Tuesday 19 July 2016

तुर्की में तख्तापलट की नाकाम कोशिश

यूरोप से एशिया तक फैले देश तुर्की की राजधानी अंकारा की सड़कों पर शुक्रवार शाम अचानक सेना के जवानों की बढ़ती मौजूदगी देख लोग हैरान रह गए। लोगों को उस समय समझ नहीं आया कि भारी टैंकों के साथ सड़कों पर उतरे ये सैनिक देश की मौजूदा सरकार का तख्ता पलटने जा रहे हैं। सेना के एक गुट ने तख्तापलट की साजिश रची। टैंकों, बख्तरबंद गाड़ियों, फाइटर प्लेन के सहारे राजधानी अंकारा और सबसे बड़े शहर इस्तांबुल में जमकर हल्ला बोला। संसद पर भी बम बरसाए। एयरपोर्ट बंद हो गया और सारी अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें रद्द कर दी गईं। पूरे देश में हड़कंप मच गया। राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन उस समय देश से बाहर थे। जैसे ही उन्हें तख्तापलट की सूचना मिली, उन्होंने टीवी, ट्विटर और बल्क एमएमएस के जरिये लोगों से अपील कीöलोकतंत्र और शांति के लिए उठो, सड़कों पर उतरो। हजारों लोग घरों से निकल पड़े। टैंकों व बख्तरबंद गाड़ियों के आगे लेट गए, खड़े हो गए। बिना बंदूकों के फौज से भिड़ गए। जनता का रौद्र रूप देख करीब पांच घंटे बाद खूनी संघर्ष थम गया। विद्रोहियों ने हाथ खड़े कर दिए। इस दौरान कुछ ही घंटों में 256 लोगों की मौत हो गई, 1500 से ज्यादा विद्रोहियों को जनता ने मार-मारकर आत्मसमर्पण कराया। सरकार ने 90 प्रतिशत हालात काबू में होने का दावा किया है। शाम को सरकार ने विद्रोही खेमे पर सख्ती शुरू कर दी। करीब तीन हजार बागियों को गिरफ्तार कर लिया गया। 25 कर्नल, पांच जनरलों को भी हटा दिया गया। विद्रोहियों से सम्पर्प के चलते 2800 जजों की भी छुट्टी कर दी गई। आठ बागी हेलीकाप्टर से यूनान भाग गए। राष्ट्रपति ने जिस ट्वीट से तख्तापलट की साजिश नाकाम कर दी वह कुछ ऐसे थाöतुर्की के प्यारे लोगो! यह हरकत देश के खिलाफ है। एक छोटी-सी सैनिक टुकड़ी ने इस्तांबुल और अंकारा में सेना की हथियारबंद गाड़ियों और हथियार हासिल कर लिए हैं। 1970 का इतिहास दोहराने की तैयारी है। तख्तापलट की कोशिश को उचित जवाब देना जरूरी है। अपने देश और लोकतंत्र को बचा लो। सड़कों पर उतरें और अपना देश वापस छीन लें। तख्तापलट के पीछे अमेरिका में निर्वासन में रह रहे मुस्लिम धर्मगुरु फतहुल्ला गुलेन का नाम लिया जा रहा है। सरकार के वकील राबर्ट एम्सटर्डम ने कहा कि इसके पीछे फतहुल्ला का सीधा हाथ है। इंटेलीजेंस सूत्रों के मुताबिक इसके साफ संकेत हैं कि फतहुल्ला कुछ खास मिलिट्री लीडरशिप के साथ चुनी हुई सरकार को अपदस्थ करने के लिए काम कर रहे थे। हालांकि फतहुल्ला ने अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज किया। वैसे यह भी कहा जा रहा है कि तुर्की की सेना को आधुनिक तुर्की के निर्माता कमाल अता तुर्प के बनाए धर्मनिरपेक्ष संविधान का संरक्षण माना जाता है। 14 साल पहले जब राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन सत्ता में आए थे तभी से उनकी कट्टरपंथियों के आगे झुकने की नीति को सेना नापसंद कर रही थी। 2002 में सत्ता में आने के बाद से ही एर्दोगन ने सेना पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए शीर्ष स्तर पर फेरबदल शुरू कर दिए थे। फूट डालकर अपने पसंद के जनरलों को ऊंचे ओहदों पर बैठाने की एर्दोगन की नीतियों से सेना के आला अफसर नाराज चल रहे थे। विद्रोही गुट का कहना है कि वे सिर्प राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन को हटाना चाहता है। एर्दोगन पर आरोप है कि वे तानाशाही चलाते हैं। विद्रोहियों को जेल भेजते हैं। कई आलोचक पत्रकारों पर केस करने और विदेशी पत्रकारों को देश से निकालने का भी आरोप है। पिछले महीने तुर्की के सबसे बड़े अखबार जमान पर पुलिस ने छापा मारा था, जिसके बाद अखबार को झुकना पड़ा था। 61 साल के रेसेप तैयप एर्दोगन 2002 में सत्ता में आए थे जबकि 2001 में उन्होंने एके पार्टी का गठन किया था। 2014 में राष्ट्रपति बनने से पहले वह 11 साल तक तुर्की के प्रधानमंत्री रहे। 2013 में एर्दोगन ने सेना के वरिष्ठ जनरलों पर कार्रवाई की। इनमें से 17 को जेल भेज दिया था। सेना इस वजह से भी इनसे नाराज है। बचपन में एर्दोगन पैसा कमाने के लिए इस्तांबुल की सड़कों पर नींबू पानी बेचते थे। 1999 में इस्लामी भावनाएं भड़काने के आरोप में उन्हें चार महीने तक जेल में रहना पड़ा था। तुर्की की जनता लोकतंत्र समर्थक रही है। इसीलिए जब राष्ट्रपति का एमएमएस आया तो तमाम जनता सड़कों पर उतरी और लोकतंत्र को बचा लिया।

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