैनलों के प्रसारण में मैंने जो देखा वह सही नहीं है। आखिर कोई कैसे ये सवाल पूछ सकता है कि इसको क्यों मारा? अब एक टेरेरिस्ट को नहीं मारेंगे तो किसको मारेंगे? टीआरपी के लिए आतंकियों के मारे जाने पर सवाल न उठाएं। देश के खिलाफ जो भी बोलेंगे उसे लोग पसंद नहीं करते।

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